काश्वी के करियर का ये मोड़ उसके परिवार को नए उत्साह से भर गया। घर लौटते हुए सब इसी के बात करते रहे। पापा ने काश्वी से पूछा “एक महीने की वर्कशॉप, कब से जाना है?” “दो दिन बाद रजिस्ट्रेशन कराने जाना है पापा, फिर पता चलेगा पूरा शेड्यूल”, काश्वी ने जवाब दिया
“अरे वाह एक महीना घर से दूर कितना मजा आएगा तुम्हें काश्वी”, दीदी ने कहा
“मजे का तो पता नहीं दी, पर मैं उत्कर्ष सर से मिलने के लिये बहुत एक्साइटेड हूं उनसे अच्छा फोटोग्राफर और कोई
नहीं”, काश्वी ने जवाब दिया
रास्तेभर और फिर घर पर भी यही सब बातें चलती रही, रात को सोने से पहले काश्वी ने अपना पुराना कैमरा निकाला और उस दिन को याद करने लगी जब उसके पापा ने उसे पहली बार फोटोग्राफर बनने का सपना दिखाया था। यही सोचते-सोचते काश्वी को नींद आ गई। दो दिन बाद रजिस्ट्रेशन के लिये अपने सभी डॉक्यूमेंटस लेकर काश्वी निष्कर्ष के ऑफिस पहुंची। रास्ते भर वो भगवान से यही मांग रही थी कि निष्कर्ष से उसका सामना ना हो। वो जानती थी ऐसा होना मुश्किल है क्योंकि उसी की कंपनी ने ये वर्कशॉप कराई है। रिस्पेशन पर पहुंचकर काश्वी ने पूरा प्रोसिजर पूछा तो रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने उसे सामने के कमरे में भेज दिया। काश्वी ने दरवाजे पर दस्तक दी तो अंदर से 'कम इन' की आवाज आई, सामने वाली कुर्सी
पर निष्कर्ष था। काश्वी एक सैकंड के लिये रूक गई पर उसने खुद को संभाल लिया और बहुत सहज तरीके से उससे बात करने की कोशिश करने लगी। निष्कर्ष ने भी मुस्कुरा कर काश्वी से सारी बात की, उसे पूरा प्रोग्राम डिटेल में बताया। काम पूरा करके काश्वी जाने लगी तो निष्कर्ष ने उसे रोका, “काश्वी, आई एम सॉरी”, निष्कर्ष ने कहा काश्वी ने हैरानी से पीछे मुड़कर देखा, इसी से बचना चाहती थी वो लेकिन बच नहीं पाई। उसे कुछ समझ नहीं आया कि वो क्या कहे, उसने बस निष्कर्ष से पूछा, “सॉरी क्यों?” “उस दिन आपकी फोटोग्राफ्स देखकर मैंने जो कहा, आपको बुरा लगा होगा शायद, इसलिये सॉरी, प्लीज आपको हर्ट करने का मेरा इरादा नहीं था”, निष्कर्ष ये सब बहुत हिम्मत करके कह पाया, सॉरी बोलना आसान नहीं होता, खासकर तब जब आपको पता न हो कि सामने वाला कैसे रिएक्ट करेगा पर निष्कर्ष की तरह हिम्मत करके सॉरी बोल देना चाहिए, मन का बोझ हल्का हो जाता है, रिश्ते बेहतर होते है, खैर निष्कर्ष ने तो अपना काम कर दिया अब जवाब काश्वी को देना है।
“कोई बात नहीं आप को जो लगा आपने कहा, मुझे बुरा नहीं लगा, प्लीज आप मेरी वजह से परेशान न हो”, ये कहकर काश्वी वहां से चली गई और निष्कर्ष उसे जाते हुए देखता रहा। काश्वी ने बात टाल दी लेकिन निष्कर्ष को उसे देखकर लगा नहीं कि वो इस बात को भुला पाई है, निष्कर्ष ने काश्वी के चेहरे की उदासी गौर से देखी और समझ गया कि कुछ बात तो है जो काश्वी उसे बताना नहीं चाहती। दो दिन बाद काश्वी वर्कशॉप के लिये निकलने की तैयारी करने लगी। ये वर्कशॉप हिमाचल के एक छोटे से हिल स्टेशन पर रखी गई है जहां निष्कर्ष के पापा फेमस फोटोग्राफर उत्कर्ष राय का फोटोग्राफी स्कूल है। अपना बैग पैक करने में व्यस्त काश्वी सब सामान फिर से चेक करने लगी, कैमरा, कैमरे की बैटरी, हार्ड डिस्क, लैप टॉप, आई पॉड सब सामान रख लिया उसने। पापा, मम्मी, दीदी सब उससे बार बार पूछ रहे थे कि उसने सब सामान रख लिया या नहीं। ये पहली बार है जब वो कहीं अकेली जा रही है वो भी एक महीने के लिये। सुबह पांच बजे काश्वी को निकलना था लेकिन वो इतनी एक्साइटेड थी कि रात भर सो नहीं पाई। पौने पांच बजे ही वो तैयार होकर पापा को आवाज देने लगी, “जल्दी चलो पापा, मैं लेट हो जाउंगी”, काश्वी की आवाज पूरे घर में गूंजने लगी। मम्मी अब भी उससे पूछे जा रही है कि सब सामान ले लिया और कुछ चाहिए तो नहीं, आखिरकार दस मिनट बाद काश्वी ने सबको बाय कहा और चल पड़ी अपने सपनों की उड़ान भरने। फोटोग्राफी उसकी जिंदगी है और सीखने की चाहत ही उसे यहां तक ले आई है। अब तक वो शौक के तौर पर अपने कैमरे से तस्वीरें खींचती थी पर अब उसे प्रोफेशनल ट्रेनिंग मिलने वाली है ये बात उसकी एक्साइटमेंट को दोगुना कर रही है। बस आधे घंटे में वो उस बस में सवार हो गई जिसमें उसी की तरह नौ और ट्रेनी है। आगे से तीसरी विंडो सीट के ऊपर बने रैक पर काश्वी अपना सामान एडजस्ट करने लगी, तभी बस में आवाज सुनाई दी, “वेलकम ऑल, आप सबका स्वागत है, यहां से आपकी एक नई शुरुआत होगी, उम्मीद है आप का ये सफर आपको नई मंजिलों तक ले जाए, रास्ते में कोई प्रोब्लम हो तो मैं और हमारा पूरा क्रू आपके साथ रहेगा”, ये आवाज निष्कर्ष की है। काश्वी समझ गई कि इस सफर में निष्कर्ष उनके साथ रहेगा और हो सकता है पूरा एक महीना वो वर्कशॉप में ही रहे। वो इसके बारे में ज्यादा सोचना नहीं चाहती थी इसलिये चुपचाप अपनी सीट पर बैठकर बाहर देखने लगी। बस चलनी शुरु हुई और सब एक दूसरे को जानने की कोशिश करने लगे, इंट्रोडक्शन हुआ और फिर सब आपस में बात करने लगे। नाम पूछने से शुरू हुआ सिलसिला स्कूल, कॉलेज, घर, शहर, पंसद, नापंसद तक पहुंचा लेकिन सबके बीच होकर भी काश्वी अकेली सी सबको देखती रही। काश्वी
कुछ झिझक रही थी वो इतनी जल्दी किसी से घुल मिल नहीं पाती, किसी को जानने और पहचानने में उसे थोड़ा वक्त लगता है और दोस्ती करना तो बहुत दूर है। अपने कानों में हेडफोन लगाए वो खिड़की से बाहर देखने लगी। सुबह की हल्की हल्की धुंध में दिल्ली से बाहर निकलते हुए हाईवे का सफर बहुत सुकून देता है उसे भी यही महसूस होने लगा। वो अपनी दुनिया में
खोई सी बैठी रही, आस-पास क्या हो रहा है उसे कुछ पता नहीं। वो इस बात से भी अनजान है कि निष्कर्ष का ध्यान उसी पर है, कुछ अलग लगी निष्कर्ष को काश्वी, शायद कुछ स्पेशल भी। ये शायद इंसानी फितरत होती है जो बोलता है उसकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं जाता लेकिन जो चुप होता है उसकी चुप्पी की पीछे के रहस्य को जानने के लिये उत्सुकता जरुर होती है। दस एक ही उम्र के लोग लेकिन सबकी पर्सनेल्टी अलग, कोई ज्यादा बोलता है तो कोई कम, कोई एकदम बिंदास
तो कोई बहुत शर्मिला पर यहां एक लड़की है जिस पर निष्कर्ष का ध्यान है, पूरे रास्ते निष्कर्ष काश्वी के हर हाव-भाव को समझने में लगा रहा और काश्वी सोच रही थी कि वो जगह कैसी होगी जहां वो जा रही है, क्या उसे वहां उस सवाल का जवाब मिल पाएगा जो उसके दिल दिमाग पर छाया हुआ है। क्या उत्कर्ष राय जैसे फेमस और एक्सपीरियंस फोटोग्राफर से सीख कर उसकी तस्वीरों में जिंदगी की झलक आ पाएगी?