तो मैं भी तेरे साथ चलता हूं, मगर मुझे कौओं से कह आने दे कि वह दोनों इसी खंडहर के आस पास रहें ताकि अगर जरूरत पड़े तो मिल सके। कौओं को इस तरह हिदायत करके तोता लड़की के लबादे के अन्दर आ दबका और वह उसी वक्त वहां से चल दी और नज़दीक की गली के रास्ते सीधी कोतवाल के मकान के दरवाजे पर पहुंची और जोर से उले खटखटाने लगी-कुछ देर बाद एक बुढ़िया लौंडी ने खिड़की से अपना सिर निकाल कर पूछा-"कौन है?"-"मैं हूं चांदनी, मुझे भीतर आने दो"-यह जवाब पाकर लौंडी ने दरवाज़ा खोल दिया और राजा की लड़की के कहने से उसे ज़नाने कमरे में ले गई। वह लौंडी दयादेई की दाई थी, राजा की लड़की को देखते ही वह फूट फूट कर रोने लगी और दयादेई पर जो मुसीबत गुज़री थी सुनाने लगी, लेकिन राजा की लड़की ने कहा कि "मुझको सब मालूम है, लेकिन मेरे सबब से वह इस बिपत को न भोगने पावेगी, मैं अपने को पकड़वाने के लिये आई हूं"-और कहा कि "मुझे दयादेई की मां के पास ले चल"-जब उसके पास पहुंची उस के सीने से लिपट गई और बोली कि "मैं अपने को पकड़वाने और दयादेई को छुड़वाने के लिए आई हूं"। कोतवाल की बीबी उसके बोसे लेने लगी और उसे गले से लगा के रोने लगी, लेकिन उसने राजा की लड़की को अपने इरादे से रोका नहीं, क्योंकि दूसरी कोई सूरत उसकी लड़की के रिहाई पाने की न थी, लेकिन उस वक्त राजा की लड़की कि जिसे दिन भर कुछ खाने को नहीं मिला था और जो कि मिहनत और तकलीफ़ उठाने के बाइस निहायत थक गई थी, फ़र्श पर ग़श में आकर गिर पड़ी। कोतवाल की बीबी ने उसे चारपाई पर लिटा दिया और जब वह होश में आई उसने थोड़ा खाने को मांगा जो कि उसको दिया गया, उस के बाद वह सो गई और सुबह को खूब दिन निकल आने पर उठी। खाने के बाद कोतवाल की बीबी उसे अपने शौहर के पास ले गई और उससे उसके ऊंचे इरादे का बयान किया जिसकी कि कोतवाल ने बड़ी तारीफ़ की। तब उसकी बीबी से बहुत रंज और अफ़सोस के साथ रुख़सत होकर राजा की लड़की कोतवाल के हमराह गुलामों के कैदखाने को रवाना हुई। वहां वह दोनों फ़ौरन गुलामों के दारोगा के पास पहुंचाये गये और कोतवाल उस से अपने आने की ग़रज़ बयान करने लगा। लेकिन उसी वक्त राजा का वज़ीर जो गुलामों का मुआइना करने को आया था वहां आ पहुंचा और दारोगा ने कोतवाल से कहा कि "जो कुछ अर्ज़ करना हो, वज़ीर से करो"। वज़ीर उसका काई दोस्त न था, उसने जब सब हाल सुन लिया, कहा कि दयादेई को छोड़ देना बिलकुल नामुकिन है, क्योंकि ख़िराज इकट्ठा करने में इतनी मुशकिल पड़ रही है कि राजा ने हुक्म दिया है कि लौंडी और गुलाम बनाने लायक जो कोई लड़कियां और लड़के मिलें सब को पकड़ लेना चाहिये, इस लिए दयादेई और यह लड़की दोनों को लौंडियों में शामिल होना पड़ेगा। कोतवाल ने बहुत मिन्नत की और धमकियां भी दी और ग़म और गुस्से में अपनी डाढ़ी नोच डाली लेकिन वजीर पर कुछ असर न हुआ। तब कोतवाल वहां से सीधा राजा के महलों को गया और फ़ार्यद की कि उसकी बेटी को वज़ीर ने लौंडियों में दाख़िल कर दिया है, लेकिन राजा ने जवाब दिया कि क्या किया जाय कुछ बस नहीं है, ख़िराज के वास्ते काफ़ी रुपया इकट्ठा करना ज़रूरी है और वह लौंडी और गुलामों के ज़रिये ही से हो सकता है।