रात को अकेले अपने कमरे में काश्वी ने उन किताबों में से एक को पढ़ना शुरू किया, उसे पढ़ते हुए काश्वी को निष्कर्ष की बात याद आने लगी, निष्कर्ष ने उसे ये किताबें इसलिये दी जिससे वो अकेला ना महसूस करें और अब इन किताबों को काश्वी ने अपना दोस्त बना लिया, पढ़ते-पढ़ते काश्वी कब सो गई उसे पता ही नहीं चला। सुबह के आठ बजे काश्वी की नीदं उसके फोन पर बज रही घंटी से खुली, उसने देखा निष्कर्ष का फोन आ रहा है निष्कर्ष ने बताया कि वो ठीक ठाक पहुंच गया, काश्वी ने भी निष्कर्ष को बताया कि वो वही किताब पढ़ रही थी जो निष्कर्ष ने दी। निष्कर्ष खुश हो गया और उसने भी बताया कि रास्ते भर उसने भी एक किताब पढ़ी, दोनों अपनी-अपनी किताब के बारे में बताने लगे और इन्हीं बातों में आधा घंटा बीत गया। काश्वी ने टाइम देखा तो निष्कर्ष को बाद में बात करने को कहा और अपनी क्लास के लिये तैयार होने चली गई।
काश्वी का मूड अब फ्रेश हो गया, क्लास में उत्कर्ष के सारे सवालों के जवाब दिये काश्वी ने, जिससे उत्कर्ष भी काफी इंम्प्रेस थे। क्लास के बाद सभी काश्वी की तारीफ करने लगे और कहने लगे कि अब तो काश्वी ही उत्कर्ष सर की सबसे फेवरेट स्टूडेंट है। एक हफ्ते तक यही सब चलता रहा, पहले क्लास, फिर फोटोग्राफी और रात में काश्वी किताबें पढ़ने लगी, जब भी निष्कर्ष को अपने काम से फुर्सत मिलती वो काश्वी को फोन कर लेता। अब उनकी दोस्ती और गहरी होने लगी, अपनी-अपनी किताबों की कहानियां शेयर करते करते घंटों बातें करते बिताने लगे। सच ही है शायद जब दो दोस्त दूर होते हैं तो ज्यादा करीब आ जाते हैं, सामने रहते हुए जो बातें नहीं हो पाती वो फोन पर आसानी से हो जाती हैं क्योंकि तब लगता है कि थोड़ी
सी भी फुर्सत हो तो बात कर ली जाए, काश्वी और निष्कर्ष के साथ भी यही हुआ, एक दूसरे से दूर हैं लेकिन अब हर वक्त साथ हैं। एक हफ्ते से ज्यादा हो गया, निष्कर्ष दिल्ली से वापस नहीं लौटा, इधर काश्वी अपनी क्लास में पूरा ध्यान लगा रही है, उत्कर्ष भी काश्वी से इम्प्रेस थे तो उस पर खास तौर से फोकस कर रहे हैं, कहीं न कहीं उत्कर्ष को भी काश्वी में अपनी झलक नजर आ रही है। एक शाम क्लास के प्रोजेक्टर पर काश्वी की फोटो देखते हुए उत्कर्ष उसे समझा रहे थे और बातों बातों में उत्कर्ष ने काश्वी से उसके बारे में काफी बातें की, आम तौर पर अपने स्टूडेंटस से दूरी बनाने वाले उत्कर्ष अब काश्वी से खुलकर बात करने लगे, शायद ये काश्वी की खूबी है कि उससे बात करने के लिये किसी को सोचना नहीं पड़ता, फिर उसका टेलेंट भी उत्कर्ष को उसके बारे में और जानने के लिये उकसा रहा है।
काश्वी पहले तो उत्कर्ष से झिझकते हुए बात करती रही पर कुछ देर बाद वो सहज हो गई। निष्कर्ष और उसके पापा के बीच जो दूरी निष्कर्ष की बातों से उसे लगी थी वो भी उसके जहन में कहीं चल रही है। निष्कर्ष का ख्याल मन में आते ही काश्वी उत्कर्ष से बात करने में कुछ असहज महसूस करती पर जब उत्कर्ष की बातों से उसे समझने की कोशिश करती तो कुछ और ही तस्वीर बनती नजर आती। निष्कर्ष की कहानी सुनकर उत्कर्ष के बारे में जो राय काश्वी ने बनाई थी, वो उत्कर्ष से बात
करने के बाद कुछ और टूटती बनती नजर आ रही है। कभी कभी हम किसी के बारे में कुछ सुनकर राय बना लेते हैं लेकिन जब उन्हें करीब से जानने का मौका मिलता है तो अपनी समझ से उसे परखने की कोशिश करते हैं, हम में से हर कोई, हर बार ये करें जरूरी नहीं लेकिन ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए हर इंसान न तो हर वक्त अच्छा रह सकता है और न ही हर वक्त बुरा हो सकता है। वक्त और हालात इंसान को अच्छा या बुरा बनने पर मजबूर करते हैं, कुछ लोग कमजोर होते हैं और हालात को बदल नहीं पाते लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो हालात को अपने हिसाब से ढाल कर खुश रहते हैं।
उत्कर्ष के बारे में अब काश्वी अपने तरीके से सोचने लगी, निष्कर्ष की बातें याद थी उसे लेकिन उसे लगा कि अब जब मौका मिला है उत्कर्ष को जानने का तो उनसे और बात करके वो उनका एंगल भी समझ सकती है। काश्वी ने उत्कर्ष से उनके अनुभवों के बारे में कई बार बात की, उत्कर्ष अपने करियर में आए उतार चढ़ाव के बारे में बड़े चाव से काश्वी को बताते रहे, शायद उन्हें भी लगा कि काश्वी को बहुत आगे जाना है और उनका अनुभव उसके काम आ सकता है, लेकिन काफी कोशिश
के बाद भी काश्वी उत्कर्ष से उनकी पर्सनल लाइफ के बारे में बात नहीं कर पाई शायद उसे डर था कि कही उत्कर्ष को बुरा न लगे
काश्वी ने उत्कर्ष के बारे में निष्कर्ष को कुछ नहीं बताया, वो उससे बाकी हर चीज की बातें करती रही, शायद काश्वी को डर था कि उत्कर्ष के बारे में सुनकर कहीं निष्कर्ष को बुरा न लगे, कहीं इससे उनकी दोस्ती में कोई फर्क न आये, ये डर इसलिये अब और बढ़ रहा था क्योंकि उत्कर्ष से बात कर काश्वी को लगा कि वो एक अच्छे इंसान हैं और काफी इमोशनल भी हैं, हां दोनों में एक बात कॉमन लगी काश्वी को कि दोनों ही अपने इमोशंस को जल्दी जाहिर नहीं करते शायद यही वजह थी कि दोनों में दूरी आ गई।
इधर दिल्ली में निष्कर्ष जल्दी - जल्दी काम खत्म करके वापस लौटने की तैयारी में लग गया। निष्कर्ष ने सोचा कि वो काश्वी को सरप्राइज देगा और बिना बताएं उसके सामने जाकर खड़ा हो जाएगा, पूरा प्लान हो गया, दो दिन से निष्कर्ष ने काश्वी से बात भी नहीं की उसका फोन उठाया नहीं, मैसेज के जवाब में भी लिखा कि वो बिजी है बाद में बात करेगा, काश्वी ने भी फिर उसे डिस्टर्ब नहीं किया। वापस लौटते हुए पूरे रास्ते निष्कर्ष काश्वी के बारे में सोचता रहा, एक प्यारा सा तोहफा भी उसने काश्वी के लिये लिया, निष्कर्ष यही सोच रहा था कैसे वो काश्वी को ये तोहफा देगा और जब उसके सामने जाएगा तो वो कैसे रिएक्ट करेगी, कई घंटे का रास्ता आज निष्कर्ष को कई दिन जितना लंबा लग रहा है वो खुश है कि आज उस जगह उसकी मां के बाद उसका इंतजार करने वाला कोई है, जिसके लिये उसे जल्दी पहुंचना है।
निष्कर्ष के लिये काश्वी कुछ स्पेशल बन गई है, उसके बारे में सोचते ही निष्कर्ष के चेहरे पर स्माइल आ जाती है उसकी छोटी छोटी बातें भी उसे याद आती हैं, निष्कर्ष बहुत दिनों के बाद किसी के लिये इतना सोच रहा है, उससे मिलना का इंतजार कर रहा है। कई बार उसने सोचा कि अपने आने के बारे में काश्वी को बता दें पर फिर ये सोचकर रूक गया कि काश्वी उसे अचानक सामने देखकर ज्यादा खुश होगी।
शाम के पांच बजे निष्कर्ष वहां पहुंच गया, अपना बैग रखकर वो सबसे पहले काश्वी से मिलने गया, काश्वी के रूम में जाकर
देखा तो वो लॉक था वहां कोई नहीं था, निष्कर्ष थोड़ा हैरान था सोचने लगा कि किस वक्त वो कहां हो सकती है, उसने अपने स्टॉफ से पूछा तो पता चला कि वो क्लास में है।
निष्कर्ष क्लास की तरफ बढ़ रहा था थोड़ी पास पहुंचने पर उसे किसी के हंसने की आवाज आने लगी, एक आवाज उसके पापा की थी और दूसरी काश्वी की दरवाजे से अंदर घुसते ही निष्कर्ष ने देखा कि उत्कर्ष और काश्वी बात कर रहे थे उनके अलावा वहां और कोई नहीं था। उत्कर्ष की नजर निष्कर्ष पर पड़ी तो उन्होंने पूछा, “अरे निष्कर्ष तुम कब आये?” इतना
कहते ही काश्वी ने मुड़कर देखा तो सामने निष्कर्ष था काश्वी उसे देखकर चौंक गई उसने सोचा भी नहीं था कि निष्कर्ष यूं अचानक वहां आ जाएगा पर इस वक्त इस कमरे में सबसे ज्यादा शॉक में कोई है तो वो निष्कर्ष है, उसे कुछ समझ नहीं
आया, इस तरह काश्वी और उत्कर्ष को बिना किसी औपचारिकता के बात करते देखकर निष्कर्ष को बहुत
अजीब लगा उसे समझ नहीं आया वो क्या कहें, उसने बस इतना ही कहा कि हां बस अभी पहुंचा, चलो आप लोग बिजी हो, बाद में मिलते हैं, ये कहकर वो वहां से चला गया।