"भारतीय उत्सव और मित्रता"
हर साल होली- दशहरा-
दीवाली- तीज मनाते भी देखा है।
भारतीय उत्सवों में नारी की
पुज्य प्रतिमाओं को देखा है।
देखा है हमने करुआ चौथ का चाँद
संग घरवाली के जल ले कर,
तीज-छठ का त्योहार के कड़े नियम-
पालन करते भी देखा है।
कहीं नारी लक्ष्मी सरस्वती माता
बना कर पूजी जाती है।
कहीं वही कंलंकित हो महलों से
निकाल वन में जाती है।
भारत और गंगा को माता कह
तुम नित शीष नवांते हो।
कभी नारी को पतित बना
धनवान बन अधोगति पाते हो।
वस्तु और बांदी सम नहीं,
नारी की पूजा कर तुम देखो।
अवमानना नहीं, सत्कार कर
देवसम बन कर रे!.बैठो।
दूध का कर्ज चुकाने वालों के नाम,
इतिहास के पन्नों में देखा है।
आदर्श विवाह किया शिव ने,
भक्तों को महाशिवरात्रि मनाते देखा है।
पितृगृह में पति की अवमानना,
सति को आत्मदाह करते देखा है।
पितृभक्त परशुराम को मातृहंता हो
पुनर्जीवित करते भी देखा है।
भुमिगत् होती माता को,
मर्यादा पुरुषोत्तम तक ने
देख अश्रु बहाया है।
भयाक्रांत सुभद्रा पाषाण बनी,
कृष्ण मौन, सहोदरा-मेला भी देखा है।
भारत माँ की 'बेटियों' को देश हेतु,
विधवा बनते युगों से हमने देखा है।
अश्रुप्लावित माँ को वृध्दाश्रम में,
कलपते-बिलखते भी रे! देखा है।
प्रश्न अनेक पर उत्तर एक
धरती को धूँ-धूँ कर जलते भी देखा है।
नारी को वस्तु पर मित्र बनाते,
आये दिन कानून बनते भी देखा है।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल