इस के तीसरे दिन शाम को दोनों कौए खिड़की की राह भीतर आ दाख़िल हुए। थके हुए और डरे हुए से थे। राजा की बेटी ने उन्हें कुछ खाने को और पानी पीने को दिया। खा कर और सुस्ता कर, जो कुछ उन्होंने देखा था उसका बयान करने लगे। कहा कि "दोनों तरफ़ की फ़ौजों में बड़ी भारी लड़ाई हुई जिसमें कि लाहौर के राजा की हार हुई और उसकी फ़ौज भी तीन तेरह हो गई। अब रानी की फ़ौज लाहौर की तरफ़ आ रही है और कल यहां पहुंच जायगी"। राजा की बेटी ने यह हाल कोतवाल की बीबी से जब कहा तो वह बहुत रंजीदा हुई और घबराई और अपने खाविंद को जो कि उस वक्त कचहरी में था बुलवा कर सब हाल सुना दिया। जब कोतवाल ने पूछा कि उसे कैसे मालूम हुआ तो कह दिया कि "जादू के ज़ोर से दर्याफृ कर लिया, मगर मैं जियादा नहीं बतला सकती"। पहले तो कोतवाल ने उसका यकीन नहीं किया और समझा कि उसे सपना हुआ होगा; लेकिन जब देखा कि वह बहुत ख़ौफ़ कर रही है, उसकी बात को सच समझा। वह यह भी जानता था कि उसकी बीबी दाना और नेक है। वह फ़ौरन राजा की सभा में मशवरा करने को गया कि अब क्या करना मुनासिब है। वहां से वह बहुत देर बाद रात को वापस आया और यह ख़बर लाया कि यह सलाह तै पाई है कि अगर शिकस्त की अफ़वाह सच्ची है तो रानी की अताअत कबूल कर लेनी चाहिये ताकि शहर लुटने से बच जाय। कोतवाल ने यह ख़बर राजा की लड़की को फ़ौरन सुनाई और कहा कि “रानी की फ़ौज कल इस शहर पर कब्ज़ा कर लेगी इस लिये तुम्हारा यहां रहना ख़तरे से ख़ाली नहीं। हम तुम्हें किसी हिफ़ाज़त की जगह भेजे देते हैं"।
जब कि कोतवाल की बीबी राजा की लड़की से बातें कर रही थी और राजा की लड़की अपने मिहर्बानों से जुदा होने के ग़म और खौफ से रो रही थी कोतवाल को राजा का बुलावा आया। राजा उस वक्त लड़ाई के मैदान से भाग कर अपने महलों में आ सभा के दर्मियान सुलह की शर्तों का बिचार कर रहा था। सभा बहुत थोड़ी देर तक रही और कोतवाल जल्द वापस आया और यह ख़बर लाया कि दुश्मन ने यह शर्त की है कि अगर इस वक्त उसे बहुत सा रुपया दिया जाय और आगे को खिराज देने का क़रार किया जाय तो शहर पर चढ़ाई न की जायगी। लेकिन रुपया जो मांगा था इतना ज़ियादा था कि वह तमाम शहर का ज़र, ज़ेवर और दूसरा असबाब देने से पूरा हो सकता था। कोतवाल कहने लगा कि "अपना सारा माल दे डालने से हम सब बिल-कुल ग़रीब हो जायंगे लेकिन हमारी जान और शहर बच जायगा"। इस बात को सुन कर दयादेई बोली--"तो ऐ पिता, चांदनी को अब दूसरी जगह भेजने की ज़रूरत नहीं है, यहां अब उसको कुछ खौफ़ न रहेगा"-यह सुन कर कोतवाल बहुत उदास हुआ और कहने लगा कि "हमारे सारे पड़ोसी जानते हैं कि हमने बहुत रुपया देकर एक लौंडी ख़रीदी है, इस लिये हमारे असबाब के साथ वह भी ले ली जायगी, क्योंकि माल के वास्ते शहर में हर एक घर की जब तलाशी होगी हम उसे घर के भीतर कहां छिपा सकेंगे और शहर के बाहर भी कहीं नहीं भेज सकते क्योंकि शहर को फ़ौज के सिपाही सब तरफ़ घेरे पड़े हैं"। इतना कह कर कोतवाल बाहर चला गया और उनका सोच उसकी बात को सुनकर और भी बढ़ा। मगर तोता जो उनकी बात चीत सुनता रहा था अपनी बैठक से उतर कर राजा की लड़की के कंधे पर आ बैठा और उसका बोसा लेकर बोला "प्यारी रो मत, मुझे एक ऐसी जगह मालूम है जहां तू छिप सकती है। हमारे दोनों कौए बाग़ के पिछवाड़े वाले पुराने खंडहर में रहते हैं। इस खंडहर की एक मीनार साबित है उसकी चोटी पर जो एक छोटी कोठरी सी है उसमें तू छिप सकती है। लेकिन उसके जीने का निचला हिस्सा गिर गया है, इस लिए सिर्फ सिड्ढी के ज़रिये तू वहां पहुंच सकती है। मैं देखता हूं कि इस कमरे के सामान में कई एक रेशम की रस्सियां लगी हुई हैं, अगर यह हमारे मिहर्बान दोस्त इन में से कुछ रस्सियों की एक सिड्ढी बना दें तो दोनों कौए उसे लेकर मीनार की चोटी तक उड़ जायँगे- मैं तब उसका एक सिरा लटकती हुई सिड्ढी में लपेट के अटका दूंगा और दूसरा सिरा तेरी तरफ़ गिरा दूंगा लेकिन सिड्ढी इतनी हलकी बननी चाहिये कि कौए उसे उड़ा ले जा सकें"-राजा की लड़की ने यह सारी बात कोतवाल की बीबी से कह दी और वह तीनों जनी रस्सी की सिड्ढी बनाने लगी।