करीब दो घंटे तक सबकी तस्वीरों पर खूब चर्चा हुई गलतियों और खूबियों को बताने के बाद उत्कर्ष वहां से चले गये,
निष्कर्ष अब भी चुप रहा उसने काश्वी से कोई बात नहीं की, दोनों वहां से कोरिडोर की तरफ निकले, काश्वी खुश है उसके चेहरे पर मुस्कान है लेकिन निष्कर्ष ने अब तक कुछ नहीं कहा, उसके हाथ में काश्वी की तस्वीरें हैं जिसे वो लगातार देख रहा है
काश्वी ने उससे पूछा “कैसी है, कौन सी अच्छी लगी?”
निष्कर्ष ने कुछ नहीं कहा, वो वहीं रुक गया
काश्वी कुछ कदम आगे निकल गई पर उसे एहसास हुआ कि निष्कर्ष उसके साथ नहीं चल रहा, वो रुकी और पीछे मुड़ी
“क्या हुआ, कहां खो गये, कुछ बोलो तो”, काश्वी ने कहा
निष्कर्ष ने काश्वी की तरफ देखा और कहा चलो तुम्हें कुछ दिखाता हूं, ये कहकर निष्कर्ष वहां से चल दिया
काश्वी उसके पीछे चलती रही, सैकंड फ्लोर के दूसरे कमरे का गेट निष्कर्ष ने खोला, निष्कर्ष अंदर जाकर कुछ ढूंढने लगा पर काश्वी उस कमरे को ध्यान से देखने लगी, पहाड़ों के बीच वो कमरा जैसे राजस्थान के किसी गांव की तस्वीर पेश कर रहा हैं वहां की हर एक चीज में कुछ अलग सी बात है, काश्वी हैरान रह गई पर उसने कुछ नहीं कहा, पहले वो ये जानना चाहती है कि आखिर क्यों निष्कर्ष उसे यहां लाया और वो ढूंढ क्या रहा है?
कुछ सैकंड में निष्कर्ष को वो चीज मिल गई.. एक फोटो एलबम है उसके हाथ में, उसने एलबम खोलकर काश्वी को दिखाया, उसमें कुछ पुरानी फोटो हैं जो बिलकुल वैसी ही है जैसी काश्वी ने ली, नीला रंग, नीला पानी और जिंदगी की कहानी बिलकुल वही अंदाज, काश्वी देखकर हैरान हो गई, उसने निष्कर्ष से पूछा, “ये फोटो किसकी की है ये तो बिलकुल
वैसी ही है”,
निष्कर्ष ने गहरी सांस ली और मुस्कुरा कर कहा, “हां देखो बिलकुल तुम्हारी तस्वीरों की तरह हैं न”
“हां एकदम वही है पर ये काफी पुरानी लग रही है कितना अमेजिंग है ये, बताओ तो किसकी है ये?”, काश्वी ने पूछा
“पापा ने ली थी ये फोटो जब वो पहली बार यहां आए थे, उस वक्त वो बड़े फोटोग्राफर नहीं थे बस यूं ही थोड़ा बहुत फोटोग्राफी करते थे, जब मां से पहली बार मिले तो उन्होंने यही फोटो दिखाई थी और तब से ये फोटो सिर्फ मां के लिये थी, इसे कभी किसी एग्जिबिशन में नहीं लगाया गया और अब देखो तुमने भी वैसी ही फोटो खींची”
काश्वी बहुत ध्यान से उन तस्वीरों को देखने लगी, हूबहू वही, वहीं अंदाज और वैसी ही सोच, क्या दो लोग एक से हो सकते है? या उनका नजरिया एक सा हो सकता है? अलग बैकग्राउंड, अलग समय में रहे दो लोगों की तस्वीरें एक सी कैसे? ये सवाल काश्वी और निष्कर्ष के मन में उठ रहा है पर कुछ चीजें हमारी समझ के बाहर होती है वो बस होती हैं।
काश्वी के लिये ये एहसास बहुत अलग है कि वो एक सफल फोटोग्राफर की तरह फोटो खींच रही है शायद सुखद भी है क्योंकि अब उसे पता है कि वो सही दिशा में है पर निष्कर्ष कुछ और सोच रहा है, उसे शायद ये बात कुछ चोट पहुंचा रही है, उसके चेहरे के भाव बता रहे है कि वो इससे खुश नहीं है उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें हैं और आंख में आंसू के कुछ कतरे भी, शायद उसे अपनी मां की याद आ गई, वो कमरा उन्हीं का था
काश्वी ने निष्कर्ष को उसकी यादों के झरोखे से बाहर निकाला,
‘निष्कर्ष.. निष्कर्ष… कहां हो आप?” काश्वी ने पूछा
निष्कर्ष झटके से काश्वी की तरफ देखने लगा
काश्वी ने फिर पूछा, “आप ठीक हो ना?”
“हां”, एक लंबी सांस भरने के बाद निष्कर्ष ने कहा
“क्या हुआ कहां खो गये थे आप?” काश्वी ने पूछा
नम आंखों के साथ निष्कर्ष ने मुस्कुराते हुए कहा, “कुछ नहीं बस यूं ही मां की याद आ गई”
“मां, कहां है मां?”, काश्वी ने पूछा
“मां नहीं है मेरे साथ, चार साल पहले गुजर गई”
“ओह आई एम सॉरी”, काश्वी ने कहा
“मैं कभी इस कमरे में नहीं आता, यहां उनकी यादें बसी है, आज तुम्हारी वजह से आया”, निष्कर्ष ने कहा
“यादें तो अच्छी होती है उनसे भागना क्यों? ये कमरा तो लगता है उन्होंने अपने हाथ से सजाया है कितना सुंदर है फिर क्यों नहीं आना चाहते आप यहां?”, काश्वी ने पूछा
“यादें हमेशा अच्छी हो ये जरूरी तो नहीं, कुछ यादें बुरे सपनों की तरह भी होती है जिसे कोई दोबारा नहीं देखना चाहता”, निष्कर्ष ने जवाब दिया
“अगर आप इसके बारे में बात करना चाहते हो तो मैं आपके साथ हूं, कई बार किसी से बात करने से मन हल्का होता है” काश्वी निष्कर्ष की झिझक को समझ रही थी इसलिये उसे भरोसा दिलाने के लिये कहा सच भी है अभी सिर्फ कुछ ही दिन हुए है उन्हें मिले, इतनी जल्दी अपनी जिंदगी किसी के सामने खोल कर रख देना आसान नहीं होता, सब तो नहीं पर कुछ लोग ऐसे होते है जो आसानी से किसी को अपनी जिंदगी में शामिल नहीं करते, वक्त लगता है भरोसा करने में, वक्त लगता है ये समझने में कि वाकई कोई आपका दोस्त है या नहीं
निष्कर्ष को ये सुनकर अच्छा लगा कि काश्वी इतनी समझदारी भरी बातें कर रही है और शायद अब उसे भी काश्वी को सब बताने में कोई झिझक न हो पर फिर भी वो कुछ नहीं बोला, निष्कर्ष को लगा कि अभी शायद सही वक्त नहीं है अपनी जिदंगी की टेंशन काश्वी को देकर वो उसे परेशान नहीं करना चाहता है निष्कर्ष के मन में यही चल रहा है कि काश्वी उस पर नहीं अपने काम पर ज्यादा ध्यान दे निष्कर्ष ने घड़ी में समय देखा, रात के 11.30 बज रहे हैं, उसने काश्वी से बहुत प्यार से कहा,
“अभी बहुत रात हो गई है हम कल बात करते हैं, चलो तुम्हारे कमरे तक छोड़ देता हूं अब सोने का टाइम है”
“ठीक है”, कह कर काश्वी एलबम को वही रखकर बाहर जाने लगी
दिनभर जो होता है उसे सोने से पहले हम दोहराते है बुरी बातें भी दिमाग पर हावी रहती हैं और अगर कुछ अच्छा हुआ हो तो बिस्तर पर लेटे-लेटे उसे सोचकर एक बार फिर मुस्कुरा लेते हैं, काश्वी और निष्कर्ष की नींद भी आज उड़ी हुई है निष्कर्ष सोच रहा है कि क्या काश्वी उसकी इतनी अच्छी दोस्त है कि वो उसे सब बताने को तैयार हो गया और काश्वी ये सोच रही है कि क्या निष्कर्ष उसे इतना अच्छा दोस्त मानता है कि वो उसे अपने बारे में सब कुछ बताये, कई बार दोस्ती एक पल में हो जाती है और कई बार सालों साथ रहने के बाद भी ये सवाल उठता है कि क्या वाकई ऐसे दोस्त हैं कि अपने दिल की हर बात शेयर कर सकें? निष्कर्ष और काश्वी अभी दोस्ती के पहले पड़ाव पर हैं जहां दो लोग मिलते हैं और एक दूसरे का साथ उन्हें पंसद होता है, धीरे-धीरे बात करते-करते अच्छे और फिर अगर सब ठीक रहा तो बहुत अच्छे दोस्त बनते हैं, शुरुआत अच्छी थी और अब दोनों एक दूसरे के बारे में सोचने भी लगे हैं इसी सोच के बीच कब दोनों को नींद आ गई पता नहीं चला
अगले दो दिन थोड़े से रिलेक्स होने वाले हैं, पहला असाइनमेंट पूरा होने के बाद क्लास का टेंशन नहीं, थोड़ा मजा करने का मौका है, पूरे ग्रुप को कहा गया कि वो दो दिन के लिये बाहर घूमने जा रहे हैं,
काम के बीच आराम की खबर सुनकर सब खुश हो गये, पूरे ग्रुप ने अपना अपना सामान पैक किया और लॉबी में पहुंच गये। रिजॉर्ट से एक घंटे की दूरी पर एक पिकनिक स्पॉट है, पहाड़ों के बीच एक सुकून भरी खूबसूरत जगह। निष्कर्ष हर साल इस वर्कशॉप में आने वाले स्टूडेंटस के लिये ये ट्रिप आर्गेनाइज करता है पर इस बार वो खुद भी उनके साथ हो लिया, शायद काश्वी में उसे भी एक दोस्त मिल गया जिसके साथ वो इंजॉय कर सकता है।
सब निकलने के लिये तैयार हो गये, गेट पर उनके लिये बस खड़ी थी जिसके पास जाकर निष्कर्ष ने पिछली बार की तरह ही काश्वी को अंदर जाने से रोक दिया, इस बार उसने सबसे कहा कि अगर कोई उसके साथ उसकी कार में आना चाहता है तो आ सकता है, ग्रुप के बाकी लोग तो एक साथ रहना चाहते थे एक दूसरे के साथ घुल मिल गये है इसलिये कोई भी कार में जाने को राजी नहीं हुआ, काश्वी भी चाहती है कि सब साथ रहे तो जब निष्कर्ष ने उससे पूछा तो उसने सिर्फ इतना कहा, “आप भी चलो बस में सबके साथ” निष्कर्ष ने काश्वी को देखा और कहा,
“पर तुम्हें प्रोब्लम होगी ना?”
“नहीं, कुछ नहीं होगा, हम सबके साथ मस्ती करेंगे, मेरे पास दवाई है कुछ होगा तो, बस चलो”, काश्वी ने निष्कर्ष को बस में चलने का इशारा किया
निष्कर्ष मुस्कुराते हुए काश्वी के पीछे-पीछे बस में चढ़ गया, बस चलते ही सबकी मस्ती शुरू हो गयी कोई बातें कर रहा है तो कोई गाने गा रहा है और काश्वी फिर अपने कैमरे से फोटो खींचने में बिजी हो गई पर इस बार वो अकेली नहीं, उसके साथ वाली सीट पर निष्कर्ष है और उन दोनों के साथ पूरा ग्रुप, अनजान लोग नहीं अब दोस्तों के बीच खुलने लगे निष्कर्ष और काश्वी एक और सफर, सफर मस्ती और मजे का, आमतौर पर संजीदा और चुपचाप रहने वाला निष्कर्ष भी आज खुलकर इस सबको इंजॉय कर रहा है, खिड़की से बाहर देखते हुये निष्कर्ष कभी-कभी चुपके से काश्वी को भी देख लेता है, काश्वी ही तो है जिसकी वजह से उसका फिर से बिंदास होकर जीने का मन कर रहा है, निष्कर्ष दिखने में तो जिंदादिल और एक नॉर्मल इंसान लगता है लेकिन वो अपने काम को लेकर बहुत गंभीर है और ये सब मस्ती मजा करना कई साल पहले छोड़ चुका है
हम सबकी जिदंगी में एक वक्त ऐसा भी आता है जब सब कुछ स्थिर हो जाता है जब जिदंगी बोरिंग लगने लगती है एक ही ढर्रे पर चलती हुई, जो जहां होता है वहीं रह जाता है कहीं पहुंचने का मन नहीं होता, बस जैसे हैं वैसे ही रहते हैं, निष्कर्ष भी
यूंही बस चल रहा है पर वो हमेशा से ऐसा नहीं है, जिंदगी में मुश्किल दौर से गुजरकर वो जिंदगी जीने का अंदाज भूल गया लेकिन आज वो खिड़की से अंदर आती हवा को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा है, काश्वी की तरह खुद को आजाद महसूस
करना चाहता है वो, आज निष्कर्ष सोच रहा है कि ऐसा उसकी जिंदगी में क्या है जिसके लिये वो दिन रात एक कर सकता है
जिसका इंतजार उसे भी बैचेन कर सकता है, जवाब अभी तो उसके पास नहीं है पर शायद जल्द मिलने वाला है, फिलहाल वो इस पल को जीना चाहता है कुछ देर बाद सब उस जगह पहुंच गये, एक सुंदर सा नेचर पार्क और रिजॉर्ट, चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा, बस से नीचे उतरकर इस खूबसूरत जगह को देख काश्वी वहीं रुक गई, निष्कर्ष ने उसे चलने को कहा तो उसने झटके से उसकी तरफ देखा‘ क्या हुआ?” निष्कर्ष ने पूछा
“कितनी अच्छी जगह है ये, बहुत सुंदर”, काश्वी ने जवाब दिया
“हां बहुत सुंदर है ये, दो दिन रहो यहां, फोटो लो जी भरके”, निष्कर्ष ने कहा
“ओह, दो दिन मुझे यही रहना है”, काश्वी ने खुश होकर कहा
“हां जो पहली बार यहां आता है वो यही कहता है, चलो अंदर तो चलो बहुत कुछ है यहां”, निष्कर्ष ने कहा
इस छोटी सी जगह में काफी कुछ है, रहने के लिये छोटी-छोटी हट्स जैसे पहाड़ों के घर, थीम पार्क, रेस्टोरेंट और एम्यूजमेंट पार्क भी, सब अपनी अपनी पंसद की जगह पर चले गये, काश्वी हर जगह को ध्यान से देखने लगी जहां उसे अच्छा लगता वहीं फोटो खींचने लगती, कैमरे के लेंस में अब सामने निष्कर्ष दिखा उसे, निष्कर्ष को देखकर मुस्कुराते हुए काश्वी ने उसकी भी तस्वीर ले ली, फ्लैश देखकर निष्कर्ष चौंक गया
“मेरी नहीं”, निष्कर्ष जोर से चिल्लाया
पर काश्वी का कैमरा रुक नहीं रहा, “अब बस सुनो मेरी बात”, निष्कर्ष ने कैमरे के लेंस पर हाथ रखते हुए कहा
“ओ के बोलो”, काश्वी रूक गई
‘तुम्हें भूख नहीं लगी?”, निष्कर्ष ने पूछा
“हां लगी तो है, चलो कुछ खायें”, काश्वी ने जवाब दिया
दोनों रेस्टोरेंट में अपनी पंसद का खाना ऑर्डर किया, इधर उधर की बातें होने लगी, इसी बीच काश्वी ने निष्कर्ष से उसके काम के बारे में पूछा, निष्कर्ष ने बताया कि वो कुछ साल से घर से दूर है पहले पढ़ाई की वजह से और अब जॉब के लिये,
इस पर काश्वी ने कहा कि वो पहली बार अपने घर से दूर आई है इससे पहले कभी वो घरवालों के बिना नहीं रही, ये कहते-कहते काश्वी थोड़ी उदास भी हो गई
“पर तुम खुश हो न यहां?”, निष्कर्ष ने पूछा
“हां इतनी प्यारी जगह पर कोई परेशान हो सकता है क्या? और फिर आप तो हो, कोई प्रोब्लम नहीं”, काश्वी ने जवाब दिया
“ओह तो तुम्हें मेरी कंपनी पंसद है”, निष्कर्ष ने शरारती लहजे में पूछा
“हां आपकी कंपनी ने ही तो ये वर्कशॉप आर्गेनाइज की है, पंसद कैसे नहीं होगी”, काश्वी का अंदाज भी शरारत भरा था
“ठीक है तो मैं जा रहा हूं, बाकी लोगों के लिये भी है ये वर्कशॉप उनको भी थोड़ा एंटरटेन कर देता हूं” निष्कर्ष ये कहकर उठकर जाने लगा
“नहीं.. नहीं.. आप मत जाओ, बैठो-बैठो मैं मजाक कर रही थी”, काश्वी ने निष्कर्ष को रोका
निष्कर्ष रुक गया और उसने काश्वी से पूछा, “काश्वी क्या हम दोस्त हैं?”
“हां.. आज क्यों पूछा?”, काश्वी ने भी पलट कर पूछा
“पहली बार जब मिले थे तो तुम्हें परेशान किया था मैंने, मुझे अंदाजा है वो सब सुनकर तुम्हें कैसा लगा होगा, उसके बाद भी तुम मुझे दोस्त मानती हो?”, निष्कर्ष ने पूछा
“वो तो आपको जो लगा आपने कहा पर उसके बाद तो सब ठीक हो गया न और अब तो हम दोस्त हैं और मुझे लगता है कि हम और अच्छे दोस्त बन सकते हैं” काश्वी ने जवाब दिया
“अच्छा ऐसा क्यों?” निष्कर्ष ने पूछा
“दोस्ती का पहला उसूल है भरोसा, जो मुझे लगता है आप करते हो क्योंकि कभी ऐसा नहीं लगा कि आपने कुछ बनाकर बोला, आप हमेशा वही कहते हो जो आपको सच में लगता है, जब हम किसी पर भरोसा करते हैं तो उसकी बात सुनने के बाद जो भी पहली चीज लगती है वही कह देते है सोचकर टाइम खराब नहीं करते कि अगर ये कहा तो उसे कैसा लगेगा या वो नहीं कहा तो क्या वो बुरा मान जाएगी, दोस्ती वही है जहां कुछ भी कभी भी एक दूसरे से बात की जा सके, कुछ सोचने की जरुरत न पड़े, मुझे लगता है धीरे-धीरे जब हम एक दूसरे को और समझने लगेंगे तो ये और अच्छा हो जाएगा, आपको क्या लगता है?”, काश्वी ने पूछा
“हां मुझे अच्छा लगता है तुमसे बात करना, पता है तुमसे पहले किसी लड़की से बात करने की बात सोचकर भी कुछ अजीब लगता था, मेरी बहुत कम दोस्ती हुई है लड़कियों से पर तुम अलग हो, तुम्हारे साथ सब नॉर्मल लगता है”,निष्कर्ष ने जवाब दिया
“अरे.. क्या कह रहे हो आप.. आप तो इतने हैंडसम हो फिर भी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है?”, काश्वी ने पूछा
“गर्लफ्रेंड का हैंडसम होने से क्या लेना है काश्वी?”, निष्कर्ष ने छूटते ही जवाब दिया
“मतलब क्या? हैंडसम लड़कों को तो आसानी से गर्लफ्रेंड मिल जाती है और आप तो वैसे भी ठीक ठाक हो तो फिर क्यों नहीं?” काश्वी ने पूछा
“मुझे इन सबमें कभी इंटरेस्ट नहीं था, इसलिये कभी ध्यान भी नहीं दिया, तुम बताओ तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड है?” निष्कर्ष ने पूछा
“हां है ना, मेरी जान है वो मेरी जिंदगी है“ काश्वी ने जवाब दिया
निष्कर्ष एक्साइटेड होकर बोला, “अच्छा बताओ कौन?”
“ये है न” काश्वी ने अपने कैमरे को उठाते हुए कहा
“कैमरा?” निष्कर्ष हंसने लगा
“हां ये साथ है तो किसी की जरुरत नहीं” काश्वी ने भी हंसते हुए कहा
“इतना प्यार करती हो अपने कैमरे से?” निष्कर्ष ने पूछा
“हां ये मेरी जिंदगी है, इसके आगे कुछ नहीं दिखता” काश्वी ने गंभीरता से कहा
निष्कर्ष कुछ उदास हो गया, उसने कहा, “कोई और भी है तुम्हारी तरह जिसे इसके आगे कुछ नहीं दिखता”
“अच्छा कौन”? काश्वी ने पूछा
“मेरे पापा” ये कहकर निष्कर्ष बहुत सीरीयस हो गया
काश्वी को कुछ समझ नहीं आया अभी तो सब हंसी खुशी था अचानक निष्कर्ष इतना उदास क्यों हो गया?