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भाग 31

10 अगस्त 2022

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इस तरह वह कई दिनों तक सफ़र करते रहे ओर अख़ीर को कश्मीर से एक रोज़ के रास्ते पर पहुंचे। यहां फ़ौज ठहर गई और रानी मय अपने तमाम दरबारियों के, अपनी फ़तहयाब फ़ौज को लेने के लिये और यह देखने के लिये कि लूट में क्या क्या माल आया है, आई। फ़ौज बड़ी सज धज के साथ खड़ी की गई और रुपये, अशर्फियां, सोने चांदी के जेवर, जवाहिरात, कीमती रेशमी कपड़े, शाल दुशाले, खूबसूरत घोड़े और लौंडी गुलाम जो लूट में आये थे सिपह-सालार के ख़ेमे के सामने नुमाइश के वास्ते बड़े ठाट बाट से सजाये गये। यह नुमाइश बड़ी शानदार थी। रानी एक हाथी पर जिस पर बेशकीमती सुनहली झूल पड़ी हुई थी एक सोने के हौदे में बैठी हुई थी, उसके दरबारी और मुसाहिब उसके पीछे घोड़ों पर सवार थे, उनके पोछे पलटनों की कतारें थीं। जब वह उस जगह के सामने पहुंची जहां लौंडी और गुलाम लाइन में खड़े किये गये थे, उसकी नज़र राजा की लड़की पर पड़ी; उसे देखते ही वह चौंक पड़ी, और उसका चिहरा पीला पड़ गया। बब्बू हौदे में उसके पीछे बैठा हुआ था; उसकी तरफ मुड़ कर रानी ने उसके कान में कुछ कहा और राजा की लड़की की तरफ़ इशारा किया। पहले तो वह हैरत में आ गया, लेकिन चंद लमहों के बाद हाथी से उतर कर सिपहसालार के पास गया, और उससे बोला कि "लौंडियों में एक को रानी साहिबा ने बहुत पसंद किया है और उसे वह अपनी ख़िदमत में रखना चाहती हैं-उसे वह साथ ले जायेंगी। बाकी को लूट के असबाब के साथ बेच देना चाहिये ताकि लड़ाई का खर्च पूरा हो सके”। बब्बू तब सीधा राजा को लड़की के पास गया-लड़की ख़ौफ़ से कांप रही थी क्योंकि वह जान गई थी कि रानी ने उसे पहचान लिया है। बब्बू ने उस की बांह पकड़ कर उसे अपने साथियों के हवाले किया और हुक्म दिया कि उसे अपने साथ रक्खें। लेकिन उस वक्त एक अजब नज़ारा नज़र आया।

बहुत ऊपर आस्मान में एक झुंड पहाड़ी उक़ाबों का जो चील की शकल के होते हैं उड़ता हुआ पा रहा था। उस झुंड के बीच में एक काली सी कोई बड़ो चीज़ थी। वह तेजी से उस मैदान के ऊपर आ पहुंचा जहां कि फ़ौज और रानी वगैरह थीं। नज़दीक आने पर देखा गया कि उन चिड़ियों के चक्कर के दर्मियान एक आदमी एक किस्म की पीढ़ी पर बैठा हुआ है, पीढ़ी लम्बे पतले बांसों और रस्सियों से जिनको कि उकाब अपने पंजों में पकड़े हुए हैं लटक रही है। जो आदमी कि पीढ़ी पर बैठा था बुड्ढा था और फ़क़ीर का लिबास पहने हुए था। चिड़ियों को जो हुक्म वह देता था वह उसे बिला तअम्मुल बजा लाने को मुस्तइद नज़र आती थीं। वह योगी अपनी जगह पर उकाबों के साथ अधर में कुछ देर तक मंडलाता रहा-लोग तअज्जुब में डूबे हुए उसकी तरफ़ एक टक चुपचाप देख रहे थे कि यकायक बुलन्द आवाज़ से वह बोल उठा-"ऐ सिपहसालार, मेरे मुलाज़िम वफ़ादार, मुरार सिंह-ऊपर नज़र कर और देख अपने पुराने आक़ा को। मैं जानता हूं कि जिस वक्त और सब मुझ से सरकश और बेवफ़ा हो गये थे और मैं अपने राज से निकाल दिया गया था, तू उस वक्त भी मेरा सच्चा वफ़ादार था और मेरी शिकस्त उस वक्त सिर्फ़ तेरी गैरमौजूदगी से हुई थी। मुझ को यह भी मालूम है कि मेरा राज दबा लेने वाले की मुलाज़िमत तैने तब तक इख़ियार नहीं की थी जब तक कि मैं कश्मीर छोड़ कर योग साधन करने के लिये गंगोत्री की तरफ़ नहीं चला गया था। मैं चाहता हूं कि तू अपने पुराने मालिक का हुक्म मान और उसे इस बद औरत का जो कि मेरी गद्दी को बेइज्ज़त कर रही है मुक़ाबिला करने में मदद दे"। पहले तो सिपहसालार ने उसे सिर्फ़ ख़याली सूरत या ख़्वाबी शकल समझा, मगर जब उसने अपने पुराने महाराज को आवाज़ और सूरत से पहचान लिया, फ़ौरन अपनी तलवार मियान से खींच ली और ऊंची आवाज़ से कहने लगा-"सिपाहियो, हमारे पुराने महाराज आज बैकुंठ से हमारे पास वापस आये हैं। वह सिपाही जो मेरी और उनकी तरफ़ हों अपने अपने हाथ उठावें"। सारी सिपाह एक आवाज़ से ज़ोर से कहने लगी-"महाराज की जय!" और हर एक सिपाही जोश में आकर अपने हथियारों को घुमाने लगा। बब्बू उस वक्त रानी के पास को दौड़ा और झट-पट हाथी पर अपनी जगह में पहुंच फ़ीलवान को हुक्म दिया कि "जितना तेज़ हो सके शहर को चलो"। फ़ीलवान ने हाथी दौड़ाया और रानी और बब्बू भाग गये होते लेकिन सिपह-सालार ने कुछ सवारों को उनका पीछा करने का हुक्म दिया। सवार बहुत जल्द उनके पास पहुंच गये और तीरन्दाज़ों ने फ़ीलवान की तरफ़ तीर खींच कर उससे कहा कि "रुक जाओ, वरना तीर तुम पर छोड़ दिये जायंगे"। फ़ीलवान ने देखा कि भागना फुजूल होगा इस लिये हाथी को रोक दिया। उसके बाद रिसाला वहां पर आ पहुंचा और बब्बू और रानी दोनों कैद कर लिये गये।

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रचनाएँ
तिलिस्माती मुँदरी
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श्रीधर पाठक (११ जनवरी १८५८ - १३ सितंबर १९२८) प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के हिन्दी कवि थे। वे प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी थे। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापति हुए और 'कविभूषण' की उपाधि से विभूषित किया गया । श्रीधर पाठक सारस्वत ब्राह्मणों के उस परिवार में से थे जो 8वीं शती में पंजाब के सिरसा से आकर आगरा जिले के जोंधरी गाँव में बसा था। एक सुसंस्कृत परिवार में उत्पन्न होने के कारण आरंभ से ही इनकी रूचि विद्यार्जन में थी। छोटी अवस्था में ही इन्होंने घर पर संस्कृत और फ़ारसी का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। उनकी नियुक्ति राजकीय सेवा में हो गई। सर्वप्रथम उन्होंने जनगणना आयुक्त रूप में कलकत्ता के कार्यालय में कार्य किया। उन दिनों ब्रिटिश सरकार के अधिकांश केन्द्रीय कार्यालय कलकत्ता में ही थे। जनगणना के संदर्भ में इन्हें भारत के कई नगरों में जाना पड़ा। इसी दौरान इन्होंने विभिन्न पर्वतीय प्रदेशों की यात्रा की तथा इन्हें प्रकृति-सौंदर्य का निकट से अवलोकन करने का अवसर मिला | इनकी रचनाये क्रमशः इस तरह हैं : मनोविनोद, एकांतवासी योगी, जगत सचाई सार धन विनय , गुनवंत हेमंत , वनाष्टक, देहरादून , गोखले गुनाष्टक सांध्य अटन इत्यादि।
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तिलिस्माती मुँदरी भाग 1

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हरिद्वार से आगे उत्तर की तरफ़ पहाड़ों में दूर तक चले जाइये तो एक ऐसे मुक़ाम पर पहुंचियेगा जहां पानी की एक मोटी धारा, गाय के मुँह के मानिंद एक मुहरे की राह, बरफ़ के पहाड़ों से निकल कर बड़े ज़ोर और शोर

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भाग 2

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यह सुन कर योगी ने कहा-"हां, मेरा एक काम है। मैं पहले कश्मीर का राजा था, पर मेरे दामाद ने मुझे गद्दी से उतार कर राज छीन लिया और मैं यहां योगी के भेस में छुपा हुआ हूं। मैं चाहता हूं कि मरने के पहले अपनी

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भाग 3

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कौओ ने उसे उसके नाना मे जो कहला भेजा था सब सुना दिया और तोते ने जिस तरह उसका राज छिन गया था सब बयान किया। राजा की लड़की सुन कर बहुत रोई और बोली-“ऐ परिन्दो, मुझे जैसे बने मेरे नाना के पास ले चलो, क्यों

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भाग 4

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इसके थोड़े ही दिनों बाद राजा शिकार खेलने को पहाड़ों में चला गया और उसके जाने के दूसरे ही दिन कौओं ने तोते को ख़बर दी कि उन्होंने रानी के ख़ास गुलाम बब्बू को बाग़ में कुछ जड़ी बूटी उखाड़ कर इकट्ठा करते

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भाग 5

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राजा की लड़की किसी तरह मुशकिल से ज़मीन से उठी और तोते के कहने पर कि इस मौके पर ज़रूर भाग चलना चाहिये उसके साथ दरवाजे की राह जो कि अब खुला हुआ था, बाहर निकल गई और सीढ़ियां उतर कर बाग़ में दाख़िल हुई, ज

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भाग 6

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इस तरह वह बराबर चले गये जब तक कि राजा की लड़की थकी नहीं। पर अब वह थक भी गई और उसे भूख भी लगी; तोते ने तब ऊपर वाले कौए को बुला कर पूछा कि कहीं उसे पानी का निशान भी दिखाई दिया कि नहीं। कौए ने कहा कि एक

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भाग 7

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जादू की अंगूठी हाथ आने से रानी बहुत खुश हुई। उसने छुटपन में इसका बहुत कुछ हाल सुना था। उसे मालूम था कि यह अंगूठी पेश्तर के ज़माने में गुरु गोरखनाथ के पास थी जिन्होंने कि इसकी ताक़त से तमाम चिड़ियों को

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भाग 8

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रानी से जब छुट्टी पाई, कौए सीधे राजा की लड़की के कमरे की खिड़की का दौड़े, वहां उन्होंने तोते को पाया और उसे ज़हरीले, गोंद और अनारों का सब हाल सुना दिया। उन सभी को यकीन हो गया कि अब राजा की लड़की को दु

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भाग 9

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सुबह को बब्बू देखने आया कि लड़की मरी या नहीं और उसे बड़ा तअज्जुब हुआ जब कि उसको ज़हर देने के बाद भी जीता पाया। वह वहां से चुपका ही लौट गया और रानी से जो कि उस वक्त बाग़ में अपनी खिड़की के नीचे अंगूठी

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भाग 10

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तोते और माहीगीर ने अब इस बात का मंसूबा किया कि राजा को लड़की को बचाने की सब से अच्छी क्या तरकीब होगी। बुड्ढे ने कहा कि "मैं अपना जाल ठीक छज्जे के नीचे डाल दूंगा ताकि जिस वक्त लड़की गिराई जाय, उसी में

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भाग 11

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सुबह को माहीगीर राजा की लड़की को झोपड़ी में बन्द छोड़ मछली पकड़ने चला गया और कौए महल की तरफ़ को यह देखने कि वहां क्या हो रहा है, उड़ दिये। वहां उन्होंने देखा कि बड़ी दौड़ धूप मच रही है। राजा की लड़की

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भाग 12

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एक दिन राजा की लड़की फुलवाड़ी में अकेली खेल रही थी, उसने ऊपर को जो निगाह की तो देखा कि एक कंजरी बागीचे की नीची दीवार पर झांक रही है। जैसे ही उस औरत को मालूम हुआ कि मुझे लड़की ने देख लिया है उसने सिर झ

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भाग 13

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राजा की लड़की बड़े सवेरे ही जाग गई और जब देखा कि कंजरी और उसके बालक जो उसके देरे में सोये थे अभी नहीं उठे हैं और देरे का दरवाज़ा भी खुला है तो आहिस्ता पैर रखती हुई बाहर निकल आई और चाहा को भाग जाऊं पर

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भाग 14

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अख़ीर को वह जंगल की हद के पास एक पेड़ के नीचे बैठ गई और वहां बैठी हुई जिस तरफ़ से आई थी उस तरफ़ को देख रही थी कि उसे ऐसा मालूम हुआ कि एक अजीब सूरत की चिड़िया उसकी तरफ़ उड़ती हुई आ रही है। ज्योंही वह न

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भाग 15

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उस रात को सोने के पेश्तर वह कंजरी जंगल में से कुछ पत्ते तोड़ लाई और उन्हें एक बरतन में उबाल डाला और उनके अर्क़ से राजा को लड़की का चिहरा और बाहे और टांगे धो दी जिससे कि उसका रंग ठीक कंजरों का सा गंदुस

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भाग 16

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दूसरे दिन उन्होंने उस बन को छोड़ एक बयाबान में पैर रक्खा और उसी रास्ते दिन भर चले। वहां कोई जानवर या पेड़ न मिला, क्योंकि वह बड़ा भारी रेत का मैदान था जिसे रेगिस्तान कहते हैं और जाबजा ऊंट और घोड़ों की

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भाग 17

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दूसरे रोज़ सुबह को कंजरी उसे शहर के अंदर ले गई। तोता बदस्तूर उसके बाजू पर बैठा हुआ साथ गया। बहुत सी गलियों में गुज़रते हुए वह वहां पहुंचे जहां कि लौंडी-गुलामों का बाज़ार था। उस जगह बहुत से गुलाम एक बड

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भाग 18

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उस बेचारी बच्ची को जब वह इस तरह पर गैरों के हाथ में छोड़ दी गई बहुत डर और रंज हुआ और ज़मीन के ऊपर दूसरे गुलाम बालकों के साथ ऐसी जगह बैठ गई जहां उसपर हर एक की नज़र न पड़े। तोते को उसने गोदी में बैठा के

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भाग 19

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कोतवाल ने झगड़े का फ़ैसला ऐन अपने मकान के नीचे गली में किया था। जैसे ही कि लड़की कंजरी को दी गई कोतवाल के घर से एक काली लौंडी ने आकर कंजरी से कहा कि कोतवाल की बीबी साहिबा उससे कुछ कहना चाहती हैं। कंजर

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भाग 20

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एक रोज़ जब कि दोनों लड़कियां दयादेई की मां के कमरे में बैठी हुई अपने सीने पिरोने के काम में लगी हुई थीं कोतवाल, जो राजा का दरबार करके लौटा था, वहां चला आया। उसके चिहरे पर उदासी और ग़म सा छाया हुआ था।

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भाग 21

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इस के तीसरे दिन शाम को दोनों कौए खिड़की की राह भीतर आ दाख़िल हुए। थके हुए और डरे हुए से थे। राजा की बेटी ने उन्हें कुछ खाने को और पानी पीने को दिया। खा कर और सुस्ता कर, जो कुछ उन्होंने देखा था उसका बय

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भाग 22

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तोता एक धागे का छोटा गोला अपने पंजे में लेकर मीनार के जीने की बची हुई सिढ्डियों में सब से निचली सिड्ढी तक उड गया और धागे के ऊपर के सिरे को थाम कर गोला उसने नीचे को छोड़ दिया और साथ ही आप भी उसके पीछे

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सुबह के वक्त जब सूरज की किरनें दीवार के एक दरवाजे से उस कोठड़ी में पहुंची तब वह लड़की जागी और उसने देखा कि वह कोठड़ी छोटो और गोल है और उसके चारों ओर छज्जा है और एक तरफ़ उसके पत्थर के फर्श में ज़ीने मे

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भाग 24

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क़रीब २ सारे दिन राजा की लड़की अपनी कोठड़ी ही मैं रही, कभी तोते से बात चीत कर लेती थी, कभी सीने लगती थी, और कभी एक किताब जो अपने साथ ले गई थी पढ़ने लगती थी। अख़ीर को उसने एक उकसा हुआ सा पत्थर कोठड़ी क

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यह सब वक्त राजा की लड़की ने मीनार के ऊपर उस छोटी कोठड़ी ही में अपनी तीनों चिडियाओं के साथ गुज़ारा। वह अक्सर कौओं के ज़रिये से बातों और संदेशे के रुक्के दयादेई के पास भेजा करती थी और दयादेई अपने सोने क

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वह लौंडिया बराबर दौड़ती ही गई जब तक कि उस मकान में न पहुंची जहां कि उसके साथ के लौंडी गुलाम बन्द थे और वहां पहुंच कर दरबान से कहा कि उसे गुलामों के दारोग़ा के पास ले चले; जब वह दारोग़ा के पास पहुंची द

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भाग 27

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राजा की लड़की मीनार में जहां कि काली लौंडी उस के हाथ पैर बांध कर उसे पड़ा छोड़ गई थी सिपाही का जो न मिली उसका किस्सा यों है-जिस वक्त वह बेबसी की हालत में कोठड़ी के अन्दर पड़ी हुई थी उसे उस सूराख़ में

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भाग 28

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ने फ़ौरन वैसा ही किया-उल्लू और उल्लन की टांगों को ज़ोर से थाम कर छज्जे से झट कूद पड़ी और परों की बड़ी फट फटा हट के साथ झाड़ी की मुलायम शाखो पर बगैर ज़रा भी चोट लगे जा पड़ी, वहां पर उसने उनकी टांगे छोड

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भाग 29

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 तो मैं भी तेरे साथ चलता हूं, मगर मुझे कौओं से कह आने दे कि वह दोनों इसी खंडहर के आस पास रहें ताकि अगर जरूरत पड़े तो मिल सके। कौओं को इस तरह हिदायत करके तोता लड़की के लबादे के अन्दर आ दबका और वह उसी व

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भाग 30

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दोनों लड़कियों को इस मुसीबत में सिर्फ़ यह एक तसल्ली का बाइस था कि दोनों एक ही कोठड़ी में रक्खी गई थीं। कोठड़ी बहुत छोटी थी और उसमें सिर्फ़ एक खिड़की थी जिसमें होकर तोता आ जा सकता था। इस खिड़की से तोता

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भाग 31

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इस तरह वह कई दिनों तक सफ़र करते रहे ओर अख़ीर को कश्मीर से एक रोज़ के रास्ते पर पहुंचे। यहां फ़ौज ठहर गई और रानी मय अपने तमाम दरबारियों के, अपनी फ़तहयाब फ़ौज को लेने के लिये और यह देखने के लिये कि लूट

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भाग 32

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महाराज तब लौंडी गुलामों की तरफ़ मुखातिब हो कर पूछने लगे “मेरी प्यारी दोहती कहां है?" उसी वक्त राजा की लड़की उनके पैरों पर आकर गिर पड़ी। उन्होंने उसे उठा कर छाती से लगा लिया और बोसे लिये, फिर उसे अपने

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