*परमात्मा की बनाई यह सृष्टि निरन्तर क्षरणशील है | एक दिन सबका ही अन्त निश्चित है | सृष्टि का विकास हुआ तो एक दिन महाप्रलय के रूप में इसका विनाश भी हो जाना है , सूर्य प्रात:काल उदय होता है तो एक निश्चित समय पर अस्त भी हो जाता है | उसी प्रकार इस सृष्टि में जितने भी जड़ - चेतन हैं सबका ही एक दिन विनाश हो जाना है | मनुष्य इस धराधाम पर जन्म लेता है तो उसकी मृत्यु भी निश्चित है और यह तथ्य प्रत्येक व्यक्ति जानता भी है कि एक दिन ऐसा आयेगा जब अपना परिवार , समाज और इस धराधाम का त्याग करके चले जाना है | यद्यपि मृत्यु ही इस सृष्टि का सत्य है और यह निश्चित है परंतु फिर भी यह अनिश्चित है क्योंकि जहाँ महाप्रलय का समय है कि चतुर्युगी के व्यतीत हो जाने के बाद ही होगी , सूर्यास्त का भी समय निश्चित है कि दिन बीज जाने के बाद ही होगा परंतु मनुष्य की मृत्यु कब होगी यह कदापि नहीं निश्चित है | यह सभी लोग जानते भी हैं कि इस शरीर का कोई ठिकाना नहीं है कि कब साथ छोड़ दे | इतना जानने के बाद भी मनुष्य मरना नहीं चाहता और मृत्यु के नाम से ही काँप जाता है | मनुष्य मृत्यु से भयभीत क्यों रहता है ? इसके कारण पर विचार किया जाय तो यही परिणाम निकलता है कि भय किसी वस्तु से अलग हो जाने के विचार से ही प्रकट होता है | मनुष्य को कुछ भी छूट जाने या खो जाने का भय बना रहता है जैसे धन खो जाने का भय , परिवार छूट जाने का भय | यह भय मनुष्य में अज्ञान एवं अविद्या के कारण ही उत्पन्न होता है , अविद्या का प्रबल रूप है मोह | शरीर को अपना समझने का मोह ही मृत्यु से भय का मुख्य कारण है | जहाँ त्याग है वहाँ कभी भय नहीं हो सकता | वैसे तो मनुष्य को सबसे अधिक मृत्यु का ही भय होता है परमतु इसके अतिरिक्त अनेक प्रकार के भय मनुष्य को जीवन भर घेरे रहते हैं | परन्तु जहाँ त्याग की भावना होती है वहाँ कभी भी भय नहीं होता है जिस प्रकार मनुष्य कपड़ों के पुराने हो जाने पर उन्हें स्वेच्छा से त्याग देता है तो उसको भय नहीं होता उसी प्रकार जिसने भी इस शरीर से मोह त्याग दिया , जिसने शरीर की अपेक्षा आत्मा को महत्त्व दिया है उसे कभी भी मृत्यु से भय नहीं लगता है |*
*आज संसार में आधुनिकता के साथ मोह की प्रबलता भी बढ़ी है | मोह का शमन करने वाले साधनों आध्यात्म एवं सतसंग से आज का मनुष्य दूर होता चला जा रहा है | आध्यात्म एवं सतसंग मनुष्य को इस शरीर के प्रति मोह एवं अविद्या को नष्ट करने में सक्षम है परंतु मनुष्य ने आज अपनी व्यस्तताओं का हवाला देकर इनसे दूरी बना ली है | आज मनुष्य अपने जीवन में पल - प्रतिपल हो रहे परिवर्तनों में इतना व्यस्त है कि उसे अपनी मृत्यु रा ध्यान ही नहीं रहता , सांसारिक आकर्षणों में उलझा आज का मनुष्य यह भुलाये बैठा है कि हमें मरना भी है | यही कारण है कि जब मृत्यु उपस्थित होती है तो मनुष्य भूतकाल की बातें सोंचकर उद्वेलित होकर भयभीत होने लगता है | हमारे शास्त्रों में मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के साधन भी बताये हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" अब तक सद्गुरुओं से प्राप्त ज्ञानामृत के आधार पर यह बताना चाहता हूँ कि मृत्यु पर विजय तभी प्राप्त की जा सकती है जब मृत्यु से घबराहट नहीं वरन् प्रसन्नता से उसका स्वागत किया जाय | दु:खी मन से इस आनंददायक संसार को न छोड़ा जाय बल्कि अन्तिम समय में जीवनमुक्त अवस्था का परिचय देते हुए मृत्यु को स्वीकार किया जाय और यह तभी सम्भव है जब मनुष्य यह समझ ले कि शरीर के रूप में भिन्न - भिन्न स्वरूप धारण करने वाली आत्मा अमर है और शरीर नाशवान है | जिस दिन मनुष्य इस सत्य को स्वीकार कर लेगा उसी दिन वह मृत्युंजय हो जायेगा | मनुष्य का मृत्यु से भयभीत होने का एकमात्र कारण उसकी अज्ञानता है | मनुष्य यह जानते हुए भी नहीं मानना चाहता कि इस संसार में जो भी दृश्यमान पदार्थ है उन सबका विनाश निश्चित है | इन्हीं पदार्थों में से एक हमारा शरीर भी है और इसकी भी मृत्यु निश्चित है | जिस दिन मनुष्य को यह ज्ञान हो जायेगा उसी दिन वह मृत्यु रूपी भस़यानकता से भयमुक्त हो जायेगा |*
*मृत्यु के भय से मुक्ति पाने के लिए मनुष्य को गीता का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए | भगवान के मुखारविन्द से उच्चारित यह ग्रन्थ मनुष्य को मृत्यु भय से छुटकारा दिलाने में सक्षम है |*