*हमारे देश भारत में हमारे पूर्वजों एवं मनीषियों ने मानव जीवन के लिए आवश्यक तथ्यों का वर्णन तो किया ही है साथ ही मनुष्य के लिए क्या वर्जित है यह भी बताने का प्रयास किया है | जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक घटनाओं का वर्णन तो हमारे शास्त्रों में किया ही गया है साथ ही मनुष्य के लिए क्या करणीय है और क्या त्याज्य है यह भी बताने का प्रयास हमारे महापुरुषों के द्वारा किया गया है | सनातन साहित्य मनुष्य को जीवन जीने की कला सिखाते हैं , संपूर्ण मानव जीवन में एक मनुष्य के अंदर उत्साह , उल्लास एवं दुख आदि समय समय पर उपस्थित होते रहते हैं | इन सभी के बीच सामंजस्य बनाने के लिए , किसी भी कार्य की अधिकता से बचने के हेतु हमारे शास्त्रों में "अति सर्वत्र वर्जयेत्" की सूक्ति प्रकाशित की गयी है | किसी भी कार्य में जब मनुष्य के द्वारा अति की जाने लगती है तो वह मानव एवं संपूर्ण समाज के लिए घातक सिद्ध होता है | मान लिया नित्य प्रकृति के माध्यम से बरसात होने लगे और धूप न देखने को मिले या निरंतर तेज धूप ही होती रहे और बरसात ना हो तो विचार कीजिए प्रकृति एवं प्रकृति की गोद में पल रहे मानव की क्या दशा होगी ? उत्साह प्रत्येक मनुष्य के जीवन में होना चाहिए लेकिन अति उत्साह मनुष्य को परेशानी में डालता आया है | अति उत्साही मनुष्य परिणाम की चिंता किए बिना कार्य तो सम्पन्न कर देता है परंतु जब उसका परिणाम उसके सामने आता है तो उसे पीछे हटने का भी मार्ग नहीं मिलता और उसका पतन हो जाता है | इतिहास में अनेकों कथानक प्राप्त होते हैं जहां अति उत्साह में आकर के लोगों के द्वारा साधारण एवं असाधारण कृत्य किए गए परंतु उसका क्या परिणाम हुआ इसका साक्षी भी इतिहास बना है | इसलिए इतिहास से शिक्षा लेते हुए सदैव अति उत्साह से बचने का प्रयास करते रहना चाहिए |*
*आज के आधुनिक युग में मनुष्य ने इतना ज्यादा विकास कर लिया है कि वह चंद्रमा तक तो पहुंच ही गया है साथ ही समुद्र की गहराइयों को भी नाप डाला है | यह सारे कार्य मनुष्य के उत्साह को दर्शाते हैं , परंतु आज अनेकों लोग ऐसे भी हैं जो अति उत्साह में आकर के दूसरों के कहने पर ऐसे ऐसे कर्म कर रहे हैं जिनका फल उनको भुगतना ही पड़ता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में चारों ओर अति उत्साह से ग्रसित लोगों की एक लंबी कतार देख रहा हूं | किसी मठ या मंदिर का महंथ बनने के लिए शिष्यों के द्वारा अति उत्साह में आकर अपने ही गुरु को गद्दी से हटा देना , उनकी हत्या कर देना , अपनी इंद्रियों पर संयम ना रख पाकर अति उत्साह में आकर के किसी कन्या या नारी की लाज लूट लेना या किसी भीड़ का हिस्सा बनकरके स्वयं को सुरक्षित समझते हुए ऐसे कृत्य करना जो अपराध की श्रेणी में आते हैं , आज साधारण सी बात हो गई है | स्वयं को बुद्धिमान कहने वाला मनुष्य किस बुद्धिमत्ता का परिचय दे रहा है यह विचारणीय है | पूर्वकाल की अपेक्षा आज मनुष्य अधिक शिक्षित है परंतु आधुनिक पढ़े लिखे लोगों के कृत्यों को देख कर के यह कहने पर विवश हो जाना पड़ता है इन लोगों से अच्छे तो अनपढ़ ही थे , जो अपनी संस्कृति और सभ्यता को संजोकर अपना जीवन यापन करते थे | आज हमारे देश में अति उत्साह की झलक स्पष्ट दिखाई पड़ रही है | अति उत्साह में किया गया कोई भी कार्य कभी भी सुखद परिणाम लेकर नहीं आता है | जब मनुष्य अति उत्साही हो जाता है तो उसकी बुद्धि कुंठित हो जाती है और विचार करने की क्षमता का लोप हो जाता है | शायद इसीलिए कहा गया है कि :- "बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय ! काम बिगाड़े आपनो जग में होत हंसाय !! इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को उत्साहित तो होना चाहिए परंतु अति उत्साह में आकर कोई ऐसा कृत्य नहीं करना चाहिए जिससे कि उसे पश्चाताप करने का भी अवसर ना मिले |*
*आज के युवा अपने धर्म ग्रंथों एवं सत्साहित्यों का अध्ययन नहीं कर पा रहे हैं इसी कारण वे अति उत्साह नामक रोग से ग्रसित हो रहे हैं यदि इस रोग से स्वयं को बचाना है तो अपने महापुरुषों के द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करना ही होगा |*