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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *पंचम् - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*चतुर्थ भाग* तक आपने पढ़ा:--
*श्री गुरु चरण सरोज रज*
*निज मन मुकुर सुधारि*
अब आगे :-----
*"वरणौं रघुवर विमल यश"*
यहाँ तुलसीदास जी श्री गुरु चरण रज से मन को निर्मल कर ग्रहण करने के बाद भगवान श्रीराम के निर्मल यश का वर्णन करने की घोषणा करते हैं | विचार करने वाली बात यह है कि *"हनुमान चालीसा"* में हनुमान जी का वर्णन है तो तुलसीदास जी ने रघुवर विमल यश क्यों लिखा ? आईये इस विषय पर कुछ चिन्तन करने का प्रयास करते हैं |
हनुमान जी का यश प्रत्यक्षरूप से *रघुवर विमल यश* ही होता है फिर तुलसीदास जी ने यहाँ श्रीराम यश न लिखकर *रघुवर यश* लिखा है जिससे सात्त्विक एकता की भाँति रामजी व हनुमान जी के उभय प्रबोधक श्लिष्ट अर्थ को प्रकट कर दिया है | उभय प्रबोधक कैसे ?? तो यहाँ ध्यान देना है कि *रघुवर = रघुकुल में श्रेष्ठ* अर्थात श्रीराम जी , दूसरा भाव देखिये :- *रघु = जीव , वर = श्रेष्ठ* अर्थात जीवों में श्रेष्ठ | जीवों में श्रेष्ठ कौन है ? कहा कि श्री हनुमान जी | इस प्रकार परमविद्वान गोस्वामी जी ने एक ही शब्द में श्रीराम एवं हनुमान जी दोनों की ही महिमा का वर्णन करने की घोषणा कर डाली |
*एक विचार और*
हनुमान जी अपनी स्तुति नहीं सुनते जितना वे श्रीराम का वर्णन सुनते हैं | यथा :- *"यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम् ! भाष्पवारि परिपूर्ण लोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् !!"* अर्थात :- जहां -जहां भगवान श्रीरघुनाथकी संकीर्तन होता है, वहां शरणागत मस्तक, जुडे हुए हस्त कमल और नेत्रोंमें भावपूर्ण आनंद अश्रुके साथ उपस्थित होते हैं , ऐसे राक्षसोंका संहार करनेवाले, श्रीहनुमानको हमारा कोटिश: प्रणाम | यही भाव मन में रखते हुए गोस्वामी जी ने रघुवर के विमल यश का वर्णन करने की घोषणा की , ऐसा करके मानों उन्होंने हनुमान जी का आवाहन कर लिया | क्योंकि जहाँ रघुवर का यश वर्णन होगा वहाँ उसे सुनने के लिए अकस्मात् ही हनुमान जी पहुँच जायेंगे ! क्योंकि वे तो *"राम चरित सुनिबे को रसिया"* हैं |
कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि यहाँ तुलसीदास जी ने हनुमान जी को मिथ्या घोषणा करके धोखे से बुलाया | उनको बताना चाहूँगा कि कि तुलसीदास जी ने *वरणौं* लिखा है | *वरण करना* अर्थात ग्रहण करना | *वरणौं* अर्थात वरण करता हूँ रघुवर के विमल यश का , स्वच्छ *मन* में रघुवर का निर्मल विशद यश को ग्रहण करता हूँ | ऐसी सत्य घोषणा करके भगवान श्री राम का ध्यान करके उनके साथ ही हनुमान जी का भी ध्यान किया जायेगा क्योंकि हनुमान जी तो श्री राम को छोड़कर कहीं जाते नहीं है | जब श्री राम और हनुमान जी दोनों एक साथ होंगे और हम संकट नाशन की प्रार्थना करेंगे तो श्री राम के समक्ष हनुमान जी भी मना नहीं कर पायेंगे क्योंकि भगवान ने स्वयं कहा है कि *"संकट को दूर करने का कार्य हनुमान जी करेंगे"* इसिलिए तुलसीदास जी का घोषणा को धोखा या मिथ्या नहीं कहा जा सकता |
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*"जो दायक फल चारि"*
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*रघुवर विमल यश* का *वरण करना चारों फलों को देने वाला है | चारों फल कौन से ? बोले कि :- धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष | यहाँ यदि इन चारों की विवेचना की जायेगी तो यह बहुत ही विशद विषय है साथ ही विषयान्तर भी हो जायेगा |
कुछ लोग यह सकते हैं कि :- जब अर्थ एवं काम की प्राप्ति भी *रघुवर विमल यश वरण* करने से हो जाती है तो *हनुमान चालीसा* की क्या आवश्यकता थी ? ऐसे लोगों को समझने की आवश्यकता है कि :- श्री राम के चरित्र को ग्रहण करना इतना आसान नहीं है | सर्वप्रथम तो मन निर्मल होना चाहिए क्योंकि जब तक मन निर्मल नहीं होगा तब तक चरित्र तो छोड़ो चित्र भी मन में नहीं स्थिर होगा | राम कथा का पात्र है *निर्मल मन* | अब पात्र को ग्रहण करने के लिए आवश्यकता है साधन व क्षमता की | जिस प्रकार लौकिक पात्रों (थाली -कटोरी आदि) को ग्रहण करने के लिए हाथों की व उसमें शक्ति की आवश्यकता है उसी प्रकार श्री राम चरित विमल यश के लिए पात्र तो निर्मल मन हो गया परंतु ह ग्रहण किन हाथों से होगा ? बोले कि वे दो हाथ हैं :- *अभ्यास एवं वैराग्य* | गीता में स्वयं भगवान कहते हैं :--
*अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते !*
वही योग दर्शन कहता है कि :- *"अभ्यास वैराग्याभ्यां तन्निरोध:"* अब इन दोनों हाथों (अभ्यास एवं वैराग्य) से पात्र थामने के लिए शक्ति भी चाहिए | वह शक्ति क्या है ? बोले वह शक्ति है बुद्धि | क्योंकि बुद्धि से ही मन पर नियंत्रण कर उसे पकड़ा जा सकता है | गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि :-- मैं *"रघुवर विमल यश वरण* करना चाहता हीँ परंतु उतनी सक्षमता नहीं है क्योंकि वह बुद्धिबल नहीं है | इसी सक्षमता को प्रदान करने के लिए हे हनुमान जी आपका स्मरण करता हूँ | यथा :---
*"बुद्धिहीन तनु जानिके , सुमिरौं पवन कुमार"*
*शेष अगले भाग में :-----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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