महाराज तब लौंडी गुलामों की तरफ़ मुखातिब हो कर पूछने लगे “मेरी प्यारी दोहती कहां है?" उसी वक्त राजा की लड़की उनके पैरों पर आकर गिर पड़ी। उन्होंने उसे उठा कर छाती से लगा लिया और बोसे लिये, फिर उसे अपने साथ हाथी पर सवार करा कर ले जाने की तैयारी की, लेकिन लड़की ने अर्ज़ की कि "मेरी मुसीबत की साथन और दोस्त दयादेई को भी ले चलिये" पस वह भी बैठा ली गई और कश्मीर के बुड्ढे महाराज अपनी फ़ौज के साथ अपनी पुरानी राजधानी पर क़ाबिज होने के लिए आगे बढ़े। तोता राजा की लड़की के बाजू पर बैठा हुआ शहर के लोगों की जयकार पर बड़ी खूबी के साथ सिर झुकाता जाता था, कौए दोनों खुशी से भरे हुए ऊपर उड़ते चलते थे। वह राज-महल के बाग़ में अपने पुराने बसेरे को चले गये। और उकाबों का गिरोह, अपनो ड्यूटी अदा करके अपने पहाड़ी मुक़ामो को रवाना हुआ।
राजा की लड़की ने महलों में पहुंचते ही पहला काम जो किया यह था कि अपने नाना से अर्ज़ की कि दयादेई की मां और बाप को कि जिन्हों ने उस के साथ ऐसा नेकी का सलूक किया था लाहौर से बुलवा लिया जाय। पस यह बुलवा लिये गये और उन्हें महलों के पास एक उमदा मकान रहने। के लिये दे दिया गया ताकि राजा की लड़की दयादेई से रोज़ मिल सके और दोनों अपना बहुत सा वक्त एक दूसरी की लुहबत में बिता सकें। अपने पुराने मददगार मिहर्बान बुड्ढे माहीगीर को-भी वह नहीं भूली-उसे उसने महाराज से सिफ़ारिश करके राजघराने की कश्तियों का दारोग़ा बनवा दिया।
लेकिन सब से ज़ियादा तारीफ़ का काम जो राजा की लड़की ने किया यह था कि अपने नाना से कह कर उन सब लड़कियों और लड़कों को जो लौंडी और गुलाम के तौर पर लाहौर से लाये गये थे फिर लाहौर को वापस भिजवा दिया। कश्मीर की रानी को कि जिसकी शरारत से उस लड़की को इतनी मुसीबतें उठानी पड़ी थीं राज के कानून से उसकी बुरी हरकतों के वास्ते फांसी की सजा मिलनी चाहिये थी लेकिन राजकुमारी ने इतनी सख्त सज़ा उसको न होने दी, उसे सिर्फ़ जनम कैद दी गयी और राजधानी से बहुत दूर एक पुराने किले में आराम के साथ उसके रहने का बन्दोबस्त करा दिया गया, और उसका लड़का संस्कृत का इल्म हासिल करने के लिये बनारस भेज दिया गया। बब्बू की भी जान बख़्श दी गयी-लेकिन वह कश्मीर से निकाल दिया गया।
महाराज अपनी दोहती के शादी के लायक होने तक कश्मीर में राज करते रहे। जब वह १८ बरस की हुई उसकी शादी लाहौर के राजा के बड़े लड़के से कर दी गयी। जब से राजकुमारी की सिफ़ारिश से वह लौंडी गुलाम जिन्हें लाहौर से कश्मीर की रानी की फ़ौज पकड़ लाई थी फिर लाहौर को भेज दिये गये थे तब से लाहौर के राजा और कश्मीर के महाराज में बड़ी दोस्ती पैदा हो गयी थी, और लाहौर का बड़ा राजकुमार जो कभी २ कश्मीर आकर महाराज के यहां रहा करता था महाराज को बहुत पसन्द। आ गया था-वह हर बात में लायक था। महाराज ने उसको अपनी दोहती से शादी के काबिल हर सूरत से समझा। इस लिये उसी के साथ उस राजकुमारी को ब्याह दिया और दूसरा कोई वारिस न होने से उसी को अपना सारा राज दे दिया।
बाद इसके महाराज फिर योग-साधन करने के लिये गंगोत्री को चले गये।
(इति)