ने फ़ौरन वैसा ही किया-उल्लू और उल्लन की टांगों को ज़ोर से थाम कर छज्जे से झट कूद पड़ी और परों की बड़ी फट फटा हट के साथ झाड़ी की मुलायम शाखो पर बगैर ज़रा भी चोट लगे जा पड़ी, वहां पर उसने उनकी टांगे छोड़ दी और झाड़ी की टहनियों और शाखो को पकड़ती हुई नीचे ज़मीन पर उतर गई, और वहां चारों तरफ़ देखने लगी कि किस तरफ़ को जाना बिहतर होगा कि दुश्मन उसका पीछा न कर सकें। उसी वक्त उसे वह सिपाही जो उसे पकड़ने को खंडहर की तरफ़ आ रहे थे दिखाई दिये। लेकिन उसकी खुशनसीबी थी कि वह उसे देख न पाये; और जिधर से वह आ रहे थे उसकी दूसरी तरफ़ वह फ़ौरन निकल गई और उनकी नज़रों से बचती हुई बड़े ज़ोर से एक छोटी सी गली की मोड की तरफ जो उसे वहां से दिखाई दे रही थी बेतहाशा दौड़ी। उस गली के दोनों तरफ़ बाग़ो की चहारदीवारियां थीं; उस तंग गली में वह थोड़ी ही दूर आई थी कि बांई तरफ़ की दीवार में एक दरवाजे के पास जब पहुंची दरवाज़ा किसी ने आहिस्ता और होशियारी से खोला। उस वक्त वह एक अंजीर के पेड़ की आड़ में छिप गई, जो कि दीवार में उगा हुआ था। उसने देखा कि एक लौंडी उस दरवाजे से निकल कर और चारों तरफ़ ऊपर नीचे देख कर फुरती से गली के सिरे की तरफ़ चली गई-जैसे ही वह नज़र से ग़ायब हुई राजा की लड़की पेड़ की आड़ से बाहर निकल आई और दरवाज़े के पास पहुंच कर उसने देखा कि वह पूरी तरह बंद नहीं है; उसने किवाड़ आहिस्ता से खोल लिये और भीतर को झांका तो देखा कि वहां एक बड़ा साबाग़ है जिसमें घने पेड़ लगे हुए हैं और वहां कोई शख़्स नहीं है। उसने सोचा कि इस वक्त यहां छिप जाना बनिस्बत उस गली में जाने के बिहतर होगा, क्योंकि क्या मालूम गली कहां को गई है। बस वह बाग़ के भीतर घुस गई और दरवाज़े को वैसा ही अधखुला छोड़ कर सब से नज़दीक के पेड़ों की कुंज में छिपने को लपकी। वहां पहुंची ही थी कि उसको उस दरवाजे के बंद होने की आवाज़ सुनाई दी और उस तरफ़ को झांकने से मालूम हुआ कि वही लौंडी बाहर से वापस आ कर उसको बंद कर रही है और फिर मकान की तरफ कि जिसकी छत बाग़ के दूसरे सिरे पर दिखाई दे रही थी जा रही है। उसने देखा कि यहां कोई खतरा नहीं है, लेकिन तो भी वह एक सर्व के पेड़ पर चढ़ गई जिसकी घनी डालियों में उसे कोई नहीं देख सकता था। और रात होने तक वहीं छिपी रहने का इरादा कर लिया और मन में कहने लगी कि “रात होने पर मैं कोतवाल के घर चली जाऊंगी, उसकी मिहर्बान बीबी और दयादेई मुझको ज़रूर अपनी पनाह में ले लेंगी, अगर ले सकेंगी तो। सिवा उनके यहां के मैं और कहां जा सकती हूं?"
दिन बहुत बड़ा मालूम पड़ा और मुशकिल से कटा, अख़ीर को रात आई; मगर राजा की लड़की का आधी रात से पेश्तर वहां से जाने का हियाव नहीं पड़ा, उसने ख़याल किया कि रात ज़ियादा गुज़र जाने पर कोतवाल के घर के रास्ते में किसी से भेट होने का कम डर होगा। इस लिये आधी रात के बाद वह दरख़ से उतरी और बाग़ का दरवाज़ा खोल कर जिस रास्ते आई थी उसी रास्ते खंडहर के पास की खुली जगह में पहुंच गई। वहां से अंधेरे में टटोलती हुई कोतवाल के बाग़ की चहार दीवारी की तरफ़ चली और चाहती थी कि किसी तरकीब के दीवार को लांघ जावे और बग़ैर आहट के कोतवाल के मकान के अन्दर पहुंच जावे कि उसे उसके पुराने दोस्त उल्लू उल्लन पंख फटफटाते उस के सिर के ऊपर सितारों को कमजोर रोशनी में दिखाई दिये। उसने उनको पुकारा और पूछा कि कहीं उन्होंने उसका तोता या दोनों कौए तो नहीं देखे हैं-उल्लू दीवार पर बैठ कर बोला-"हां हां, वह तीनों इसी खंडहर में बसेरा कर रहे हैं, और दिन भर चारों तरफ़ तेरी तलाश में उड़ते फिरे थे" लड़की ने मिन्नत की-"ओह, मझे उन के पास ले चलो" उल्लू तुरन्त खंहडर के अन्दर उड़ गया और तोते को अपने पीछे पंख फटफटाते हुए साथ लेकर फ़ौरन फिर हाज़िर हुआ। तोता बड़े जोश के साथ चीख मार कर राजा की लड़की की गोद में उड़ कर जा बैठा और बोला-"ऐ मेरी प्यारी बच्ची, क्या सचमुच तू मुझ को फिर मिल गई, मैं ने तो समझ लिया था कि तू किसी बड़ी मुसीबत में फंस गई है और अब न मिलेगी!” लड़की ने उसको सारा किस्सा सुना दिया कि वह खंडहर से किस तरह भाग गई थी और कहा कि “अब मैं कोतवाल के बाग़ के अन्दर पहुंचने की कोशिश कर रही हूं, मगर तोते ने उसे रोक दिया और बतला दिया कि बजाय उसके वह लोग दयादेई को पकड़ ले गये हैं। यह सुन कर राजा की लड़की को बहुत अफ़सोस और फ़िक्र हुआ और कहने लगी कि "मैं दयादेई के बचाने के लिये अभी अपने तई अफ़सरों के हवाले कर दूंगी," और अपना इरादा पूरा करने को फ़ौरन वहां से चल दी, क्योंकि वह इस बात का खयाल बरदाश्त नहीं कर सकती थी कि दयादेई और दयादेई की मां की इस मुसीबत का बाइस वही थी। मगर तोते ने उससे कहा-"अच्छा, मेरी प्यारी, अगर तू इस तरह अपने को ज़ाया करने पर आमादा है,