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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *छठवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*पाँचवें भाग* में आपने पढ़ा :---
*श्री गुरु चरण सरोज रज ,*
*निज मन मुकुर सुधारि !*
*वरणौं रघुवर विमल यश ,*
*जो दायक फल चारि !!*
अब आगे :----
*"बुद्धिहीन तनु"*
मन तो गुरुदेव की चरणों की रज से निर्मल हो गया | निर्मल मन का निग्रह कने के लिए बुद्धि बल की आवश्यकता होती है और बुद्धि बल कहाँ से मिलेगा ? बोले कि बुद्धिबल वही दे सकता है जो बुद्धिमानों में वरिष्ठ हो ! ऐसा कौन है ? कहा कि ऐसे हैं हनुमान जी :- *"बुद्धिमतां वरिष्ठम्"* ! यहाँ बुद्धिबल के लिए गोस्वामी जी *गणेश जी* या फिर मैया *सरस्वती जी* का भी सुमिरन कर सकते थे ! *सुमिरौं पवनकुमार* ही क्यों लिखा ?? तो भाई ! सीधी सी बात है कि यहाँ रघुवर के विमल यश का वर्णन करना है और जहाँ श्रीराम का कार्य हो वहाँ हनुमान जी बिना ज्यादा मेहनत किये ही आ जाते हैं क्योंकि यह उनका स्वभाव है :- *"रामकाज करिबे को आतुर"*
तुलसीदास जी ने लिखा :- *"बुद्धि हीन तनु"* अर्थात शरीर बुद्धिहीन है | विचार करने वाली बात तो यह है कि बुद्धि का सम्बन्ध देह से है ही नहीं ! तुलसी बाबा ने देह को बुद्धिहीन बताया है क्योंकि यह विषय (श्री राम चरित्र) बुद्धि से नहीं जाना जा सकता | यह विषय है *!! भगवत्कृपा !!* का | भगवत्कृपा प्राप्त होने का एक ही साधन है :- *"संतकृपा"* श्री राम के प्रति श्रद्धा का भाव तो बना , गुरु चरणों की कृपा से मन भी निर्मल हो गया परंतु बिना *"संतकृपा"* के / बिना सतसंग के राम चरित को नहीं जाना जा सकता | तुलसीदास जी घोषणा करते हैं कि :---
*जो श्रद्धा संबल रहित नहिं संतन कर साथ !*
*तिन्हं कहं मानस अगम अति जिन्हहिं न प्रिय रघुनाथ !!*
संत की परम आवश्यकता है तो किस संत को ढूँढ़ा जाय ? किसी अन्य संत को खोजेंगे तो सूदूर आश्रमों पर जाना पड़ेगा परंतु परमसंत हनुमान जी मात्र स्मरण करना है क्योंकि वे तो स्वयं इस कार्य के *रसिया* होते हुए इस कार्य को सम्पादित करने के लिए *आतुर* रहते हैं | यह जान पाना बुद्धि की सर्वोच्चता दिखाता है तो कुछ लोग कहते हैं कि बाबा जी ने बुद्धिहीन कहकर यह बताया है कि बुद्धि है ही नहीं ! परंतु मैं बताना चाहूँगा कि ऐसे लोगों को ध्यान देने कि आवश्यकता है कि बाबा जी ने कुछ भी गलत नहीं लिखा है ! कैसे ? *बुद्धि* तो है परंतु *हीन तनु* है अर्थात क्षीणकाय है | बुद्धि तो है परंतु निर्बल है | *बुद्धि हीन तनु* अर्थात बुद्धि तन - शरीर से हीन है | बुद्धि की कोई आकृति नहीं होती तो आकृतिहीन निर्बल बुद्धि को सबल करने के लिए विदेह अर्थात जिसकी देह ही न हो पवन देव के पुत्र का स्मरण गोस्वामी बाबा ने किया | ज्ञान के विषय का साधन है बुद्धि और वह दुर्बल है अत: हनुमान जी की कृपा की परम आवश्यकता है |
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*"जान के"*
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तुलसीदास जी कहते हैं कि :- मैं जानता हूँ कि मैं बुद्धि से आपके पास पहुँच नहीं सकता इसलिए स्मरण कर रहा हूँ ! *जान के* लिखकर गोस्वामी जी ने अपने संकल्प को दृढ़ बताया है कि :- हे हनुमान जी मैं जानता हूँ कि आप ही बुद्धि एवं बल प्रदान कर सकते हैं ! यदि यह दृढ विश्वास न होता तो *जान के* के स्थान पर *मान के* लिखा होता | यहाँ यह भाव है कि हे हनुमान जी मैं आपको जानता हूँ और जब किसी सहायता की आवश्यकता होती है तो मनुष्य अपने जान - पहचान वालों को ही याद करता है | आज हमारे पास न तो बुद्धि है और न बल ! इसलिए :----
*सुमिरौं पवन कुमार*
*शेष अगले भाग में :-----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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