एक तरफ बर्फ से ढके पहाड़ इौर दूसरी तरफ रंग बिरंगा छोटा सा बाज़ार, निष्कर्ष और काश्वी अपनी थीम की तलाश करते आगे बढ़ने लगे। दुकानों के बाहर लटके रंग बिरंगी चीजें, ठंड का एहसास कराते गर्म कपड़ों से सजे शेल्फ, पेड़ों को काटकर छोटे - छोटे आकार में ढली खूबसूरत चीजें, एक तरफ खाने की खुश्बू और दूसरी तरफ चहलकदमी करते लोग जिनके हाथों में ढेरों सामान और चेहरे पर हल्की मुस्कान क्योंकि वो इस जगह छुटि्टयों के मजे लेने आए हैं, निष्कर्ष और काश्वी एक एक कर हर चीज को एक फोटोग्राफर के नजरिये से देखते हुए उसमें अपनी कहानी ढूंढ रहे हैं लेकिन अब तक कुछ ऐसा नहीं ढूंढ पाये जिस पर नजर जा टिके।
कुछ नया, कुछ अलग और कुछ ऐसा जिसका कुछ मतलब भी हो, काश्वी की आंखे इधर उधर भटकती रही और वो ये कहती जा रही थी जिससे निष्कर्ष समझ सके कि उसे क्या चाहिए।
“एक काम करो तुम लकड़ी से बनी इन चीज़ों पर बना लो असाइनमेंट देखो कितनी सुंदर है ये”, निष्कर्ष ने कहा
“हां सुंदर तो है पर ये तो सालों से ऐसे ही हर हिल स्टेशन पर मिलती हैं इसमें कोई नई बात नहीं है”, काश्वी ने जवाब दिया
“तो ये शॉल और कपड़े कैसे रहेंगे?”, निष्कर्ष ने एक शॉल उठाते हुए कहा
काश्वी ने घूर कर निष्कर्ष को देखा तो वो समझ गया कि ये आइडिया भी काम का नहीं
काफी देर तक दोनों यही बातें करते करते मस्ती करते रहे, निष्कर्ष की बातें सुनकर कभी काश्वी हंसती तो कभी गुस्सा होकर उससे बात करना बंद कर देती,
ऐसे ही एक पल में काश्वी ने गुस्से में निष्कर्ष से कहा, “आपको मजाक लग रहा है कल सुबह मुझे जाना है और अब तक कुछ तय नहीं हुआ है” “अरे मजाक नहीं, बस कुछ आइडिया नहीं आ रहा तो ऐसे ही, चलो ठीक है अब कुछ नहीं सीरीयसली बात करेंगे, चलो तुम्हें एक अच्छी जगह ले जाता हूं, निष्कर्ष काश्वी को एक छोटे से रेस्टोरेंट
में ले गया, खुले आसमान के नीचे बस कुछ बेंच लगे थे वहां, उस छोटी सी जगह में ज्यादा कुछ नहीं था लेकिन वो जगह ऐसी थी कि वहां की शांति में बस डूब जाने को मन करें,
काश्वी को जगह बहुत पंसद आई, ये उसके कम होते गुस्से से जाहिर हो गया, निष्कर्ष ने वहां का मश्हूर खाना भी ऑर्डर कर दिया, काश्वी को कुछ समझ नहीं आया कि निष्कर्ष ने क्या कहा, तो उसने पूछा,“ये क्या है?”
“ये यहां का खाना है तुमने शायद कभी खाया न हो देखना बहुत टेस्टी है तुम्हें पंसद आएगा”, निष्कर्ष ने जवाब
दिया”,
जब तक खाना आया तब तक निष्कर्ष ने काश्वी का मूड ठीक करने के लिये कुछ और बात शुरू कर दी, बातों
बातों में उसने काश्वी को अपने पीछे देखने को कहा, वहां एक छोटा सा बच्चा खेल रहा था, छोटी - छोटी आंखे और
खिलखिलाती हंसी लिये वो मासूम सा बच्चा अपने मां बाप के साथ है लेकिन बार - बार अपने पापा का हाथ छुड़ा कर भाग रहा है, काश्वी ने देखा तो उसे वो बहुत प्यारा लगा, उसने अपना कैमरा निकाला और उसकी बच्चे की सारी शैतानी कैमरे में कैद करने लगी, कभी भागता, कभी गिरता, पापा पकड़े तो रोकर हाथ छुड़ा लेता, बस बिंदास, अपनी मस्ती में चलना चाहता है वो पर उसके पापा कैसे छोड़ देते यूंही, उन्हें डर है कि कहीं वो गिरकर चोट न लगा ले इसलिये बार बार उसे पकड़ते, उस नन्हें शौतान की मस्ती भरी हरकतों से काश्वी मुस्कुराने लगी और अपने कैमरे में ली फोटोग्राफ को निष्कर्ष को दिखाकर खूब खुश हुई, वो बच्चा वहां से गुजर गया लेकिन अपनी मासूमियत भरे लम्हों को याद बनाकर उन दोनों को दे गया,
माहौल अब कुछ खुशनुमा हो गया, ठंडी हवाएं भी उन्हें सहला रही है और अब तो उनका खाना भी आ गया, प्लेट से आ रही खुश्बू काश्वी को खाने के लिये ललचाने लगी लेकिन अब भी उसे समझ नहीं आया कि वो है क्या, तो उसने निष्कर्ष से फिर पूछा, “बहुत टेंपटिंग लग रहा है पर ये है क्या?”
“ये जो देख रही हो ये चावल के आटे से बना अरसा है और ये पिसी हुए उड़द से बनी पकोड़िया और ये तिल और
धनिये की चटनी, खाकर देखो बहुत टेस्टी है”,
“अच्छा, ये तो बहुत हैल्दी भी लग रहा है”, काश्वी ने खाना शुरू किया तो उसे बहुत अच्छा लगा, खाते - खाते वो कहने लगी बहुत अच्छा है अब खिलाया आपने जब दो दिन में वापस जाना है अब तक क्यों नहीं ले कर यहां,
“हां ये तो कभी सोचा नहीं, हमारे यहां भी खाना वही बनता है जो सब खा लें, वैसे इसका असली मजा लेना हो तो यहां की किसी शादी में जाना, असली टेस्ट वहीं हैं, गांव में जब कोई शादी होती है तो सब मिलकर खाना बनाते हैं, पूरे पांरपरिक तरीके से और उसमें कोई मिलावट नहीं होती इसलिये सब बहुत अच्छा लगता है”, निष्कर्ष ने कहा
“ठीक है आप ले चलना जब किसी की शादी हो तो”, काश्वी ने कहा
“अभी तो नहीं है लेकिन जब होगी तो तुम्हें बुला लूंगा, आओगी वापस यहां?”, निष्कर्ष ने पूछा
काश्वी ने निष्कर्ष को देखा और सोचने लगी कि ये सवाल यूंही निष्कर्ष ने पूछ लिया या फिर कुछ और मतलब है इसका, जब तक वो ये सोच रही थी निष्कर्ष ने फिर पूछा,
“बोलो तुम्हें ये जगह पंसद है न, फिर से आओगी न?”
काश्वी मुस्कुराई और कहा, “हां ऐसा खाना खाने तो दोबारा आना ही पड़ेगा”
काश्वी का जवाब सुनकर निष्कर्ष खुश था जैसे इस जवाब में उसने उसका जवाब भी सुन लिया जो सवाल वो असल में करना चाहता था, निष्कर्ष ने खुश होकर कहा, “ये तो बस ट्रेलर है पिक्चर तो बाकी है यहां और बहुत कुछ है जो तुम्हें पंसद आएगा”
“हां, सही कहा आपने ये जगह बहुत सुंदर है यहां वापस आना ही पड़ेगा”, काश्वी ने भी निष्कर्ष की हां में हां मिलाते हुए कहा
डिनर करने के बाद दोनों वापस लौटने लगे, चलते चलते रास्ता छोटा लगने लगा, निष्कर्ष ने एक लंबी सांस ली और आस पास की खामोशी को महसूस करने लगा, काश्वी भी उस खामोशी को महसूस कर रही थी इसलिये कुछ नहीं कहा,
दोनों चुपचाप चलते रहे, थोड़ी देर में घर सामने दिखने लगा, गार्डन से होते हुए अंदर चलते - चलते काश्वी अचानक रूक गई, निष्कर्ष ने देखा तो वो भी रूक गया और पूछा, “क्या हुआ काश्वी?”
“कुछ देर यहां रूके, अभी नींद नहीं आ रही”, काश्वी ने कहा
“बहुत रात हो गई है काश्वी तुम थकी नहीं?”, निष्कर्ष ने कहा
“नहीं मैं ठीक हूं, बस यहां अच्छा लग रहा है, ऐसा मौसम दिल्ली में नहीं होता, इतनी ताजी हवा वहां कहां मिलेगी”, काश्वी ने कहा
“क्या हुआ काश्वी?” ये पूछते हुए निष्कर्ष को लगा कि काश्वी कुछ सीरियस हो गई है
“वापस जाने का मन नहीं है यहां अच्छा लग रहा है”, काश्वी की आंख में एक आंसू भी था, अपनी आंखों की नमी छुपाते हुए काश्वी ने कहा
“अरे ये क्या है, इतना इमोशनल क्यों हो रही हो, तुम जब चाहे यहां आ सकती हो, हमारा घर है यहां रूक सकती हो”, निष्कर्ष ने कहा
“हां पर ये वक्त दोबारा नहीं आएगा इसलिये, यहां इतनी फुर्सत में आपसे बात कर रही हूं अभी वर्कशॉप खत्म होगी तो सब बिजी हो जाएगा, फिर पता नहीं कब हम ऐसे मिल पाएंगे”, काश्वी ने कहा
“अच्छा तो ये बात है तुम्हें मुझसे दूर जाने में तकलीफ हो रही है”, निष्कर्ष ने काश्वी को हंसाने के लिये मजाक किया
“हां ऐसा ही कुछ है”, निष्कर्ष की आंखों में देखते हुए काश्वी ने कहा
कुछ पल दोनों खामोश रहे, काश्वी जो सोच रही थी जिसकी वजह से उसे तकलीफ हो रही थी वो बात निष्कर्ष समझ गया लेकिन शायद अभी ठीक समय नहीं है इन बातों के लिये, इसलिये उसने बात को टालना ही बेहतर समझा और कहा, “काश्वी इसमें परेशान होने वाली कौन सी बात है, मैं भी तुम्हारे शहर में ही रहता हूं जब भी तुम बुलाओगी आ जाउंगा”,
“सच में आप मुझसे मिलोगे दिल्ली में?”, काश्वी ने एक्साइटेड होकर कहा
“हां, हां क्यों नहीं काश्वी, हम दिल्ली में भी ऐसे ही दोस्त रहेंगे”, निष्कर्ष ने जवाब दिया
काश्वी मुस्कुराई, शायद उसे यही सुनना था