राजा की लड़की बड़े सवेरे ही जाग गई और जब देखा कि कंजरी और उसके बालक जो उसके देरे में सोये थे अभी नहीं उठे हैं और देरे का दरवाज़ा भी खुला है तो आहिस्ता पैर रखती हुई बाहर निकल आई और चाहा को भाग जाऊं पर एक बड़े कुत्ते के गुर्राने की आवाज़ ने जो कि देरे के दरवाजे से कुछ दूर पर बैठा हुआ था उसे आगे बढ़ने से रोक दिया। उसने देखा कि अगर मैं भागने की कोशिश करूँगी तो कुत्ता मेरी तरफ़ ज़रूर दौड़ेगा या भूकं कर सब कंजरों को जगा देगा, इस लिए वह चुपकी उसी जगह खड़ी रही और कुत्ता भी चुपका बैठा रहा, सिर्फ़ उस पर अपनी निगाह जमाये रहा। उस वक्त एक जंगली कबूतर की आवाज़ उसके कान में पड़ी। यह आवाज़ उसी पेड़ पर से कि जिसके नीचे वह खड़ी हुई थी आ रही थी उसने ऊपर जो निगाह की तो उस चिड़िया को ठीक अपने सिर के ऊपर एक शाख पर बैठा देखा और फ़ौरन अंगूठी अपने जूड़े में से निकाल कर उसकी तरफ़ दिखलाई और उतर आने का इशारा किया। उसका हुक्म पाते ही कबूतर तुरन्त उसकी बांह पर आ बैठा। उससे आहिस्ता से ताकि कंजर न सुन ले लड़की ने कहा कि “तू बुडढे माहीगीर के घर जाकर तोते और कौओं से मेरा सब हाल कह दे" और अपने सिर में से एक लट बालों की काट कर अपनी निशानी दे दी कि जिससे माहीगीर समझ जाय कि यह मुखबिर सचमुच राजा को लड़की ही ने भेजा है। कबूतर उसी दम उड़ दिया और लड़की ख़ेमे में जाकर फिर लेट रही और अंगूठी को बड़ी खबरदारी के साथ सिर के बालों के अन्दर छिपा लिया। धीरे धीरे कंजर उठे और खाना बनाया; बाद उसके सब चीज़ों को लाद कर फिर कूच शुरू किया। राजा की लड़की कभी कभी कंजरों के बालकों के साथ पैदल चलती थी और जब थक जाती थी गधे पर सवार हो लेती थी। जो कंजरी उसे चुरा लाई थी उससे अक्सर बातें करती चलती थी और कहती थी कि “अगर किसी बड़े शाहज़ादे ने लाहौर में जहां को कि हम चल रहे हैं तुझे ख़रीद लिया तो तू उसके यहां कितने आराम से रहेगी"। यों वह दिन भर चले, सिर्फ़ खाने और सुस्ताने के लिये, जब कि धूप निहायत तेज़ हो, कहीं पेड़ों की छांह में ठहर लें। सूरज छिपने के थोड़ी देर पहले वह एक जंगल में पहुंचे जहां कि एक पानी का झरना था-उन्होंने इस जगह गधों से असबाब उतार कर रख दिया और रात को बसने का सामान किया। राजा की लड़की को यहां पर इधर उधर अकेली घूमने की इजाज़त दे दी गई, पर जो कुत्ता कि सवेरे उसके पहरे पर था इशारे से सिखा दिया गया था कि लड़की के साथ रहे। वह अच्छी तरह समझता था कि मेरा यह काम है कि लड़की भाग न जावे, क्योंकि जभी वह जल्दी जल्दी चलने लगती या बहुत दूर चली जाती वह गुर्राने लगता था।