*इस धराधाम पर जन्म लेने के बाद मनुष्य येन - केन प्रकारेण ईश्वर प्राप्ति का उपाय किया करता है | ईश्वर का प्रेम पिराप्त करने के लिए मनुष्य पूजा , अनुष्ठान , मन्दिरों में देवदर्शन तथा अनेक तीर्थों का भ्रमण किया करता है जबकि भगवान को कहीं भी ढूंढ़ने की आवश्यकता नहीं है मानव हृदय में तो ईश्वर का वास है ही साथ ही इस धराधाम पर भगवान का साक्षात स्वरूप है "श्रीमद्भागवत" | इसके पठन एवं श्रवण से भोग एवं मोक्ष दोनों ही सुलभ हो जाते हैं | भगवान को प्राप्त करने के लिए मानसिक शुद्धता की आवश्यकता होती है और मन को शुद्ध करवे के लिए इस कलियुग में "श्रीमद्भागवत" से सरल कोई दूसरा साधन नहीं है | जिस प्रकार सिंह की गर्जना सुनकर भेंड़ियों का समूह भाग जाता है उसी प्रकार भागवत के पाठ मात्र से कलियुग के समस्त दोष नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य का हृदय (मन) निर्मल हो जाता है | भागवत को प्रेम एवं श्रद्धा से श्रवण करने वालों के हृदय में स्वयं श्रीहरि विराजमान हो जाते हैं | भागवत जी की समानता गंगा , गया , काशी , पुष्कर या प्रयाग कोई भी नहीं कर सकता है | यद्यपि भागवत का अनुष्ठान करने - कराने के लिए भाद्रपद , आश्विन , कार्तिक , मार्गशीर्ष , आषाढ़ एवं श्रावण मास शुभ माने गयें हैं परंतु श्रीमद्भागवत में यह भी लिखा है कि इसके श्रवण , पठन के लिए दिनों का कोई नियम नहीं है | "सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवती कथा" अर्थात इसे कभी पढ़ा सुना या अनुष्ठान कराया जा सकता है | भागवत कलियुग में मोक्ष प्रदान कराने वाली है आवश्यकता है इसके महत्त्व को जानने एवं समझने की |*
*आज के युग में भागवत का अनुष्ठान तो लगभग सभी कराते हैं और आज घर घर में भागवत का ग्रन्थ भी उपलब्ध है लोग पढ़ते भी हैं परन्तु उसके महत्त्व को नहीं समझते हैं | यजमान समाज में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने , विद्वान धनोपार्जन करने एवं साधारण मनुष्य भागवत की कथा को इतिहास समझकर ही पढ़ रहे हैं | कोई भी भागवत में भगवान का दर्शन नहीं कर पा रहा है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि कथा एवं कथा का फल प्राप्त करने के लिए मनुष्य को भक्त बनना पड़ता है | भगवान के प्रति श्रद्धा - विश्वास एवं पूर्ण निष्ठा रखते हुए इनके महत्त्व को समझे बिना मनुष्य का कल्याण नहीं हो सकता | आज प्रायः लोग भागवत का फल न मिलने का कारण विद्वानों को बताते हैं परंतु यह भी सत्य है कि स्वयं परीक्षित नहीं बन पा रहे हैं | जब तक पूर्ण समर्पण भाव मन में नहीं प्रकट होगा तब तक न तो कथा का फल मिलेगा और न ही परमात्मा | द्रौपदी का चीरहरण होने वाला था परन्तु भगवान तब तक नहीं आये जब तक द्रोपदी पूर्ण आस्था के साथ समर्पित नहीं हुई | कहने का तात्पर्य यह है कि श्रीमद्भागवत कलियुग में भोग एवं मोक्ष दोनों प्राप्त करने का साधन तो परन्तु इसके महत्त्व को न समझ पाने के कारण मनुष्य मोहजनित अन्धकार एवं आधुनिकता में भटक रहा है | भागवत का महत्त्व समझते हुए इसका पारायण करने से अन्तर्ज्ञान बढ़ता है , अन्तर्ज्ञान बढ़ने से विवेक शक्तिशाली होता है और जब मनिष्य विवेकवान हो जाता है तो उसका दु:ख नष्ट हो जाता है |*
*जब तक मन से मनुष्य भागवत जी के महत्त्व को नहीं समझेगा तब तक यह पावन पुराण मात्र इतिहास एवं मनोरंजन का ही फल प्रदान कर पायेगा |*