*इस संसार में ईश्वर ने नर नारी को उत्पन्न करके सृष्टि को गतिशील किया | सनातन धर्म के अनुसार मानव जीवन को चार आश्रमों में विभक्त किया गया है जिसमें से मुख्य है "गृहस्थ आश्रम" | गृहस्थ आश्रम से ही सारे संसार का पालन पोषण होता है | शायद इसीलिए हमारे शास्त्रों में कहा गया है :- "धन्यो गृहस्थाश्रम:" | गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिए विवाह की आवश्यकता होती है | विवाह समाज की नींव है | समाज के प्रत्येक प्राणी के लिए विवाह एक अनिवार्य कृत्य हैं क्योंकि इसी प्रयोजन से परमात्मा ने मैथुना सृष्टि संचालित की थी | पुरातन काल से आज तक विवाह के संबंध में अनेक परिवर्तन देखने को मिले हैं | पूर्वकाल में विवाह को सात जन्मों का बंधन माना जाता था तथा पति और पत्नी दोनों आपस में सामंजस्य बिठाकर जीवन यापन करते थे | संबंध विच्छेद नहीं होते थे एवं अविवाहित कोई कोई ही देखने को मिलता था | इसका मुख्य कारण था हमारे संस्कार एवं यथा समय पर विवाह संपन्न करना | एक विशेष बात यह थी कि विवाह करते समय वर एवं वधू दोनों पक्षों के अभिभावक घर (कुल) वर एवं वधू अपने अनुकूल अपनी बराबरी का ढूंढते थे जिससे कि एक दूसरे पर किसी भी प्रकार का दोषारोपण ना हो पाए | जब इस प्रकार के विवाह होते थे तो ऐसे संबंधों में संबंध विच्छेद की स्थिति नहीं उत्पन्न होती थी | माता पिता की आज्ञा समझा जाय या फिर हमारे संस्कार कि जैसा जीवन साथी मिल जाता था उसी के साथ जीवन यापन करना अपना धर्म माना जाता था | विवाह एक पवित्र संस्कार है | अग्नि के समक्ष भगवान विष्णु तथा अपने संबंधियों को साक्षी मानकर के विवाह संपन्न होता था | और विवाह संबंध लोग आजीवन निभाते थे | इस संसार में प्रत्येक घटना का समय निर्धारित होता है उसी प्रकार विवाह भी समय से होना ही अच्छा लगता है | विचार कीजिए यदि समय पर वृक्ष में फल ना आयें तो उस वृक्ष का होना या ना होना व्यर्थ है ! उसी प्रकार विवाह भी यदि संपन्न समय से ना हो तो उस विवाह का कोई अर्थ नहीं रह जाता है | इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हमारे पूर्वज अपनी संतान का विवाह समय से कर देते थे जिससे कि किसी प्रकार की अव्यवस्था किसी के भी जीवन में नहीं आती थी , परंतु अब समय परिवर्तित हो रहा है लोग विचार ज्यादा करते हैं और उन विचारों पर क्रियान्वयन करते - करते उन्हें बहुत देर हो जाती है |*
*आज मनुष्य स्वयं को आधुनिक समझने लगा है | जीवन का महत्वपूर्ण विवाह संस्कार भी अधिकतर एक समझौता ही दिख रहा है | विवाह होते देर नहीं लगती के संबंध विच्छेद की घटनाएं देखने को मिल रही है | जीवन में कुछ बन जाने के प्रयास में बच्चों की आयु अधिक हो रही है जिसके कारण उनके विवाह में परेशानियों देखने को मिल रही है | अनेक लोग आज समाज में अविवाहित देखे जा सकते हैं इन कारणों पर विचार करने के बाद मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यही समझ पाया हूँ कि आज लोग अपने अनुकूल विवाह न ढूंढ़ करके अपने से श्रेष्ठ विवाह ढूंढने का प्रयास करते हैं और इसी प्रयास में धीरे-धीरे आयु बढ़ती चली जाती है | वर हो चाहे वधू आज सब के अायु में वृद्धि देखी जा सकती है | जब संतान अपने माता पिता का कहना न मान कर के निज इच्छा से विवाह संपन्न करते हैं तो ऐसे विवाहों में प्राय: संबंध विच्छेद की स्थिति देखने को मिल ही जाती है , इसके अतिरिक्त माता-पिता भी अपनी संतान का विवाह अपने से अधिक श्रेष्ठ व्यक्ति के यहां ही करना चाहते हैं | विचार कीजिए जो व्यक्ति आपसे श्रेष्ठ होगा , आप से अधिक संपन्न होगा , संपत्तिवान होगा , सुंदर होगा वह आपका सम्मान कैसे कर पाएगा ? इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपनी संतान का विवाह संपन्न करने के पहले अपनी बराबरी का रिश्ता ही ढूंढना चाहिए जिससे कि एक दूसरे पर कोई दोषारोपण वर एवं वधू न कर सके और बच्चों का जीवन सुखमय बना रहे , परंतु आज की स्थिति बड़ी भयावह दिख रही है | अधिकतर युवक एवं युवती अधिक आयु हो जाने के बाद भी अविवाहित ही दिख रहे हैं इस पर विचार करने की आवश्यकता है | जहां तक जीवन में कुछ बन जाने का प्रश्न है तो वह विवाह के बाद भी बना जा सकता है ऐसे कई उदाहरण भी हमको समाज में देखने को मिल सकते हैं जहां पर वर एवं वधू ने विवाह संपन्न होने के बाद भी सफलताएं अर्जित की है | मनुष्य को ध्यान देना चाहिए कि मानस में बाबा जी ने लिखा है :- "का वर्षा जब कृषि सुखाने ! समय चूकि पुनि का पछताने !! अर्थात हर कार्य समय पर ही संपन्न होना चाहिए असमय संपन्न हुआ कार्य कभी भी सुखद परिणाम नहीं दे सकता |*
*विवाह समय से हो जाता है तो मनुष्य मानसिक तनाव एवं अन्य कई रोगों से स्वयं को बचा सकता है क्योंकि विवाह हो जाने के बाद मनुष्य का अकेलापन तो दूर ही होता है साथ ही ही उसका मानसिक द्वंद भी समाप्त हो जाता है |*