काश्वी अब थोड़ी कंफर्टेबल हो गई, काश्वी ने उत्कर्ष से पूछा, “आपने मेरी फोटोग्राफ देखी हैं?” उत्कर्ष ने सिर हिला कर हां कहा और ये भी कहा कि काश्वी को पहला प्राइज देने का आखिरी फैसला उन्होंने ही लिया था
“काश्वी तुम्हारी फोटोग्राफी तुम्हारी उम्र और तर्जुबे के हिसाब से अच्छी है लेकिन अगर तुम्हें इसे और बेहतर करना है तो बहुत मेहनत करनी पड़ेगी, मैं तुम्हें यही सलाह दूंगा कि जितना हो सके ट्रेवल करो, अलग-अलग जगह जाओ, अलग-अलग लोगों से मिलो, जितना ज्यादा दुनिया देखोगी तुम्हारी समझ और परख उतनी ही ज्यादा बढ़ेगी, और ये तुम्हारी तस्वीरों
में भी नजर आएगा” काश्वी ये सब सुनकर खुश हो गई उसे जैसी इंस्पीरेशन उत्कर्ष की तस्वीरों को देखकर मिलती थी
उससे कही ज्यादा आज उनसे मिलकर मिली, उत्कर्ष ने आखिर में ऑल द बेस्ट कहा और काश्वी वहां से बाहर आ गई
जब वो वापस डिनर हॉल में पहुंची तो ज्यादातर लोग खाना खाकर वहां से जा चुके थे लेकिन निष्कर्ष वही उसका इंतजार कर रहा था, काश्वी सीधे निष्कर्ष के पास आई, निष्कर्ष काश्वी का चेहरा पढ़ने की कोशिश कर रहा था उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके पापा ने उसे क्यों बुलाया, हालांकि काश्वी की आंखों में चमक देखकर निष्कर्ष कुछ निश्चिंत जरुर हुआ। काश्वी के पास आते ही निष्कर्ष ने उससे डिनर के लिये पूछा, काश्वी ने हां में जवाब दिया तो निष्कर्ष ने उसे बैठने का इशारा किया, अपनी टीम से कहकर उसने खाना लगवाया।
“आपने खाना खा लिया?”, काश्वी ने निष्कर्ष से पूछा
निष्कर्ष ने ना में सिर हिलाया तो काश्वी ने उसे भी खाने के लिये कहा, निष्कर्ष ने पूछा नहीं पर काश्वी उसका चेहरा देखकर समझ गई कि निष्कर्ष जानना चाहता है अंदर हुआ क्या
खाना खाते-खाते काश्वी ने निष्कर्ष को सब बताया और ये बोलना भी नहीं भूली कि उसकी और उसके पापा की सोच में कितना फर्क है काश्वी ने निष्कर्ष से इस अंदाज में बात की कि उसे बुरा भी न लगे
काश्वी ने कहा, “कितना अजीब है, उत्कर्ष सर को लगा कि मेरी तस्वीरें मेरी उम्र से ज्यादा मेच्योर है और इन्हीं तस्वीरों में आप जिंदगी ढू़ंढ नहीं पाये थे”, ये कहकर काश्वी निष्कर्ष का चेहरा देखती रही, उधर निष्कर्ष को लगा जैसे उसकी दुखती रग पर किसी ने हाथ रख दिया, निष्कर्ष कुछ कहना चाह रहा था लेकिन उसने खुद को रोक लिया बस इतना कहा कि, “हां, बहुत फर्क है हम दोनों में और शायद ये फर्क हमेशा से था”
काश्वी को लगा निष्कर्ष कुछ ज्यादा सीरीयस हो गया तो उसने बात पलटते हुए कहा, “ये जगह बहुत सुंदर
है क्या हम यही रहेंगे एक महीना?” निष्कर्ष ने हां में जवाब दिया और काश्वी को उसके रूम की तरफ बढ़ने का इशारा किया, दानों साथ उठे और चलने लगे, लेकिन इसके बाद निष्कर्ष ने एक शब्द भी नहीं कहा वो काश्वी को उसके रूम के बाहर छोड़ कर चुपचाप चला गया। काश्वी हैरानी से उसे जाते हुए देखती रही उसे समझ नहीं आया कि उसकी बात से निष्कर्ष चिढ़ गया या वजह कुछ और है?
कुछ देर बाद काश्वी सोने की तैयारी कर रही थी और तभी उसके मोबाइल पर एक मैसेज आया,
“जिंदगी ढूंढने निकला जब भी कहीं... कभी,
खुद से सामना हो गया
अपने में ही गुम था मैं और
जिंदगी दरवाजे पर दस्तक दिए बिना गुजर गई…”
मैसेज भेजने वाले का नंबर काशवी के फोन में सेव नहीं था, उसे समझ नहीं आया कि ऐसा मैसेज उसे किसने किया, उसने रिप्लाई में उसने पूछा कि वो कौन है? जवाब आया निष्कर्ष… काश्वी को लगा निष्कर्ष उसकी बातों की वजह से कुछ
ज्यादा परेशान है तो उसने सॉरी का मैसेज किया, “सॉरी क्यों?” निष्कर्ष का जवाब आया
‘मैंने कुछ गलत कहा हो तो आई एम सॉरी”, काश्वी ने लिखा
“नहीं ऐसा तो कुछ नहीं कहा तुमने” निष्कर्ष ने एसएमएस किया
“तो फिर इतनी सीरीयस लाइनंस क्यों?” काश्वी ने पूछा
“बस यूं ही कर दिया, लगा शायद तुम समझोगी”, निष्कर्ष ने जवाब दिया
“हां समझ गई पर ऐसा क्यों है ये नहीं समझी”, काश्वी ने मैसेज किया अब की बार निष्कर्ष जैसे कुछ संभल गया और उसने बस गुड नाइट का मैसेज किया।
काश्वी ने भी अब कुछ नहीं पूछा और वापस गुड नाइट कह कर फोन किनारे रख कर सो गई सुबह की पहली किरण जब खिड़की के पर्दे से अंदर आई तो सीधे काश्वी की आंखों में लगी, उसने आंखे खोली तो बाहर की ताजगी कमरे में दाखिल होती महसूस की, अपने फोन में टाइम देखा तो सुबह के छह बजे हैं, काश्वी ने सोचा अब जब वो उठ गई है तो उसके पास वर्कशॉप से पहले करीब चार घंटे का फ्री टाइम है, सुबह दस बजे से उसकी वर्कशॉप शुरु होनी है, ये ख्याल आते ही उसकी आंखों से नींद पूरी तरह गायब हो गई, वो अपने बिस्तर से उठ कर खिड़की के पास गई तो बाहर वो नजारा था जो रात के अंधेरे में खो गया था, जिस घर में वो सब रूके हैं वो एक उंचे पहाड़ पर है जहां से आस-पास के खूबसूरत नजारे साफ दिख्र रहे है, वादियों का ये नजारा एक परफेक्ट ग्रीन फ्रेम की तरह लगा उसे, इस नजारे को काश्वी एक फोटोग्राफर की नजर से
देखने लगी और उसे समझ भी आने लगा कि उत्कर्ष यहां क्यों रह रहे हैं, इतनी खूबसूरत जगह पर प्रकृति का एक-एक अंश अगर कैमरे में उतारा जाए तो शायद सालों बीत जाये, काश्वी जल्दी से बिस्तर से उठकर तैयार होने चली गई, एक घंटे के बाद अपना बैग और कैमरा लेकर वो बाहर निकल गई। सुबह सुबह की हल्की ठंड में काश्वी अपने कैमरे के साथ चारों तरफ देखने लगी, उंचे-उंचे शान से खड़े पहाड़ों की तस्वीरें खींचने से उसने शुरुआत की, फिर पेड़, पत्ते और फूल, हर रंग को अपने साथ ले अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहती है काश्वी
जब अकेले होते हैं तो उन चीजें पर भी नजर जाती है जो सबके साथ दिखाई नहीं देती, काश्वी को एक हरे पत्ते पर बैठी छोटी सी तितली दिखाई दी, अपनी नजर से देखने के बाद अपने कैमरे में उसे हूबहू उतारने की कोशिश में काश्वी लगी रही पर उसके कैमरे का फ्रेम वैसा नहीं लग रहा था जैसा उसे आंखों से दिख रहा था, क्या था ये, वो तितली जिसके पंखों में रंगों का अजीब सा लेकिन सुंदर ताना बाना था कैमरे का फ्रेम उस बारिकी को कैप्चर नहीं कर पा रहा, काश्वी ने बहुत कोशिश की, हर एंगल से उसे तस्वीर बनाने की सोची लेकिन कहीं से भी वो खूबसूरती उसके कैमरे में उतर नहीं पा रही है जो उसे दिखाई दे रही है, काश्वी इसी उधेड़बुन में थी कि ये कैसे होगा, उसका कैमरा तो हाईटेक था फोकस भी ठीक था तो फिर क्यों नहीं, जब तक वो ये सोच रही थी वो तितली हवा के एक झोके के साथ वहां से उड़ गई, पर अपने पीछे काश्वी के लिये एक सवाल छोड़ गई कि क्या जो हम देख रहे हैं उसे उसी रुप में उसी अंदाज और उसी भावना के साथ वो महसूस करेगा जो उसकी तस्वीर देखेगा, अगर ये होगा तो कैसे?
इसी सब में काफी देर हो गई, काश्वी को समय का पता ही नहीं चला, उसने टाइम देखा तो बस पद्रंह मिनट के बाद उसकी क्लास शुरु होनी है, वो जल्दी से अपना सामान समेट कर वापस लौट आई, लेकिन वापस आकर उसने देखा कि कोई भी अपने रुम में नहीं है, सेंट्रल हॉल भी खाली है पूरी बिल्डिंग में खामोशी है, उसे पता ही नहीं चला कि वो कहां जाये, काश्वी थोड़ा घबरा गई और इसी घबराहट के बीच उसे याद आया कि निष्कर्ष का नंबर उसके पास है उसे फोन करके पता कर सकते हैं कि क्लास हैं कहां?
काश्वी ने निष्कर्ष को फोन किया, निष्कर्ष ने फोन उठाया तो वो कुछ हैरान था, फोन उठाते ही बोला, “हां काश्वी बोलो, तुम क्लास में से कैसे फोन कर रही हो?” निष्कर्ष का सवाल सुनकर काश्वी चुप हो गई फिर झेपते हुए बोली, “मैं क्लास में नहीं हूं और मुझे पता भी नहीं क्लास है कहां?” निष्कर्ष ने फौरन ही पूछा,
“मतलब कहां हो तुम? सबको तो बताया था क्लास कहां है फिर तुम कहां हो?”
“वो मैं लेट हो गई सब लोग जा चुके हैं और मुझे पता नहीं कहां जाना है अगर आप हैल्प करते तो”, ये कहकर काश्वी
चुप हो गई
“हां ठीक है एक काम करो तुम सेंट्रल हॉल आओ मैं आता हूं”, निष्कर्ष ने कहा
करीब दो मिनट के अंदर ही निष्कर्ष वहां पहुंच गया, काश्वी को डरा हुआ देखा तो निष्कर्ष ने उससे कुछ पूछा नहीं बस उसे अपने साथ चलने का इशारा कर दिया निष्कर्ष ने काश्वी को क्लास के अंदर छोड़ा, उत्कर्ष क्लास ले रहे थे और निष्कर्ष के साथ काश्वी को देखकर चौंक गये, उत्कर्ष ने कहा, “काश्वी तुम लेट हो”, “वो रास्ता भूल गई, मैं छोड़ने आया हूं”, काश्वी के कुछ कहने से पहले निष्कर्ष ने जवाब दिया
उत्कर्ष ने दोनों को गौर से देखा और फिर काश्वी को बैठने का इशारा किया, निष्कर्ष चुपचाप वहां से चला गया