दूसरे दिन उन्होंने उस बन को छोड़ एक बयाबान में पैर रक्खा और उसी रास्ते दिन भर चले। वहां कोई जानवर या पेड़ न मिला, क्योंकि वह बड़ा भारी रेत का मैदान था जिसे रेगिस्तान कहते हैं और जाबजा ऊंट और घोड़ों की और एक मुक़ामा पर आदमी की ठटरियां रेत में आधी गड़ी हुई देखने में आई! वह जहां तक उनसे हो सका तेज़ी से चले क्योंकि जानते थे कि करीब से करीब कुआ भी उनसे बहुत दूर है और उस पर न पहुँचे तो ज़रूर प्यास से मर जायंगे। उन्हें पहले ही बहुत प्यास लगी हुई थी और बेचारे गधे भी मारे प्यास के घबरा रहे थे कि एक ताड़ के पेड़ों का झुंड दूर नज़र आया और बुढ़िया कंजरी ने राजा की बेटी से कहा कि खुश होवे क्योंकि कुआ उन्हीं पेड़ों के नीचे है। गधे भी समझ गये मालूम होते थे कि कुआ पास है, क्योंकि उन्हों ने अपने कान ऊंचे कर लिये और रेंकने और तेज़ कदम चलने लगे। लेकिन वहां तक पहुँचने में देर लगी और पहुँचने तक सब इतने थक गये कि बड़ी मुशकिल से कुआ पकड़ा। जो कंजर सब ने पहले कुए पर पहुंचा उसने भीतर झांख के देखा तो उसमें ज़रा भी पानी नज़र न आया। कूआ सूखा था! अब ये लोग निहायत ना-उम्मेद हुए, क्योंकि जानते थे कि कई कोसों तक उसके बाद कोई कुआ नहीं है। प्यास के मारे जान निकली जाती थी और एक कदम चल नहीं सकते थे। तोते को इस वक्त बहुत फ़िक्र और अंदेशा हुआ, लेकिन उसने देखा कि दोनों कौए एक ताड़ के पेड़ पर बैठे हुए हैं, वह उनके पास उड़ गया और उनसे बोला कि "तुम चारों तरफ़ उड़ कर देखो कि कहीं पानी का ठिकाना है या नहीं, नहीं तो राजा की लड़की ज़रूर प्यास से मर जावेगी"। कौए सब तरफ़ देख आये पर पानी कहीं नज़र न पड़ा, लेकिन उन्होंने कहा कि "एक जगह पर जो यहां से दूर नहीं है कई तरबूज़ पड़े हुए हमने देखे हैं"। तोते ने राजा की लड़की से जो एक पेड़ के नीचे अकेली लेटी हुई थी कहा कि उठ के कौओं के पीछे पीछे जावे। कौए उसे जहां तरबूज थे वहां ले गये। कंजर उस वक्त निहायत थक गये थे और अपनी मुसीबत में ऐसे मर रहे थे कि किसी ने ध्यान न दिया कि लड़की कहां जाती है और न किसी ने उसे जाने से रोका। वह बड़ी मुशकिलों से उस गरम रेत में पैदल तरबूजों तक पहुंची, और पहुंचते ही पहला ही तरबूज़ जो उसके हाथ लगा फाड़ डाला और उसका ठंडा और मीठा रस पीकर प्यास बुझाई और कुछ अपनी तीनों चिड़ियाओं को भी पिलाया। बाद इसके जब उसे ताज़गी और ताक़त आ गई, दो तरबूज़ और तोड़े और उन्हें लेकर फुर्ती के साथ कुए पर लौट आई। बुढ़िया कंजरी तरबूज़ों की सूरत देख कर ऐसी खुश हुई कि राजा की लड़की को उसने ज़ोर से छाती से लगा लिया और मारे बोसों के हैरान कर दिया-वह दोनों तरबूज़ कंजरों के बालकों को बांट दिये गये, फिर राजा की लड़की ने उन सब को तरबूज़ों का रास्ता बता दिया और सभी ने खूब ही उन फलों की दावत उड़ाई, यहां तक कि उस जगह ज़मीन पर सब तरफ़ तरबूज़ों के टुकड़े पड़े नज़र आते थे। बेचारे कुत्ते बहुत प्यासे मरे थे, जब उनको तरबूज़ दिये गये और वह उनके पानी को जीभ से चाटने लगे तो एक अजब कैफ़ियत मालूम होती थी। देरा तरबूजों के पास ही डाला गया और दूसरे रोज़ सुबह को, बाद तरबूज़ों को दूसरी ज़ियाफ़त के, वहां से कूच हुआ और गधों पर जितने आ सके तरबूज़ लाद लिये गये, क्योंकि डर था कि शायद दूसरे पड़ाव का कुआ भी सूखा निकले, लेकिन वह सूखा न था। वह लोग बाकी रेगिस्तान को बग़ैर किसी मुसीबत के तै कर गये। अब वह कंजर राजा की लड़की पर दुचंद मिहर्ब्बन थे, क्योंकि उसने उनकी जान बचाई थी; और कंजरी ने उस से कहा कि “मैं तो तुझे छोड़ दूं लेकिन मेरा खाविंद मना करता है, मगर तू अंदेशा मत कर, मैं ऐसा करूंगी कि तू सिर्फ़ किसी नेक बीबी के हाथ बेची जायगी जो तेरी खूब परवरिश करेगी और तुझे खुश रक्खेगी"।
थोड़े दिनों बाद यह लोग लाहौर के क़रीब आन पहुंचे और उन्हें उस शहर की मीनारें और बुर्ज और आलीशान मकान दिखाई देने लगे। शहर के दरवाजे से कुछ हट कर दरखों के नीचे इन्होंने अपना डेरा किया। कंजरी ने एक सफ़ेद बुकनी अपने सन्दूक में से निकाल कर थोड़े पानी में मिला लड़की को उससे नहला दिया तो लड़की फिर वैसी ही गोरी हो गई जैसी कि बूटी का रंग लगने से पहले थी।