जो बात हमें तकलीफ देती है उसे दिमाग से निकालना इतना आसान नहीं होता और उसे भूलकर किसी और चीज पर ध्यान लगाना काफी मुश्किल होता है, निष्कर्ष और उसके पापा का रिश्ता अब उस स्टेज पर पहुंच गया है जहां दोनों के बीच कोई बात ही नहीं होती,
निष्कर्ष पूरा साल इस एक महीने के लिये खुद को तैयार करता है बस ये सोचकर कि उसकी मां को ये अच्छा लगेगा। वो अपने पापा के साथ बड़े ही सहज अंदाज में जितनी जरूरत हो उतनी बात कर ये दिन जैसे तैसे गुज़ार लेता है लेकिन इस साल काश्वी ने उसके लिये ये सब आसान कर दिया,
काश्वी के साथ समय गुजारना, उसकी बातें सुनना और उसे नई - नई जगह दिखाना, निष्कर्ष को मजेदार लग रहा है लेकिन इस बीच उसके पापा उत्कर्ष का काश्वी से इस तरह घुल मिल जाना उसे एक अजीब सी टीस दे गया, पर उसे जो बुरा लगा वो अपने और काश्वी के बीच में आने नहीं देना चाहता। काश्वी का चेहरा देखकर वो अपनी और पापा के बीच के तनाव को याद नहीं करना चाहता बस उसके साथ खुश रहना चाहता है। अपनी इस नई दोस्त को वो खोना नहीं चाहता।
उधर काश्वी भी यही सोच रही है कि उससे कुछ ऐसा न हो जिससे निष्कर्ष को बुरा लगे। जब खुद से ज्यादा दूसरे के बारे में सोचने लगे, उसकी पंसद नापंसद का ख्याल रखे और खुद को उसके हिसाब से ढालने लगे तो ये है दोस्ती का दूसरा पड़ाव, हां यहां से आगे बहुत सारे रास्ते खुलते हैं पर उसके बारे में दोनों में से कोई नहीं सोच रहा।
खैर वर्कशॉप भी अपने आखिरी पड़ाव पर है, एक महीने की वर्कशॉप का आखिरी हफ्ता बचा है, काश्वी अपने काम में लगी है और निष्कर्ष पूरे ग्रुप को संभालने में, बीच - बीच में दोनों एक साथ घूमने भी निकल जाते हैं।
उधर उत्कर्ष भी काश्वी की वजह से बाकी ग्रुप से घुलने मिलने लगे हैं, उनके लिये भी इस बार की ये वर्कशॉप कुछ पॉजिटिव लेकर आई है, अब वो हर सुबह ब्रेकफास्ट और डिनर में सबके साथ नजर आने लगे हैं। निष्कर्ष भी ये महसूस कर रहा है कि कुछ तो बदलाव हो रहा है उसके आस पास, जो तन्हाई और अकेलापन उसे इस जगह दिखता था वो अब नहीं है, हर साल यहां एक ग्रुप को वो लेकर आता था लेकिन खुद हमेशा अकेला ही रहा पर अब उसकी खामोशी को आवाज मिल गई है, उसकी मां के जाने के बाद जो घर काटने को दौड़ता था अब वही अच्छा लगने लगा है। काश्वी से ज्यादा अब निष्कर्ष को लग रहा है कि कहीं ये दिन जल्दी खत्म न हो जाएं क्योंकि अब शायद इस वर्कशॉप से काश्वी ने जितना फोटोग्राफी के बारे में सीखा उससे ज्यादा निष्कर्ष ने जिंदगी को जीने के बारे में
सीख लिया है।
जब दर्द बांटने वाला कोई मिल जाता है तो दर्द का एहसास भी कम हो जाता है और एक नई ऊर्जा भी मिलने लगती है, काश्वी की वजह से निष्कर्ष और उत्कर्ष दोनों अपने – अपने दर्द को भूलकर कुछ नया महसूस कर रहे हैं। निष्कर्ष को नया दोस्त मिला है और उत्कर्ष को काश्वी में वो स्टूडेंट नजर आया है जो उसकी विरासत को आगे बढ़ा सकती है, उत्कर्ष को लगता है कि काश्वी को अगर सही टीचर मिले तो वो उससे भी अच्छी फोटोग्राफर बन सकती है।
वर्कशॉप के अब आखिरी तीन दिन बाकी है, फाइनल असाइनमेट के लिये उत्कर्ष ने सबको एक फोटो फीचर करने को कहा और इसके लिये उनके पास सिर्फ दो दिन है। इन दो दिनों में वो अपने पंसद का कोई भी विषय चुनकर उसे तस्वीरों के जरीये एक्सप्लेन करना है, वो कुछ भी हो सकता है, बस कुछ ऐसा होना चाहिए जिसके जरिए वो एक स्टोरी बनाकर पेश कर सके। असाइनमेंट का ऐलान होते ही काश्वी कुछ टेंशन में आ गई, उसके दिमाग में कोई आइडिया नहीं है वो चाहती है कि वो कुछ ऐसा विषय चुने जो उसकी फोटोग्राफी को निखार कर एक अच्छी कहानी कह सके पर वो होगा क्या ये सोच सोच कर वो परेशान हो रही है, अब तक का सबसे मुश्किल असाइनमेंट लग रहा है ये काश्वी को क्योंकि अब उसे खुद ही टॉपिक सोचना है, जगह ढूंढनी है और फिर थीम भी ऐसी हो जिसका कोई मतलब हो।
क्या हो सकता है, काश्वी सोच ही रही थी कि तभी वहां निष्कर्ष आ गया, “क्या हुआ क्यों परेशान हो?”
“कुछ समझ नहीं आ रहा, असाइनमेंट के लिये क्या करूं और कहां जाउं कुछ नहीं पता”, काश्वी ने जवाब दिया
निष्कर्ष भी सुनकर सोचने लगा कि वो क्या हो सकता है जिसे काश्वी अपनी थीम बनाये पर उसकी समझ में भी कुछ नहीं आया।
दोनों काफी देर तक सोचते रहे फिर निष्कर्ष ने काश्वी से बाहर चलने के लिये पूछा, शाम के समय दोनों बाहर निकल गये, पहाड़ों के बीच लंबे से रास्ते पर चलते हुए दोनों अपने कदमों को गिनने लगे, फिर सामने उड़ते पंछियों को देखकर निष्कर्ष ने कहा, “चलो एक काम करते हैं इस रास्ते में जो भी दिखे उसके बारे में सोचते हैं क्या पता कुछ अच्छी थीम मिल जाये तुम्हारे असाइनमेंट के लिये”
काश्वी मुस्कुराई और कहा, “हां ये अच्छा आइडिया है चलो देखते हैं किस पर हो सकता है पहले आप बोलो”,
“सामने रास्ता है रास्ते पर?”, निष्कर्ष ने कहा
“हम्म, पर रास्ते तो यहां सब एक से ही लगते हैं, नहीं, कुछ और सोचो”, काश्वी ने जवाब दिया
“अच्छा फिर ये पेड़ पौध्रे, कितने सारे फूल है यहां उन पर?, निष्कर्ष ने एक और आइडिया देते हुए कहा
“नेचर पर तो बहुत लोगों ने काम किया और पहले भी हमारे ज्यादातर असाइनमेंट इसी पर थे ये भी नहीं”, काश्वी ने कहा