राजा की लड़की मीनार में जहां कि काली लौंडी उस के हाथ पैर बांध कर उसे पड़ा छोड़ गई थी सिपाही का जो न मिली उसका किस्सा यों है-जिस वक्त वह बेबसी की हालत में कोठड़ी के अन्दर पड़ी हुई थी उसे उस सूराख़ में जिसमें से कि वह दयादेई की खिड़की को देखा करती थी दो बड़ी २ आंखें चमकती हुई दिखाई दीं। पहले तो वह डर गई लेकिन पीछे से वह फ़ौरन समझ गई कि दीवार पर बाहर जो बेल लिपटी हुई थी उसकी एक शाख पर बैठा हुआ, वह उल्लू जो कि मीनार की चोटी पर निगहबानी के लिये मुक़र्रिर था, सूराख़ से भीतर को देख रहा है। उसे उस वक्त अपनी तिलिस्माती अंगूठी की याद आई और जिस हाथ की उंगली में वह उस्को पहने हुए थी वह हाथ किसी तरह उल्लू की तरफ़ करके अंगूठी को उसकी नज़र के सामने कर दिया और उससे कहने लगी-“ऐ उल्लू, इस अंगूठी के लिहाज़ से इस वक्त मेरो मदद कर"-उल्लू ने जैसे ही अंगूठी को देखा और उसकी बात को सुना वह लड़की की खिदमत में अन्दर हाज़िर हुआ और बोला "क्या हुक्म है?" लड़की ने कहा- "मेरे हाथों और पैरों को खोल दे, अगर खोल सके तो"-उल्लू कपड़े के बन्धनों को जिनसे कि वह जकड़ी हुई थी खोल नहीं सकता था लेकिन उसने अपनी नुकीली चोंच और पैने पंजों से उन्हें फाड़ डाला, उसके ऐसा करने से मजबूरन लड़की को कुछ ज़ख़्म आ गई जिस से उसकी चादर के टुकड़ों पर खून के दाग़ पड़ गये जिनको कि उस सिपाही ने देखा था जो मीनार पर लड़की को पकड़ने के लिये चढ़ा था। जैसे ही उसके बन्धन अलग हुए वह मीनार से उतर जाने का कोई वसीला ढूढ़ने लगी, लेकिन कुछ नज़र न आया सिड्ढी को तो लौंडी ले ही गई थी-क्या वह वहां से नीचे ज़मीन पर कूद सकती थी? नहीं, नहीं मीनार बहुत ऊंची थी, कूदना अपनी जान को मौत के हवाले करना था-वह यकायक उल्लू की तरफ़ मुखातिब होकर पुकारने लगी “ऐ उल्लू , ऐ उल्लू , क्या तू मुझे किसी तरकीब से यहां से नीचे पहुंचा सकता है, पेश्तर इसके कि मेरे दुश्मन फिर यहां आ सके?” वह उल्लू बड़ी ज़ात का था जो क़रीब क़रीब उक़ाब या गीध के क़द की होती है, मगर वह इतना मज़बूत न था कि उस लड़की के बोझ को अधर में सम्हाल सके, वरना वह उसे अपनी पीठ पर सवार करा के अकेला ही नीचे उतार देता, इस लिये वह बोला-"ऐ प्यारी लड़की ज़रा ठहर जा, मैं अपनी बीबी को बुला लाऊं जो कि इसी खंडहर में रात के जागने की थकावट दूर करने को इस वक्त सो रही है मैं उम्मेद करता हूं कि मैं और वह दोनों मिल कर तुझ को अपने डैनों के सहारे आसानी से नीचे पहुंचा देंगे"-यों कह कर वह छज्जे पर जा बैठा और वहां से ऐसे ज़ोर से चीखा कि तमाम खंडहर गूंज उठा और थोड़ी ही देर में एक मोटी ताज़ी उल्लन परों को फटफटाती हुई छज्जे पर आन पहुंची और कहने लगी-"क्या मामला है, ऐ शौहर, जो आप ने मुझ को इस वक्त दिन में जगाया है?" उल्लू ने जवाब में अपनी चोंच से उस अंगूठी की तरफ़ इशारा किया जो राजा की बेटी अपनी उंगली में पहने हुए थी, लड़की भी उस वक्त छज्जे पर आ गई थी। वह उससे बोला-"अब वक्त खाना न चाहिये-एक हाथ से मेरी और दूसरे हाथ से मेरी बीबी की टांगें पकड़ ले, फिर फुरती से उस घने पत्तों वाली झाड़ी पर जो मीनार की जड़ के नज़दीक दिखाई देती है कूद पड़, हमारे डैनों के सबब से तू ज़ोर से गिरने न पावेगी" राजा की लड़की