कुछ देर तक सब शांत रहा, काश्वी की नजर पहले उत्कर्ष पर गई जो चुप हैं शायद किसी गहरी सोच में हैं, फिर उसने निष्कर्ष को देखा जो उसे ही देख रहा है, निष्कर्ष भी चुप है, कुछ सैकेंड बाद हॉल की शांति तालियों में गूंज में बदल गई, जिसकी शुरूआत उत्कर्ष ने की, उत्कर्ष के साथ - साथ सभी काश्वी के लिये तालियां बजाने लगे और फिर सब उसके पास आकर उसे बधाई देने लगे, काश्वी के आस - पास भीड़ लग गई, उत्कर्ष ने भी आकर काश्वी की तारीफ की और ये भी कहा कि सुबह जाने से पहले वो उनसे आ कर मिले
सबकी बात सुनने के बाद काश्वी निष्कर्ष को ढूंढने लगी जो इस भीड़ का हिस्सा नहीं है, उसे निष्कर्ष पूरे हॉल में कहीं नहीं दिखा, काश्वी ने सब जगह उसे ढू़ंढा पर वो वहां से निकल गया था, निष्कर्ष को उसका प्रेजेंटेशन कैसा लगा ये जानना काश्वी के लिये बेहद जरूरी है लेकिन वो उससे मिले बिना ही कहीं चला गया, काश्वी ने निष्कर्ष का फोन ट्राई किया लेकिन उसने कॉल उठाई नहीं, काश्वी हॉल के बाहर निष्कर्ष को ढूंढने लगी तभी पीछे से उसकी आवाज आई, “यहां क्या कर रही हूं, तुम्हें तो अंदर होना चाहिए”
“मैं ढूंढ रही थी अचानक गायब क्यों हो गये?”, काश्वी ने पूछा
“एक फोन आ गया था काश्वी, अंदर शोर था तो बाहर गया, तुम्हारा प्रेजेंटेशन कमाल था, सच में बहुत अच्छा
था”, निष्कर्ष ने कहा
“आपको पंसद आया?”, काश्वी ने पूछा
“हां वो तो सबको बहुत पंसद आया, चलो अंदर चले इसके बारे में और बात पार्टी के बाद करेंगे”, निष्कर्ष ने मुस्कुराते हुए कहा
काश्वी ने राहत की सांस ली कि निष्कर्ष नॉर्मल है, दोनों वापस हॉल के अंदर आ गये और सबके साथ जमकर मस्ती की, सबकी प्रेजेंटेशन के बाद पार्टी हुई, कई घंटे तक सब साथ रहे, सब जानते हैं कि एक महीने की वर्कशॉप का ये आखिरी दिन है फिर सब अपने अपने रास्ते पर निकल जाएंगे
रात के ग्यारह बजे पार्टी खत्म हुई, धीरे धीरे सभी अपने - अपने कमरे में चले गये पर काश्वी वहीं रूक कर निष्कर्ष के फ्री होने का इंतजार करने लगी, निष्कर्ष अपना काम खत्म कर काश्वी के पास आया,
“चलो तुम्हें छोड़ दूं”, दोनों हॉल से निकले और बाहर जाने लगे
चलते चलते काश्वी ने पूछा, “आपने झूठ बोला था ना, उस वक्त कोई फोन नहीं आया था ना?”
निष्कर्ष ने मुस्कुराकर काश्वी को देखा, पर कुछ कहा नहीं
काश्वी ने फिर कहा, “अभी बताओ कैसा लगा आपको?”
“तुम जानती हो काश्वी और मैं भी, पापा और मेरा रिश्ता बहुत उलझा हुआ है, ना वो मुझसे बात करना चाहते हैं और ना मैं, सच कहूं ऐसे ही रहते हुए इतने साल हो गये है कि पापा और मेरे बीच अब कहने को कुछ रहा ही नहीं है, साल में एक बार अगर ये वर्कशॉप न हो तो शायद मैं यहां आउ भी न और ये वर्कशॉप भी मां की वजह से है, वो चाहती थी कि अगर किसी में टेलेंट है तो उसे वैसा संघर्ष न करना पड़े जैसा पापा ने किया, बस उन्हीं की वजह
से हर साल हम दोनों इसे पूरी मेहनत से करते हैं”, निष्कर्ष ने कहा
“शायद आपकी मॉम को इसका अंदेशा था इसलिये उन्होंने एक कड़ी छोड़ी जिससे आप दोनों साथ रहो पर एक बात
बताओ,डिफरेंसिस हो जाते हैं, आपके साथ वो ज्यादा समय नहीं रह पाये, ये भी समझ आता है पर इतनी दूरी क्यों हो गई कि आप बात ही नहीं करना चाहते, ऐसा क्या हुआ?” काश्वी ने पूछा
“काश्वी कुछ बातें दिल पर लग जाती है और जख्म की तरह दर्द देती है उस पर कोई मरहम काम नहीं करता, तुम बिना बात जाने मानोगी नहीं, इसलिये बता रहा हूं, इससे पहले किसी को कभी ये नहीं बताया, एक बार मॉम का एक्सीडेंट हुआ था पापा तब इंडिया से बाहर थे, वो आईसीयू में थी और मैं पापा को फोन करता रहा, हमें कुछ नहीं पता था कि वो कहां है, जो नंबर उन्होंने दिया वो बंद था और हमारे पास इसके अलावा कोई कॉटेक्ट डिटेल नहीं थी, हर मिनट, हर घंटे, पता नहीं कितने फोन, कितने मैसेज और ईमेल तक किए पर उनका कोई जवाब नहीं आया मैं 18 साल का था तब, कुछ समझ नहीं आ रहा था बिलकुल अकेला हो गया था, कुछ दोस्त थे साथ पर जिनको
होना चाहिए था वो नहीं थे, वो सात दिन मेरी जिंदगी के सबसे मुश्किल दिन थे, मां की हालत खराब हो रही थी, डॉक्टर्स लगातार उनकी देख रेख कर रहे थे तीन ऑपरेशन किए पर इस बीच पापा पता नहीं कहां अपना पैशन जी रहे थे, उन्हें तो पता भी नहीं था कि किसी को उनकी जरूरत है, उनका एक परिवार भी है जिसका ख्याल भी उन्हें रखना है, काश्वी उन सात दिनों में समझ आया कि उनके लिये उनका काम ही सबसे पहले है, हम कुछ नहीं, कुछ दिन बाद उनका फोन आया तो उन्होंने कहा वो आ रहे हैं लेकिन उसके भी दो दिन बाद वो पहुंचे, अब बताओ क्या सोचू, क्या समझू इसे”
“क्या आपने पूछा उनसे वो कहां थे”, काश्वी ने पूछा
“नहीं मुझे उसकी जरूरत नहीं थी, वो आये न आये मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा, मेरे लिये मां ज्यादा इम्पोरटेंट थी और मैं उनकी देखभाल करता रहा, बस उस वक्त के बाद कभी ज्यादा बात नहीं की, तभी से हमारे बीच एक दीवार है जिसे तोड़ने की न तो उन्होंने कोशिश की और न मैंने”
“और मां, उन्होंने क्या कहा?”, काश्वी ने पूछा
“जब हॉस्पिटल से वो डिस्चार्ज हुई तो डॅा ने कहा कि उन्हें ऐसी जगह ले जायें जहां ताजी हवा हो और उन्हें अच्छा लगे, मैं नहीं चाहता था कि वो दिल्ली से बाहर जाये पर मां ने जिद की कि वो यहां आना चाहती है, उन्होंने पापा को
माफ कर दिया था पर मैं इसे कैसे भूल जाता, मां ने बहुत कोशिश की हम दोनों के बीच सब ठीक करने की पर कुछ नहीं हो पाया, जब मुझसे रहा नहीं गया तो मैं इंजीनियरिंग के बहाने दिल्ली आ गया और तभी से दिल्ली में ही रहा, पहले पढ़ाई और फिर नौकरी सब दिल्ली में है, मां के जाने के बाद बस सब वैसे ही बदल गया, मेरी जिदंगी में
बस काम ही सबसे ज्यादा खुशी देने वाला है और कुछ नहीं”, ये सब बताते हुए वो बहुत भावुक हो गया, उसकी आंख नम होने लगी पर वो अपने आंसू रोकने की कोशिश में लगा रहा
“अब तो तुम्हें सब पता है, प्लीज अब हम इस पर दोबारा बात नहीं करेंगे, वो और मैं दोनों अलग हैं और कभी एक नहीं हो सकते, मुझे पता है तुम मुझे खुश देखना चाहती हो पर मैं ऐसे ही खुश हूं, पापा को देखकर मुझे फिर से वो सब याद आता है इसलिये उनसे दूर रहना चाहता हूं”, निष्कर्ष ने कहा
“ठीक है हम इस पर कभी फिर बात नहीं करेंगे पर एक शर्त पर आप हमेशा खुश रहोगे”, काश्वी ने मुस्कुराते हुए कहा
“मैं खुश हूं काश्वी, इस जगह तुमसे ये जो दोस्ती मिली है उसे पाकर खुश हूं, इस वर्कशॉप से एक नई एनर्जी मिली है लगता है जैसे अभी बहुत कुछ करना बाकी है, निष्कर्ष ने गहरी सांस ली और फिर घड़ी की तरफ देखा “चलो अब बहुत देर हो रही है सुबह तुम्हें दिल्ली वापस जाना हैं, अब जाओ सो जाओ”, निष्कर्ष ने कहा
“और आप क्या करोगे, आप कब आओगे वापस दिल्ली?” काश्वी ने पूछा
“बहुत देर हो गई है काश्वी जाओ सो जाओ”, निष्कर्ष बात का जवाब दिए बिना ही उसे उसके रूम के बाहर छोड़ कर चला गया