सुबह को माहीगीर राजा की लड़की को झोपड़ी में बन्द छोड़ मछली पकड़ने चला गया और कौए महल की तरफ़ को यह देखने कि वहां क्या हो रहा है, उड़ दिये। वहां उन्होंने देखा कि बड़ी दौड़ धूप मच रही है। राजा की लड़की के मरने की खबर फैल गई है, बड़ा मातम हो रहा है और लाश को नदी में प्रवाह देने के लिये तैयारियां हो रही हैं। वह वहां से उड़ कर फिर झोंपड़ी पर आये और तोता लड़की से कहने लगा “ऐ मेरी प्यारी, अब तू यहां बेखटके रह सकती है जब तक कि हमको कोई मौक़ा तेरे नाना के पास भाग चलने का न मिले, क्योंकि रानी ने यही समझा है कि तू पानी में डूब गई, और माहीगीर का हम पूरा ऐतिबार कर सकते हैं"। जब कि तोता यह कह रहा था माहीगीर मय एक टोकरी मछलियों के आ पहुंचा। उनमें से उसने अच्छी २ राजा की लड़की के लिये छांट ली और बाकी लेकर शहर में बेचने को चला गया। मछलियों के बेचने से जो दाम उसे मिले उनसे उसने खाने की दूसरी चीजें खरीदी और राजा की लड़की के वास्ते सादा लिबास बनाने के लिये कुछ कपड़ा मोल लिया।
पहली रानी ने लड़की को सीना पिरोना सिखा दिया था, इससे उसने थोड़े ही अर्से में एक साफ़ पोशाक अपने लिए तैयार कर ली जैसी कि ग़रीबों के बालक पहना करते हैं, क्योंकि बुड्ढे माहीगीर और तोते ने सोचा कि ग़रीबी लिबास में वह ज़ियादा बचाव से रहेगी। उन्होंने उससे यह भी कह दिया कि तू घर के भीतर ही रह जिससे कोई तुझे देख और पहचान न सके। लेकिन माहीगीर के झोपड़े के पिछवाड़े एक छोटा सा बाग़चा था जिसमें उसे जाने की इजाज़त थी। वह अपना वक्त घर का काम काज करने, जालों की मरम्मत करने (जो कि उसे माहीगीर ने सिखा दिया था) और चिड़ियों के साथ खेलने में बिताने लगी। हर रोज़ माहीगीर मछली पकड़ने जाता था और जो दाम उसे उनके बेचने से मिलता था उससे घर के लिए ज़रूरत की चीजे मोल ले आता था। यों हर बात में उनका गुज़र कुछ दिनों तक अच्छी तरह चला। लेकिन जब उमदा मछलियों का मौसिम गुज़र गया और उसे अपने पेशे में कम कामयाबी होने लगी तो ख़र्च की तकलीफ़ पेश आई। फलों का मौसिम भी ख़तम हो गया था, इससे कौए कोई फल नहीं ला सकते थे। एक रोज़ माहीगीर को एक भी मछली न मिली और घर यों ही लौट आया। उस वक्त घर में सिर्फ़ एक मोटी रोटी का टुकड़ा था। राजा की लड़की और वह उसे खाने को बैठने जाते थे कि दोनों कौए खिड़की की राह उनके पास आ पहुंचे। हर एक की चोंच में एक एक अशर्फी थी जो कि उन्होंने ज़मीन पर रख दी, और फिर राजा की लड़की से उनके पाने का हाल कहने लगे कि “हम दोनों महल के बाग़ में सब तरफ़ चक्कर लगाते फिरे कि कहीं कोई फल बचा हुआ हो तो ले चले और जब थक गये तो सुस्ताने के लिए एक पुरानी चिमनी की चोटी पर जा बैठे। चिमनी की नली चौड़ी और कम नीची थी। उसमें जो झांका तोतले कोई चीज़ चमकती सी नज़र आई। हममें से एक नीचे उतर गया। देखा कि वहां सरकारी खज़ाना है और रुपयों अशर्फीयां और जवाहिरात के चारों तरफ़ गंज लगे हुए हैं। उसने वहां दूसरे को भी बुला लिया और दोनों अपनी चोंच में एक एक अशर्फ़ी लेकर ऊपर उड़ आये और वहां से सीधे यहां आये। बुड्ढा सोने को देख कर बहुत खुश हुआ और कहनेलगा कि यह ज़र असल में राजा की लड़की ही का है क्योंकि अगर राजा को मालूम होता कि मेरी लड़की को ख़र्च की ज़रूरत है तो वह इसका हज़ार गुना ख़ुशी से भेज देता। पस वह अशर्फीयां लेकर फ़ौरन बाहर गया और खाने का सामान और जिन चीज़ों की ज़रूरत थी ख़रीद लाया। जब तक ख़र्च उनके पास रहता वह बड़े आराम से रहते और जब चुक जाता कौए राजा के ख़ज़ाने से और ले आते।