*भगवान भोलेनाथ देवों के देव महादेव हैं ! इनकी भक्ति एवं पूजा यदि निश्छल मन से किया जाय तो ये अवढरदानी सब कुछ प्रदान कर देते हैं ! भगवान शिव बहुत ही विचित्र है पूजा से प्रसन्न होकर के भक्तों को वरदान देने में परम प्रसिद्ध है , चाहे वह मनुष्य हों , देवता हो या फिर दैत्य हो , वरदान देते समय भगवान शिव यह विचार नहीं करते हैं क्योंकि उनको अपनी भक्ति प्रिय है ! जो भी भक्ति भाव से उनका पूजन करता है उसे वे सब कुछ प्रदान करने में तनिक भी देर नहीं करते ! जिस प्रकार भगवान शिव विचित्र हैं उसी प्रकार उनका परिवार तो विचित्र है ही साथ ही उनकी पूजा करने का विधान भी बड़ा विचित्र है ! जहां अन्य देवताओं की पूजा करने में अनेक सामग्रियां लगती है वहीं भगवान शिव की पूजा बहुत ही सरल है क्योंकि भगवान शिव को यदि भक्ति के साथ मात्र एक बेलपत्र चढ़ा दिया जाय तो भी प्रसन्न हो जाते हैं ! भांग , धतूरा , मदार , शमी पत्र , कमल पुष्प एवं "तुलसी की पत्ती" उनको परमप्रिय है ! जो भी भक्त इन औषधियों से उनका पूजन करता है उससे भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं ! अनेक प्रकार की औषधियों से इनकी पूजा की जाती है ! भांग - धतूरा एवं बेलपत्र भगवान को क्यों पसंद है इसकी चर्चा हम पूर्व के लेखों में कर चुके हैं ! भगवान शिव को जितना प्रिय भांग - धतूरा , मदार एवं बेलपत्र है उससे कहीं अधिक उनको "तुलसी पत्र" भी प्रिय है ! जो भी मनुष्य भगवान शिव को तुलसी पत्र अर्पित करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह शिवलोक को प्राप्त कर लेता है ! तुलसी पत्र की महिमा का वर्णन कर पाना संभव नहीं है क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है ! "स्कंद पुराण" में लिखा है कि मनुष्य को अपने प्रत्येक प्रिय वस्तु का श्रावण मास में त्याग कर देना चाहिए ! पुष्प - फल धान्य तुलसी की मंजरी तथा तुलसी पत्रों और बिल पत्रों से शिवजी की लक्ष पूजा करनी चाहिए ! एक करोड़ शिवलिंग बनाना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए ! लक्ष्मी चाहने वाले तथा शांति की इच्छा रखने वाले मनुष्य को एक लाख बेल पत्रों से अथवा एक लाख दूर्वादलों से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए ! आयु की कामना करने वाले को चंपा के एक लाख पुष्पों से तथा विद्या चाहने वाले को मल्लिका अथवा चमेली के पुष्पों से भगवान श्री हरि की पूजा करनी चाहिए ! भगवान शिव तथा श्री हरि नारायण की प्रसन्नता मात्र तुलसी पत्रों से ही सिद्ध हो जाती है ! परंतु आज अनेकों प्रकार के विद्वान समाज में भ्रम उत्पन्न करने का प्रयास कर रहे हैं , जिससे कि लोग चाह कर भी भगवान की प्रिय वस्तु उनको नहीं अर्पित कर पाते !*
*आज अनेकों विद्वान अपने ग्रन्थों का अवलोकन ना करके यह घोंषणा कर देते हैं भगवान शिव को तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए क्योंकि भगवान शिव ने तुलसी के पति शंखचूड़ का वध किया था, इसलिए भगवान शिव को तुलसी नहीं प्रिय है ! सोशल मीडिया पर अनेकों विद्वानों के अनेक लेख मिल जाते हैं जो यह बताते हुए यह घोषणा कर रहे हैं कि भगवान शिव को तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए ! जबकि मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसे विद्वानों को मात्र इतना ही कहना चाहूंगा कि अपनी भक्तों / यजमानों को कुछ भी बताने के पहले कम से कम एक बार अपने सद्ग्रंथों का अवलोकन तो कर ही लेना चाहिए ! भगवान शिव से संबंधित शिव महापुराण / रुद्रसंहिता / सृष्टिखंड में स्पष्ट लिखा है - भुक्तिमुक्तिफलं तस्य तुलस्या पूजयेद्यदि ! अर्कपुष्पै: प्रतापश्च कुब्जकह्लारकैस्तथा !! कुशपुष्पैश्च धत्तूरेमन्दारेद्रोणसम्भवे ! तथा च तुलसीपत्रैविल्वपत्रेविशेषत: !! अर्थात्:- यदि तुलसीदल से शिवजी की पूजा करे तो उपासक को भोग और मोक्ष का फल प्राप्त होता है ! लाल और सफेद मदार , अपामार्ग और कहार के पुष्पों द्वारा पूजा करने से प्रताप की प्राप्ति होती है ! कुश पुष्प , धतूर , मदार , द्रोणपुष्प , तुलसीदल तथा पराभक्ति के साथ भक्तवत्सल भगवान शंकर की विशेष पूजा करे ! इसके अतिरिक्त "श्रीशिवाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र" , "ब्रह्म पुराण" , "भविष्यपुराण" , "स्कन्दपुराण" एवं पद्मपुराणादि में साफ साफ लिखा है कि भगवान शिव को तुलसी परमप्रिय है ! पता नहीं कहाँ से ऐसे विद्वान कहाँ ये आये नये नये ग्रन्थों को पढकर नयी नयी घोषणायें करते रहते हैं जिससे कि आम जनमानस भ्रमित हो जाता है ! ऐसे परमविद्वानों की बातों को सुनकर अपने ग्रन्थों का अवलोकन करके उसकी पुष्टि अवश्य कर लेनी चाहिए !*
*आज सबसे अधिक भ्रम की स्थिति सनातन धर्म में ही देखने को मिलती है , और इसका कारण सनातन के वे विद्वान हैं जो अपने ग्रन्थों का अवलोकन न करके अपने मन से नियम बनाकर अपने भक्तों को परोसते रहते हैं !*