*भगवान शिव कल्याणकारी है ! भगवान शिव का दर्शन करके भक्तों को आनंद की अनुभूति होती है उसी प्रकार यदि ध्यान से भगवान शिव के निवास स्थान कैलाश को देखा जाय तो जो आंतरिक आनंद की अनुभूति होती है वह शिव तत्व की हल्की झलक सी देती है ! कैलाश पर्वत अपनी स्वामी शिव की तरह ही अनंत शक्तिसंपन्न प्रतीत होता हैं , उसकी उज्जवल कांति तो देखते ही बनती है ! जिस प्रकार भगवान शिव की जटा से गंगा जी निकलती हैं उसी प्रकार कैलाश से निकलने वाली नदियां विशेष कर कैलाश से गिरने वाले झरने शिव की जटाओं से गंगा के निकलने का स्मरण कराते हैं ! मानव शरीर का ७०% भाग जल से बना है , जल ही प्राण का आधार है ! जिस प्रकार भगवान शिव संपूर्ण सृष्टि के आधार हैं उसी प्रकार कैलाश से निकलने वाली नदियां और झरनी इसी प्राण तत्व को प्रसारित करते हैं ! विश्व की एक चौथाई जनसंख्या का भरण पोषण कैलाश से निकलने वाली नदियों के जल से ही होता है ! अतः भगवान शिव की तरह कैलाश भी प्राण तत्व का आधार है ! भगवान शिव भस्म धारण करते हैं उसी प्रकार कैलाश पर छाई हुई हिम भस्म के समान ही प्रतीत होती है ! भस्म संसार की अनित्यता का बोध कराती है ! भगवान शिव भस्म धारण करने के साथ ही मस्तक पर त्रिपुंड भी लगाते हैं त्रिपुंड की तीनों रेखाएं प्रणव के तीन अक्षर अकार , उकार एवं मकार की प्रतीक है ! यह तीनों रेखाएं तीन लोकों की प्रतीक है ! कैलाश के दक्षिणी पार्श्व पर शिव का मुख और उस पर त्रिपुंड स्पष्ट प्रतीत होता है ! कैलाश पर सीढ़ीनुमा संरचना रुद्राक्ष के समान है ! इस प्रकार यदि देखा जाए तो भगवान शिव एवं कैलाश में बहुत सी समानता देखने को मिलती है !**आज कैलाश पर्वत का दर्शन कर पाना सबके भाग्य में भी नहीं है परंतु जिन्होंने दर्शन किया है या जिन्होंने कैलाश पर्वत को चित्रों के माध्यम से देखा है उन्होंने यह तो ध्यान दिया होगा तो यह जरूर देखा होगा की कैलाश पर सीढ़ीनुमा संरक्षण रुद्राक्ष के समान है ! भगवान शिव रुद्राक्ष धारण करते हैं ! रुद्राक्ष क्या है ? रुद्राक्ष एक बीज है जिसमें वृक्ष समाया हुआ है ! संसार का पालन पोषण करने वाले देवता विष्णु फल फूल से युक्त है ! जो जीवन के पालन - पोषण और आनंद प्रमोद के लिए आवश्यक है ! परब्रह्म शिव फल फूल , जो वृक्ष संसार के कारण उत्पन्न हुए हैं की तुलना में बीज पर ध्यान देते हैं , जो संसार रूपी वृक्ष के उद्भव का आदि कारण है ! रुद्राक्ष स्वरूप कैलाश हमारे ज्ञान को सृष्टि के मूलतत्व की ओर आकर्षित करता है ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यदि इस पर ध्यान देता हूं तो यही समझ में आता है कि साकार रूप में शिव की आंखें अर्धनिमीलित है ! वे आंतरिक दृष्टि संपन्न हैंं ! भगवान शिव प्रकृति द्वारा उद्भूत सांसारिक चीजों से असंपृक्त है ! इसी प्रकार निराकार शिवलिंग के रूप में कैलाश मौसम के पल-पल बदलते झंझावातों के विरुद्ध अचल समाधि में ध्यानमग्न खड़ा है ! उसका श्वेत स्वरूप चारों ओर के काले - भूरे पहाड़ो से पूर्णता पृथक है ! इस बाहरी पृथकता से उसे कोई अंतर नहीं पड़ता , वह आत्मानंद में मगन है ! जिस प्रकार भगवान शिव अचल समाधि में रहते हैं उसी प्रकार कैलाश भी अचल है ! भगवान शिव को "स्थविरो ध्रुव:" कहा गया है , तो ध्रुवतारा ठीक कैलाश के ऊपर चमकता है ! कैलाश और ध्रुव तारा दोनों ही अचलता और स्थिरता के प्रतीक है ! इतनी समानता है भगवान शिव और कैलाश में कि इसको पृथक कर पाना संभव नहीं है ! यह चिंतन एवं मनन का विषय है ! भगवान शिव का कर्पूर के समान गौर है ! वह करुणा की प्रतिमूर्ति और सारे जगत के सार हैं उसी प्रकार कैलाश का हिमधवल स्वरूप कर्पूरवर्ण शिव का प्रतीक है ! कैलाश का हर क्षण बदलता स्वरूप सांसारिक वैभव की अनित्यता बताता है !**भगवान शिव और उनके परिकरों के विषय में जानने के लिए ज्ञान की आवश्यकता है और शुद्ध चित्त में ही ज्ञान का प्रकाश उपजता है क्योंकि शिव ज्ञान के आधार हैं ! कैलाश मानसरोवर जैसी तीर्थयात्राएं चित्तशुद्धि का प्रयास है ! यदि यह प्रयास सफल हो गया तो शिवतत्व की झलक मिलना प्रारंभ हो जाती है !*
प्राण तत्व को प्रसारित करते हैं ! विश्व की एक चौथाई जनसंख्या का भरण पोषण कैलाश से निकलने वाली नदियों के जल से ही होता है ! अतः भगवान शिव की तरह कैलाश भी प्राण तत्व का आधार है ! भगवान शिव भस्म धारण करते हैं उसी प्रकार कैलाश पर छाई हुई हिम भस्म के समान ही प्रतीत होती है ! भस्म संसार की अनित्यता का बोध कराती है ! भगवान शिव भस्म धारण करने के साथ ही मस्तक पर त्रिपुंड भी लगाते हैं त्रिपुंड की तीनों रेखाएं प्रणव के तीन अक्षर अकार , उकार एवं मकार की प्रतीक है ! यह तीनों रेखाएं तीन लोकों की प्रतीक है ! कैलाश के दक्षिणी पार्श्व पर शिव का मुख और उस पर त्रिपुंड स्पष्ट प्रतीत होता है ! कैलाश पर सीढ़ीनुमा संरचना रुद्राक्ष के समान है ! इस प्रकार यदि देखा जाए तो भगवान शिव एवं कैलाश में बहुत सी समानता देखने को मिलती है !*
*आज कैलाश पर्वत का दर्शन कर पाना सबके भाग्य में भी नहीं है परंतु जिन्होंने दर्शन किया है या जिन्होंने कैलाश पर्वत को चित्रों के माध्यम से देखा है उन्होंने यह तो ध्यान दिया होगा तो यह जरूर देखा होगा की कैलाश पर सीढ़ीनुमा संरक्षण रुद्राक्ष के समान है ! भगवान शिव रुद्राक्ष धारण करते हैं ! रुद्राक्ष क्या है ? रुद्राक्ष एक बीज है जिसमें वृक्ष समाया हुआ है ! संसार का पालन पोषण करने वाले देवता विष्णु फल फूल से युक्त है ! जो जीवन के पालन - पोषण और आनंद प्रमोद के लिए आवश्यक है ! परब्रह्म शिव फल फूल , जो वृक्ष संसार के कारण उत्पन्न हुए हैं की तुलना में बीज पर ध्यान देते हैं , जो संसार रूपी वृक्ष के उद्भव का आदि कारण है ! रुद्राक्ष स्वरूप कैलाश हमारे ज्ञान को सृष्टि के मूलतत्व की ओर आकर्षित करता है ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यदि इस पर ध्यान देता हूं तो यही समझ में आता है कि साकार रूप में शिव की आंखें अर्धनिमीलित है ! वे आंतरिक दृष्टि संपन्न हैंं ! भगवान शिव प्रकृति द्वारा उद्भूत सांसारिक चीजों से असंपृक्त है ! इसी प्रकार निराकार शिवलिंग के रूप में कैलाश मौसम के पल-पल बदलते झंझावातों के विरुद्ध अचल समाधि में ध्यानमग्न खड़ा है ! उसका श्वेत स्वरूप चारों ओर के काले - भूरे पहाड़ो से पूर्णता पृथक है ! इस बाहरी पृथकता से उसे कोई अंतर नहीं पड़ता , वह आत्मानंद में मगन है ! जिस प्रकार भगवान शिव अचल समाधि में रहते हैं उसी प्रकार कैलाश भी अचल है ! भगवान शिव को "स्थविरो ध्रुव:" कहा गया है , तो ध्रुवतारा ठीक कैलाश के ऊपर चमकता है ! कैलाश और ध्रुव तारा दोनों ही अचलता और स्थिरता के प्रतीक है ! इतनी समानता है भगवान शिव और कैलाश में कि इसको पृथक कर पाना संभव नहीं है ! यह चिंतन एवं मनन का विषय है ! भगवान शिव का कर्पूर के समान गौर है ! वह करुणा की प्रतिमूर्ति और सारे जगत के सार हैं उसी प्रकार कैलाश का हिमधवल स्वरूप कर्पूरवर्ण शिव का प्रतीक है ! कैलाश का हर क्षण बदलता स्वरूप सांसारिक वैभव की अनित्यता बताता है !*
*भगवान शिव और उनके परिकरों के विषय में जानने के लिए ज्ञान की आवश्यकता है और शुद्ध चित्त में ही ज्ञान का प्रकाश उपजता है क्योंकि शिव ज्ञान के आधार हैं ! कैलाश मानसरोवर जैसी तीर्थयात्राएं चित्तशुद्धि का प्रयास है ! यदि यह प्रयास सफल हो गया तो शिवतत्व की झलक मिलना प्रारंभ हो जाती है !*