🙇ख़ुदा से मेरी ये फ़रियाद है,
इनसाफ की हमको दरकार है ।
🙇ज़ुल्म सदियों से हम पे होता रहा,
चैन से ये जहाँ फिर भी सोता रहा
🙇इनसाफ कहीं हमको मिलता नहीं,
इंतेज़ार आख़िरत का होता नहीं
🙇करती हूँ तुझसे मैं ये इलतेजा,
हक़ बराबरी का कर दे तू हमको अता।
🙇रोज़ होता है यहाँ पे चीरहरण,
बचाने द्रोपदी को आए न कोई किशन।
🙇इतनी सी तुझसे फ़रियाद है,
सब औरतों की तरफ से दरख़ास्त है।
🙇आबरू जो औरतों की लूटा करें,
घर में भी उनको जो पीटा करें ।
🙇ज़ुलमो की हम पर जो करें इंतेहा,
बिजली दे यारब तू उन पे गिरा।
🙇तड़पता रहे वो भी यूँ ही सदा,
मौत भी माँगे तो न आए कभी।
🙇सुलगता रहे वो सदी दर सदी,
हर औरत का पूरा यहाँ ख्वाब हो।
🙇ऐसा बेटा न दे माँ शर्मसार हो,
ऐसा बेटा न दे माँ शर्मसार हो।
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🌹सय्यदा ख़ातून (स्व रचित)