*मानव जीवन में समय समय पर अनेकों समस्यायें उत्पन्न होती रहती हैं ! कुछ समस्यायें तो ऐसी होती हैं जो स्वयं मनुष्य के द्वारा ही उत्पन्न कर ली जाती हैं | यदि किसीने कह दिया कि हमने तो ऐसा सुना है तो मनुष्य को उसे तब तक सत्य सत्य नहीं मानना चाहिए जब तक स्वयं न देख ले | बिना विषय की सच्चाई जाने ही यदि उस पर विश्वास कर लिया जाता है तो मनुष्य को व्यर्थ में भय , आशंका और चिन्ता एक नवीन समस्या के रूप में घेर लेती हैं | मानव जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान हमारे शास्त्रों में देखने को मिलता है | हमारे महापुरुषों ने मानवोपयोगी सूक्तियां इन शास्त्रों वर्णित कर दी हैं आवश्यकता है उनका अध्ययन करने की | हमारे शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है :- "कुश्रुतं कुपरिज्ञातं कुदृष्टं कुपरिक्षितं ! तन्नरेण न कर्तव्यो नापितो नात्र यत्कृतं !!" अर्थात् :- बिना ढंग से सुने , बिना ढंग से जाने , बिना स्वयं भली भाँति देखे और बिना परीक्षा लिए किसी भी निर्णय पर पहुँचना मनुष्य का कर्तव्य नहीं है | विचार कीजिए कि हमारे महापुरुषों ने कितनी सूक्ष्मता से इन दो लाईनों में सम्पूर्ण जीवन का सार लिख दिया है परंतु हम अपने शास्त्रों से अनभिज्ञ होने के कारण अनेक अनचाही समस्याओं से स्वयं को घिरा पा रहे हैं | किसी के कुछ भी कह देने पर तिरंत विश्वास न करके पहले उस विषय के तह तक जाकर ही उसके विषय में कुछ निर्णय लेने वाला ही विद्वान एवं बुद्धिमान कहा जा सकता है | लंकाधिराज रावण ने अपनी बहन सूर्पणखा से राम - लक्ष्मण के कृत्य सुनकर बिना सच्चाई जाने ही सीता हरण का निर्णय ले लिया तो उसका परिणाम भी जगविदित ही है | इतिहास - पुराणों में ऐसे कई अन्य कथानक भी देखने एवं पढ़ने को मिलते हैं ! इसलिए प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य होना चाहिए कि किसी के द्वारा किसी व्यक्ति की बुराई सुनने के बाद तब तक उस पर विश्वास न करें जब तक स्वयं उसे बुराई करते हुए देख न ले | किसी वस्तु के विषय में तब तक न माने जब तक परीक्षण न कर ले | ऐसा करके मनुष्य अनेक प्रकार की समस्याओं से स्वयं को बचा सकता है |*
*आज के युग में समस्याओं का अंबार दिखाई पड़ रहा है | कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसके पास समस्यायें न हों , और यह भी सत्य है की अनेक समस्याएं मनुष्य ने स्वयं प्रकट की हैं जिसका निदान वह जीवन भर नहीं कर पाता | आज मनुष्य किसी भी विषय की गहराई में नहीं जाना चाहता ! सुनी सुनाई बातों पर विश्वास करके वह जीवन भर उसके तत्व को खोजने का प्रयास करता है | किसी भी विषय पर कोई वार्ता सुनकर वह उसके विषय में जिज्ञासु हो जाता है , जिज्ञासु हो जाना तो उचित है परंतु उस विषय को बिना जाने उसके विषय में चिंतन करते रहना उचित नहीं कहा जा सकता | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इतना ही कहना चाहता हूं कि किसी भी विषय को हमारे शास्त्रों में छोड़ा नहीं गया है जिसका वर्णन न हो | यदि कोई भी विषय ऐसा मिल जाए जिसके विषय में हमें ज्ञान नहीं है तो उसके विषय में खोजने का प्रयास हमें अपने शास्त्रों में करना चाहिए क्योंकि संसार का कोई भी ऐसा ज्ञान नहीं है जो हमारे शास्त्रों में ना हो , परंतु आज हमने अपने शास्त्रों का अध्ययन करना लगभग बंद कर दिया है | सुनी सुनाई बातें एवं सोशल मीडिया के माध्यम से पढ़ी हुई बातों को ही हम सत्य मानने लगे हैं | हमने किसी से सुना या गूगल पर पढ़ा कि मोर ब्रह्मचारी होता है तो हमने सही मान लिया | ब्रह्मचर्य का अर्थ क्या होता है इससे मतलब नहीं रखते , न जानना चाहते हैं | यही कारण है कि आज समस्याएं मुंह फैलाए खड़ी है इन समस्याओं से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है कि हम संसार में रहकर संसार को जानने का प्रयास करें और यह प्रयास तभी सफल होगा जब हम अपने ग्रंथों का अध्ययन करेंगे अन्यथा जीवन इसी प्रकार समस्याओं से ग्रसित होकर व्यतीत हो जाएगा | आज जन जागरण की आवश्यकता है क्योंकि आज भ्रांतियां चारों ओर फैली हुई है इन भ्रांतियों को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए जिससे कि हमारा जीवन सुखमय व्यतीत हो सके |*
*जीवन में सदैव चिंतन करके सच्चाई जानने के लिए उसकी गहराई में जाना चाहिए ऐसा करने वाले ही अपने जीवन में लक्ष्य का भेदन करते हुए सफलता का कीर्तिमान स्थापित कर पाते हैं |*