*हमारा देश भारत आदिकाल से सनातन संस्कृति का वाहक रहा है | परिवर्तन सृष्टि का नियम रहा है इसी परिवर्तन के चलते हमारे देश में समय-समय पर भिन्न - भिन्न संस्कृतियों की स्थापना हुई एवं सनातन धर्म से विलग होकर के अनेक धर्म एवं संप्रदाय के लोगों ने अपनी - अपनी संस्कृति की स्थापना की | आज हमारे देश के प्रत्येक धर्म एवं संप्रदाय के अलग अलग देवी - देवता , रहन - सहन , वेशभूषा , रीति - रिवाज एवं धार्मिक ग्रंथ आदि है | इन सब के भिन्न होने पर भी सबकी अपनी अपनी संस्कृति है , अपनी संस्कृति को बचाए रखने एवं बनाए रखें के लिए प्रत्येक धर्म के लोग सतत प्रयासरत रहे हैं | अनेकता में एकता का उदाहरण हमारे भारत देश में ही देखने को मिलता है | भारत देश की संस्कृति इस बात की पुष्टि करती है कि हमारे शासकों ने सदैव सर्वधर्म समभाव की नीति अपनाई थी | पूर्व काल में जहां अनेक शासकों ने हमारे देश भारत पर शासन किया वही उनके द्वारा यह भी प्रयास किया जाता रहा भारत की संस्कृति अक्षुण्ण बनी रहे | भिन्न-भिन्न आदर्शों को मानने वाले लोग अपनी संस्कृति का संरक्षण इसलिए करते हैं क्योंकि संस्कृति ही एक ऐसा विस्तृत स्थान है जहां मनुष्य एवं देवता दोनों शरण पाते हैं , इसलिए किसी भी देश की संस्कृति एवं सभ्यता का संरक्षण होना परम आवश्यक है , क्योंकि जिसकी संस्कृति नष्ट हो जाती है वह स्वयं पतित हो जाता है , उसकी पहचान खो जाती है | हमारे देश भारत ने आदिकाल से अपनी संस्कृति का संरक्षण अनेक विधाओं से किया है परंतु अब समय परिवर्तित हो गया है और पुरातन / सनातन संस्कृति अपनी पहचान खोती जा रही है |*
*आज के आधुनिक युग में मनुष्य आर्थिक दासता को झेल रहा है | एक तरफ तो देश की सरकारें कहती हैं कि उनको अपने देश की संस्कृति का ध्यान है तो दूसरी ओर दिन पर दिन देश के लोगों के द्वारा अपनी संस्कृति को नष्ट किया जा रहा है | आज हमारे आदर्श एवं सांस्कृतिक मूल्य नष्ट होते जा रहे हैं | संस्कृति किसी की दास नहीं अपितु एक ऐसा विस्तृत विषय जिसे किसी भी धर्म या संप्रदाय की चारदीवारी में कैद नहीं किया जा सकता | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के भारत को देख रहा हूं जहां संस्कृति को बचाने के लिए समय-समय पर अनेक संस्थाएं तो बनी परंतु उन संस्थाओं ने संस्कृति को बचाने के लिए कार्य न करके धन उगाही का कार्य प्रारंभ कर दिया | आज देश एवं समाज संस्कृति को बचाने के नाम पर अपरिपक्व प्रयोगों में फंसकर अनेक प्रकार की विकट समस्याओं को जन्म दे रहा है | संपन्नता के साए में पनपती और पलती विकृतियों से संतृप्त पश्चिमी जीवन शैली आज हमारे देश की संस्कृति को नष्ट करने में मुख्य भूमिका निभा रही है | आज हमारी वही स्थिति है कि ना हम पूरब के रह गए हैं और ना ही पश्चिम के , और इसका कारण सिर्फ हम और हमारे मार्गदर्शक की कहे जा सकते हैं जिन्होंने अपने संस्कारों की तिलांजलि दे दी है |*
*जिस प्रकार कहानत कही जाती है कि "धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का" वही स्थिति आज हमारी हो गई है | ना तो हम अपनी संस्कृति को बचा पा रहे हैं और ना ही पूर्ण रूप से आधुनिक ही हो पा रहे हैं | यही स्थिति हमको निरंतर पतन की ओर लेकर जा रही हैं |*