*ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की , अनेकों प्रकार के जीव उत्पन्न किये | इन्हीं जीवों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य को प्रकट किया | सृष्टि के कण-कण में ईश्वर व्याप्त है , मानव जीवन पाकर के मनुष्य में सद्गुण का आरोपण करने के उद्देश्य ईश्वर ने अपना ही एक स्वरूप बनाकर स्वयं के प्रतिनिधि के रूप में इस धरा धाम पर उतरे जिन्हें सद्गुरु की उपाधि दी गई | प्राय: मानव मस्तिष्क में प्रश्न उठता है कि गुरु एवं भगवान में श्रेष्ठ कौन है ? इसके उत्तर में यही कहना है कि गुरु एवं ईश्वर दोनों एक दूसरे के पूरक हैं | बिना ईश्वर की कृपा के सद्गुरु नहीं प्राप्त हो सकता और जब तक मनुष्य को सद्गुरु नहीं प्राप्त होता तब तक ईश्वर के विषय में नहीं जान सकता | ईश्वर को कोई ब्रह्मा कहता है , कोई विष्णु कहता है , कोई शिव कहता है , राम , कृष्ण आदि अनेकों रूप धारण करके वह ईश्वर समय-समय पर इस पृथ्वी पर अवतरित होता रहता है | ब्रह्मा , विष्णु एवं शिव के ऊपर भी पारब्रह्म को कहा गया है | जब हम सतगुरु की महिमा का बखान करते हैं तो उनको ब्रह्मा , विष्णु एवं शिव की उपाधि देते हुए साक्षात परमब्रम्ह की उपाधि भी दी जाती है | जिस प्रकार ईश्वर की व्यापकता कण-कण में कही गई है उसी प्रकार सद्गुरु भी कण-कण में व्याप्त है हमारे शास्त्रों में लिखा है :- "अखंड मंडलाकारम् व्याप्तम येन चराचरम् ! तत्पदम दर्शितम् येन तस्मै श्री गुरुवे नमः !!" कहने का तात्पर्य है कि "बिनु हरि कृपा मिलें नहीं सन्ता" और "बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय" अर्थात बिना प्रभु की कृपा से सन्त / गुरु नहीं मिल सकते और बिना गुरु के ईश्वर को नहीं जाना जा सकता | इस प्रकार ईश्वर एवं गुरु एक दूसरे के पूरक हुये | दोनों में श्रेष्ठ कौन है यह मनुष्य की श्रद्धा के ऊपर निर्भर करता है | परंतु यह ध्यान देना चाहिए कि जन्म तो ईश्वर देता है परंतु इस संसार के विषय में तथा संसार के सिरजनहार ईश्वर के विषय में ज्ञान कराने वाला सद्गुरु ही होता है | इसलिए ईश्वर एवं गुरु एक दूसरे के पूरक होते हुए भी सद्गुरु ईश्वर से श्रेष्ठ कहे गए हैं |*
*आज आधुनिकता में मनुष्य स्वयं के संस्कार एवं संस्कृति को भूलता चला जा रहा है | जिस सद्गुरु को ईश्वर की संज्ञा दी गई है आज उनका सम्मान नाम मात्र को रह गया है ` जिन गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए हमारे शास्त्र , वेद , पुराण नहीं थकते हैं आज उन्हीं सद्गुरु के लिए अनेकानेक प्रश्न हमारे मस्तिष्क में उठा करते हैं | ईश्वर एवं गुरु में कौन श्रेष्ठ है इसके विषय में मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यही कहना चाहता हूं कि जिस प्रकार एक न्यायाधीश की अनुशंसा के बिना कोई भी अधिवक्ता नहीं बन सकता है और दूसरी ओर बिना अधिवक्ता के अनुशंसा किये कोई भी साधारण मनुष्य न्यायाधीश से वार्ता नहीं कर सकता है उसी प्रकार बिना ईश्वर की कृपा के गुरु नहीं प्राप्त हो सकता है और बिना गुरु के ईश्वर से संबंध बताने वाला कोई भी नहीं है | यहां न्यायाधीश को ईश्वर एवं अधिवक्ता को सद्गुरु मान लेना चाहिए | जिस प्रकार न्यायाधीश बिना अधिवक्ता की बात सुने कोई निर्णय नहीं लेता उसी प्रकार ईश्वर भी सदगुरु का आश्रय लेते हैं | जो अज्ञानता रूपी अंधकार से निकालकर ज्ञान रूपी प्रकाश में आपको प्रकाशित कर दे वही सद्गुरु कहा गया है | सद्गुरु ईश्वर का ही प्रतिबिंब होता है इसलिए ईश्वर एवं सद्गुरु में श्रेष्ठ एवं लाभ का विचार करना भी मानसिक पाप की श्रेणी में आता है | अतः मनुष्य को कभी भी इन विषयों पर यदि हृदय में / मस्तिष्क में कोई प्रश्न उठता है तो उससे विचार करना चाहिए कि यदि जीवन में सद्गुरु न मिले होते तो हम ना तो यह जान पाते कि हम कौन हैं ? संसार क्या है ? और संसार को रचाने वाला ईश्वर क्या है ? तथा उसका स्वरूप क्या है ? हमें क्या करना चाहिए ? क्या नहीं करना चाहिए ? क्या सकारात्मक है ? क्या नकारात्मक है ? यह सारा ज्ञान हमें ईश्वर से नहीं बल्कि सद्गुरु से ही प्राप्त होता है | इसलिए जीवन में ईश्वर से कहीं अधिक महत्व सद्गुरु का बताया गया है |*
*यदि ईश्वर रूठ जाता है तो सद्गुरु के द्वारा ईश्वर को मनाने के अनेकानेक उपाय हमें प्राप्त हो जाते हैं परंतु यदि सद्गुरु रुठ जाए तो ईश्वर हमें उनको मनाने का उपाय बताने नहीं आएंगे | इसलिए सदैव सद्गुरु की कृपा प्राप्त करते रहना चाहिए क्योंकि सद्गुरु ईश्वर का प्रतिबिंब होते हुए भी ईश्वर से श्रेष्ठ है |*