कहानी चतुर्मुखी महादेव की
विषय: सावन और शिव
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【पद्यात्मक सृजन】
श्रावणमास महात्मय वैशाली चलते हैं
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बिहार के वैशाली में
यह चतुर्मुखी शिवलिंग है।
श्रावण में शिवभक्तों की
अपार भीड़ लगती है।।
वैशाली बोल बम,
जय जय शंकर से गुँजता है।
चतुर्मुखी महादेव ने
मुगलिया सल्तनत से अपमान सहा है।।
बादशाही हुक्म से लोग शिवलिंग पर
पत्थर से मारे सुना हैं।
पांच ढेला चढ़ाने मात्र से लोगों की
मन्नत पूरी होती कहा है।।
खनन में पाया शिवलिंग
ढेलफोरवा बाबा नाम से प्रसिद्ध है।
इतिहावेत्ता डॉ. विंसेंट १९०२
आर्थर स्मीथ ने तथ्य लिखा है।।
वैशाली 'कम्मन छपरा' गाँव में
भूगर्भ में धंसा हुआ मिला है।
४५ वर्ष पूर्व बिहार लोकायुक्त१
श्रीधर बासुदेव खनन करवाया।।
श्याम वर्ण चतुर्मुखी शिवलिंग
निकलवा प्रतिष्ठित भी करवाया।
विधायक नागेन्द्र प्र. सिंह ने
महाशिवरात्री सावन मेले लगवाया।।
सगुण ब्रह्मियों का कावड़ियों का
तीर्थ बन चमक उभर आया।
स्वर्ण मुद्रा खनन में पा विक्रमादित्य
चतुर्मुख महादेव कहलाया।।
१२५ फीट ऊँचे मंदिर में
चतुर्मुखी यह महादेव लिंग स्थापित है।
पूर्व सूर्य, पश्चिम विष्णु,
उत्तर ब्रह्मा; दक्षिण त्रिनेत्रधारी शिव है।।
शिवलिंग के नीचे सात चक्र है
जिसे लोग 'आर्घा' कहते है।
दो चक्र धरातल से ऊपर और
पांच चक्र भूगर्भ में दबे है।।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ये
ब्रह्माण्डीय पद्धति पर निर्मित है।
दोनों चक्र के मध्य
ब्राह्मी लिपि के लेख अपठनीय हैं।।
कवि निर्मल कहता कि
बुद्धकालीन यह अद्भुत तंत्रपीठ है।
इस सावन में तो,
घर में हीं शिवपूजन निर्देशित है।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, बिहार