यह सब वक्त राजा की लड़की ने मीनार के ऊपर उस छोटी कोठड़ी ही में अपनी तीनों चिडियाओं के साथ गुज़ारा। वह अक्सर कौओं के ज़रिये से बातों और संदेशे के रुक्के दयादेई के पास भेजा करती थी और दयादेई अपने सोने के कमरे की खिड़की में आ बैठा करती थी जहां कि राजा की लड़की उसे अपनी कोठड़ी की दीवार के छेद से देख सके। और उसमे से अपने हाथ बाहर निकाल कर उंगलियों के इशारे से बात कर सके। वह हाथों को इतना बाहर नहीं निकालती थी कि कोई गैर शख्स़ देख सके, और मीनार पर एक घनी बेल छाई हुई थी जिसके सबब से दयादेई की खिड़की के सिवा और कहीं से वह सूराख नहीं दीख सकता था। तीनों चिड़ियां उसके लिये के दयादेई पास से खाने की चीज़ लाने में भी बहुत कुछ लगी रहती थीं, क्यों दयादेई दो तीन दिन तक उसके पास फिर नहीं जाने पाई थी, क्योंकि जल्दी जल्दी। जाने से डर था कि कोई जान जायगा। अब की बार वह वहां कुछ रात गुज़र जाने पर गई, क्योंकि चांद रोशन हो रहा था, उसके छिप जाने तक उसे रुका रहना पड़ा। और वहां उनको बातें करते करते करीब करीब सवेरा हो गया, तब दयादेई गई। उस वक्त राजा की लड़की को इतनी नींद आ रही थी कि वह दयादेई के उतर जाने के बाद रेशम की सिड्ढी को ऊपर खींच लेना भूल गई। सुबह को तोता उससे पहले जाग गया और कौओं को कश्मीर की फ़ौज की ख़बरें लाने के लिये भेज कर आप कोतवाल के घर को, लड़की के वास्ते खाना लाने के लिये, उड़ गया। तोते को गये बहुत देर नहीं हुई थी कि राजा की लड़की को आंख किसी के हंसने की आवाज़ से खुल गई। यह आवाज़ उसके नज़दीक ही सुनाई दी और बेचारी के होश उड़ गये जब उसने एक काली सूरत को ज़ीने से निकल कर अपनी तरफ़ आते हुए देखा। लेकिन वह उस सूरत से खूब वाकिफ़ थी, क्योंकि वह उसी लौंडी की थी जिसने उसका ज़िक्र कोतवाल के मकान की तलाशी के वक्त उसे पकड़वाने की ग़रज़ से राजा के अफ़सरों से किया था। वह लौंडी उसकी हमेशा दुश्मन रही थी।
वह उससे तनूज़ के साथ कहने लगी-“हये, हये, तोते- वाली, मैं ने आज तुझे पकड़ लिया! मैं अब तुझे जल्द उन लोगों को सपुर्द कर दूंगी जो तुझे पाकर खुश होंगे और मुझे इनाम देंगे"-और फुरती से अंदर आकर राजा की लड़की को पकड़ लिया और उसकी चद्दर फाड़ के उसके दो टुकड़े कर उनसे उसके हाथ पैर बांध दिये-और यह कहती हुई कि "मुझे यक़ीन है तू मेरे लौट आने तक यहां से भाग न सकेगी" डोरी की सिड्ढी के रास्ते नीचे उतर गई और ज़ोर से उसे झटका दिया कि वह कील समेत नीचे जा पड़ी। उसको झट पट समेट कर और साथ लेकर वह बदज़ात लौंडी वहां से बड़ी फुरती के साथ दौड़ती हुई चली गई; राजा की लड़की को उसी तरह बंधी हुई पड़ी छोड़ गई। अगर उसके हाथ बंधे हुए न भी होते तो भी अब वह वहां से कहीं नहीं जा सकती थी। लौंडी ने राजा की लड़की को वहाँ इस तरह पाया था- वह उस मकान से कि जिसमें पकड़े हुए लौंडी गुलाम रक्खे गये थे किसी तरकीब से उसी रात को भाग आई थी। और मंदिर के खंडहरों में छुपने को जगह ढूंढ रही थी। ढूंढते में उसे मीनार से लटकती हुई वह रेशमी रस्सी की, सिड्डी दिखाई दी; उस पर वह चढ़ गई यह देखने को कि वह ऊपर कहां लगी हुई है, और जब उसने राजा की लड़की को वहां सोता देखा तो फ़ौरन उसके जी में आया कि उसे राजा के अफ़सरों के हवाले कर दे, क्योंकि अलावा इसके कि वह उसले जलती थी वह यह भी जानती थी कि भागे हुए लौंडी गुलामों के पकड़ लाने वालों और पता बताने वालों को इनाम मिलता है और उसे यकीन था कि राजा को लड़की के मानिन्द उमदा लौंडी को पकड़वाने के इनाम में वह सिर्फ़ भाग आने के लिये मुआफ़ ही नहीं कर दी जायगी बल्कि क़ैद से छोड़ भी दी जायगी।