इस तरह वह कई दिनों तक सफ़र करते रहे ओर अख़ीर को कश्मीर से एक रोज़ के रास्ते पर पहुंचे। यहां फ़ौज ठहर गई और रानी मय अपने तमाम दरबारियों के, अपनी फ़तहयाब फ़ौज को लेने के लिये और यह देखने के लिये कि लूट में क्या क्या माल आया है, आई। फ़ौज बड़ी सज धज के साथ खड़ी की गई और रुपये, अशर्फियां, सोने चांदी के जेवर, जवाहिरात, कीमती रेशमी कपड़े, शाल दुशाले, खूबसूरत घोड़े और लौंडी गुलाम जो लूट में आये थे सिपह-सालार के ख़ेमे के सामने नुमाइश के वास्ते बड़े ठाट बाट से सजाये गये। यह नुमाइश बड़ी शानदार थी। रानी एक हाथी पर जिस पर बेशकीमती सुनहली झूल पड़ी हुई थी एक सोने के हौदे में बैठी हुई थी, उसके दरबारी और मुसाहिब उसके पीछे घोड़ों पर सवार थे, उनके पोछे पलटनों की कतारें थीं। जब वह उस जगह के सामने पहुंची जहां लौंडी और गुलाम लाइन में खड़े किये गये थे, उसकी नज़र राजा की लड़की पर पड़ी; उसे देखते ही वह चौंक पड़ी, और उसका चिहरा पीला पड़ गया। बब्बू हौदे में उसके पीछे बैठा हुआ था; उसकी तरफ मुड़ कर रानी ने उसके कान में कुछ कहा और राजा की लड़की की तरफ़ इशारा किया। पहले तो वह हैरत में आ गया, लेकिन चंद लमहों के बाद हाथी से उतर कर सिपहसालार के पास गया, और उससे बोला कि "लौंडियों में एक को रानी साहिबा ने बहुत पसंद किया है और उसे वह अपनी ख़िदमत में रखना चाहती हैं-उसे वह साथ ले जायेंगी। बाकी को लूट के असबाब के साथ बेच देना चाहिये ताकि लड़ाई का खर्च पूरा हो सके”। बब्बू तब सीधा राजा को लड़की के पास गया-लड़की ख़ौफ़ से कांप रही थी क्योंकि वह जान गई थी कि रानी ने उसे पहचान लिया है। बब्बू ने उस की बांह पकड़ कर उसे अपने साथियों के हवाले किया और हुक्म दिया कि उसे अपने साथ रक्खें। लेकिन उस वक्त एक अजब नज़ारा नज़र आया।
बहुत ऊपर आस्मान में एक झुंड पहाड़ी उक़ाबों का जो चील की शकल के होते हैं उड़ता हुआ पा रहा था। उस झुंड के बीच में एक काली सी कोई बड़ो चीज़ थी। वह तेजी से उस मैदान के ऊपर आ पहुंचा जहां कि फ़ौज और रानी वगैरह थीं। नज़दीक आने पर देखा गया कि उन चिड़ियों के चक्कर के दर्मियान एक आदमी एक किस्म की पीढ़ी पर बैठा हुआ है, पीढ़ी लम्बे पतले बांसों और रस्सियों से जिनको कि उकाब अपने पंजों में पकड़े हुए हैं लटक रही है। जो आदमी कि पीढ़ी पर बैठा था बुड्ढा था और फ़क़ीर का लिबास पहने हुए था। चिड़ियों को जो हुक्म वह देता था वह उसे बिला तअम्मुल बजा लाने को मुस्तइद नज़र आती थीं। वह योगी अपनी जगह पर उकाबों के साथ अधर में कुछ देर तक मंडलाता रहा-लोग तअज्जुब में डूबे हुए उसकी तरफ़ एक टक चुपचाप देख रहे थे कि यकायक बुलन्द आवाज़ से वह बोल उठा-"ऐ सिपहसालार, मेरे मुलाज़िम वफ़ादार, मुरार सिंह-ऊपर नज़र कर और देख अपने पुराने आक़ा को। मैं जानता हूं कि जिस वक्त और सब मुझ से सरकश और बेवफ़ा हो गये थे और मैं अपने राज से निकाल दिया गया था, तू उस वक्त भी मेरा सच्चा वफ़ादार था और मेरी शिकस्त उस वक्त सिर्फ़ तेरी गैरमौजूदगी से हुई थी। मुझ को यह भी मालूम है कि मेरा राज दबा लेने वाले की मुलाज़िमत तैने तब तक इख़ियार नहीं की थी जब तक कि मैं कश्मीर छोड़ कर योग साधन करने के लिये गंगोत्री की तरफ़ नहीं चला गया था। मैं चाहता हूं कि तू अपने पुराने मालिक का हुक्म मान और उसे इस बद औरत का जो कि मेरी गद्दी को बेइज्ज़त कर रही है मुक़ाबिला करने में मदद दे"। पहले तो सिपहसालार ने उसे सिर्फ़ ख़याली सूरत या ख़्वाबी शकल समझा, मगर जब उसने अपने पुराने महाराज को आवाज़ और सूरत से पहचान लिया, फ़ौरन अपनी तलवार मियान से खींच ली और ऊंची आवाज़ से कहने लगा-"सिपाहियो, हमारे पुराने महाराज आज बैकुंठ से हमारे पास वापस आये हैं। वह सिपाही जो मेरी और उनकी तरफ़ हों अपने अपने हाथ उठावें"। सारी सिपाह एक आवाज़ से ज़ोर से कहने लगी-"महाराज की जय!" और हर एक सिपाही जोश में आकर अपने हथियारों को घुमाने लगा। बब्बू उस वक्त रानी के पास को दौड़ा और झट-पट हाथी पर अपनी जगह में पहुंच फ़ीलवान को हुक्म दिया कि "जितना तेज़ हो सके शहर को चलो"। फ़ीलवान ने हाथी दौड़ाया और रानी और बब्बू भाग गये होते लेकिन सिपह-सालार ने कुछ सवारों को उनका पीछा करने का हुक्म दिया। सवार बहुत जल्द उनके पास पहुंच गये और तीरन्दाज़ों ने फ़ीलवान की तरफ़ तीर खींच कर उससे कहा कि "रुक जाओ, वरना तीर तुम पर छोड़ दिये जायंगे"। फ़ीलवान ने देखा कि भागना फुजूल होगा इस लिये हाथी को रोक दिया। उसके बाद रिसाला वहां पर आ पहुंचा और बब्बू और रानी दोनों कैद कर लिये गये।