रात के बाद फिर सुबह हुई, काश्वी और दूसरे फोटोग्राफर को आज बाहर भेजा जा रहा है जहां वो अपने फोटोग्राफी के हुनर को निखार सके, अपने अपने कैमरे के साथ सब निकलने के लिये लॉबी में इकट्ठा हो गये, काश्वी की नजर निष्कर्ष पर पड़ी तो उसने दूर से ही सिर हिलाकर उसे हेलो कहा, निष्कर्ष ने भी मुस्कुराकर जवाब दिया। थोड़ी देर में वहां एक बस आ पहुंची जिसमें सवार होकर सभी को निकलना है पर जब काश्वी उस बस में चढ़ने लगी तो निष्कर्ष ने उसे रूकने का इशारा किया, काश्वी और उसके पार्टनर को निष्कर्ष ने रोक लिया, काश्वी को कुछ समझ नहीं आया लेकिन वो उस वक्त कुछ बोल भी नहीं पाई, चुपचाप वही खड़ी रही। जब सब चले गये तो काश्वी निष्कर्ष की ओर देखने लगी उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर
उसकी टीम को बस में क्यों नहीं जाने दिया गया, पूरी व्यवस्था देखने के बाद निष्कर्ष काश्वी और उसके पार्टनर रोहन के पास आया और कहा, चलो चलें वो दोनों हैरान हो गये और निष्कर्ष से सवाल किया, “कहां?” निष्कर्ष ने मुस्कुरा कर कहा, “अरे मैं लेकर जा रहा हूं स्पॉट पर अपनी कार में चलो”
अब भी दोनों को कुछ समझ नहीं आया पर फिर भी वो बिना कोई सवाल किये चुपचाप जाकर निष्कर्ष की कार में बैठ गये, कार में तीनों चुप थे पर काश्वी से रहा नहीं जा रहा था वो सीधे निष्कर्ष से पूछने में हिचकिचा रही थी तो उसने एक एसएमएस किया और निष्कर्ष से पूछा, “हम बस में क्यों नहीं गये, सीट तो थी”
ड्राइव करते हुए निष्कर्ष ने अपना फोन देखा तो काश्वी का मैसेज देखकर चौंक गया, उसकी कार की पिछली सीट पर बैठी काश्वी उसे एसएमएस कर रही थी, निष्कर्ष ने मैसेज देखा तो मुस्कुराने लगा, अपनी हंसी रोककर उसने कार के मिरर से पीछे बैठी काश्वी को देखा और फिर वापस ड्राइव करने लगा, काफी देर तक कोई जवाब नहीं मिला तो काश्वी ने फिर एसएमएस किया, “बोलो अभी हम क्यों कार में जा रहे हैं?” अब निष्कर्ष का फोन जब रिंग हुआ तो उसने काश्वी के मैसेज को पढ़कर गाड़ी सड़क किनारे की एक दुकान पर रोक दी, गाड़ी रुकते ही काश्वी की सांस अटक गई, उसे लगा अब तो पक्का
निष्कर्ष की डांट सुनने को मिलेगी, बार बार उसे डिस्टर्ब जो कर रही है काश्वी,
डरी सहमी काश्वी इंतजार कर रही है कि अब शायद कोई गुस्से वाली आवाज उसे सुनने को मिलेगी लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं, निष्कर्ष कार से बाहर निकलकर उस दुकान पर जाकर कुछ खरीदने लगा, काश्वी की हिम्मत नहीं हो रही थी निष्कर्ष की तरफ देखने की, उसी वक्त काश्वी के फोन की घंटी बजी, निष्कर्ष ने काश्वी की बात का जवाब दिया एसएमएस करके दिया।
मैसेज में लिखा था, “तुम्हें बस में प्रोब्लम होती है न इसलिये नहीं जाने दिया” मैसेज पढ़कर काश्वी सन्न रह गई, उसके लिये निष्कर्ष खुद ड्राइव करके कार ले जा रहा है ये बात हजम करना थोड़ा मुश्किल था क्योंकि फिर एक सवाल काश्वी के मन में उठा, क्यों? उसके लिये ही क्यों?
काश्वी ने फिर से मैसेज किया, “सिर्फ मेरे लिये इतनी दूर तक आये आप?”
निष्कर्ष गाड़ी की तरफ बढ़ गया चलते चलते उसने काश्वी का मैसेज पढा तो रुक कर उसे रिप्लाई करने लगा, निष्कर्ष ने लिखा, “अभी अपनी फोटोग्राफी के बारे में सोचो बाद में बात करेंगे”
काश्वी ने बाहर निष्कर्ष की तरफ देखा वो कार की तरफ बढ़ रहा था, काश्वी ने अपना फोन बंद करके रख दिया, उसे लगा अभी और बात करना शायद ठीक नहीं, एक घंटे के अंदर वो उस जगह पर पहुंच गये जहां उन्हें फोटो शूट करना है।
पहाड़ों के बीच से एक नदी गुजर रही है जहां के पानी पर आसमान की नीली और आस पास लगे पेड़ों की हरी छाया पड़ रही है बहती नदी का रंग कहीं सफेद, कहीं बेरंग तो कही हरा नीला होता नजर आ रहा है, इस जगह की खूबसूरती को कैमरे में कैद करना है उन्हें, हर टीम को एक दायरा बताया गया जिसमें रहकर उन्हें अपने कैमरे के रोल में इस जगह का एक-एक जर्रा उतारना है। काश्वी और रोहन को जो जगह मिली वो नदी का किनारा है, वहां खूबसूरत पेड़ भी हैं, हर तरफ ध्यान से देखने के बाद काश्वी को जिस चीज ने सबसे ज्यादा आकर्षित किया वो थी पानी पर बनती लहरें, बहती नदी की कलकल आवाज। पानी पर पड़ रही धूप की किरणों को देखकर काश्वी के चेहरे पर अलग सी रौनक देखी निष्कर्ष ने, काश्वी अपने कैमरे को लेकर इस खूबसूरत नजारे को हूबहू तस्वीर में ढाल लेना चाहती है, प्रकृति के इस खास नजारे की खासियत अपने कैमरे के एंगल से देखकर उन्हें तस्वीरें बनाकर वापस ले जाना चाहती है। काफी देर तक सब अपने काम में लगे रहे, निष्कर्ष भी एक कोने में बैठा अपने लैप टॉप पर अपना काम करता रहा, कुछ देर बाद जब सब शूट में बिजी थे तो निष्कर्ष काश्वी के पास गया और पूछा, “कैमरा ठीक चल रहा है ना फोकस में प्रोब्लम तो नहीं आ रही”
काश्वी ने मुड़कर देखा और कहा, “नहीं सब बढिया है आपने अच्छा समझाया था कल, अब प्रोब्लम नहीं है”
“गुड अच्छा है… ये जगह अच्छी है न फोटोग्राफी के लिये, हर साल यहां आता हूं पर हर बार ये जगह नई सी लगती है”, निष्कर्ष ने कहा
“आप हर साल यहां आते हैं?”, काश्वी ने पूछा
“हां पापा यही रहते हैं तो उनसे मिलने यहां आना पड़ता है और ये वर्कशॉप भी हम हर साल करते हैं तो आना हो ही जाता है”, निष्कर्ष ने जवाब दिया
“वो यहां आप दिल्ली में ऐसा क्यों?” अपने कैमरे का फोकस एडजस्ट करते हुए काश्वी ने पूछा
निष्कर्ष ने काश्वी की तरफ देखा, काश्वी थोड़ी घबरा गई और नजरें झुका कर बोली, “आपको जवाब नहीं देना तो कोई बात नहीं”
निष्कर्ष हंसने लगा और कहा, “तुम सवाल बहुत करती हो”
“और आप जवाब क्यों नहीं देते”, काश्वी ने भी पलट कर कहा
असाइनमेंट खत्म करने का वक्त होने लगा, काश्वी अपने काम के साथ साथ निष्कर्ष से बात भी करती रही, उनकी नई दोस्ती गहरी हो रही है, हां ये जरूर है कि इतनी देर साथ रहने के बाद भी वो एक दूसरे को सिर्फ पहचानते हैं जानने के लिये और वक्त जो चाहिए लेकिन तीन चार दिन के हिसाब से सब ठीक चल रहा है। निष्कर्ष और काश्वी दोनों को एक बात अजीब लग रही है कि जब भी एक दूसरे के साथ नहीं होते तो एक दूसरे के बारे में सोचते हैं, ऐसा होना स्वाभाविक भी है दोनों के लिये ये नया एहसास है कुछ तो है जो उन्हें जोड़ रहा है। अपना काम खत्म कर काश्वी और बाकी लोग वापस लौटने की तैयारी करने लगे। एक घंटे के बाद उन्होंने वापस लौटकर अपने अपने कैमरे से रोल निकाल कर फोटो डेवलप करने के लिये निष्कर्ष को दे दिया।