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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *सातवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*छठवें भाग* में आपने पढ़ा :---
*"बुद्धि हीन तनु जान के"*
अब आगे :----
*सुमिरौं पवन कुमार*
*"सुमिरौं"*
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पूजा के सभी आयामों में सबसे सरल है *सुमिरन* करना | भक्तिमय उपचार सेवा का एक अंग है *सुमिरन करना* | जब अन्य उपचारों से पूजा करना कठिन हो जाय तब सर्वत्र सुलभ उपचार *स्मरण* से ही देवता की पूजा करनी चाहिए | तुलसीदास जी कहते हैं कि :- मैं हनुमान जी *पवन कुमार* को याद करता हूं क्योंकि इस समय और कोई मार्ग नहीं है और न ही इतनी सामर्थ्य है कि कुछ और निवेदन कर सकता हूँ | आप सदैव भगवान की सेवा में संलग्न रहते हैं और मेरी पहुंच वहां तक नहीं हो सकती क्योंकि ना तो *बुद्धि बल* है और ना ही *ज्ञान योग* | आपके पास पहुंचना हमारे लिए असंभव ही है अतः *हनुमान जी* मैं आपका *सुमिरन* करता हूं क्योंकि आप जब चाहे जहां चाहे पहुंच सकते हैं | भगवान श्रीराम सर्वत्र हैं और जहां श्रीराम हैं वहां आप भी हैं | जब आप सर्वत्र हैं तो आपको ढूंढने कहीं जाने से अच्छा है कि मैं आपका *स्मरण* कर लूं | यही भाव मन में आते ही तुलसीदास जी ने लिख दिया :----
*"सुमिरौं पवन कुमार*
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*पवन कुमार*
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जैसे राजा के पुत्र को राजकुमार कहा जाता है उसी प्रकार पवन के पुत्र हनुमान जी को *पवन कुमार* की संज्ञा दी जाती है आ *श्री हनुमान जी महाराज* को भगवान शंकर , कपीश केसरी , पवन देवता एवं माता अंजनी का पुत्र कहा गया है | यथा :--
*"शंकर सुवन केसरी नंदन"*
एवं
*अंजनि पुत्र पवनसुत नामा*
यहां पर कुछ सामान्य प्रकृति के लोगों के हृदय में संदेह उत्पन्न हो जाता है कि अकेले *हनुमान जी* इन चारों के पुत्र कैसे हुए ?? जो व्यक्ति अपनी ज्ञान सीमा केवल और केवल संतानोत्पत्ति के के विषय में मैथुनी सृष्टि तक ही सीमित रखते हैं तथा दिव्य सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में नहीं जानते ऐसे ही लोगों को इस प्रकार की शंका हो सकती है | *हनुमान जी* के विषय में समझने के लिए सामान्य दृष्टिकोण उपयोगी नहीं हो सकता है |
मैं बताना चाहूंगा कि यदि इस पर चिंतन करना है तो इस प्रकार किया जाय कि उत्पत्ति के लिए जो नियम सामान्य एवं प्राकृतिक हैं इनका संचालन कर्ता कौन है ?? क्या ईश्वर की सत्ता पर विश्वास करते हैं जो प्रकृति का नियंता है ??? यदि विश्वास करते हैं तो यह ध्यान रहे कि प्रकृति एवं प्राकृतिक नियम स्वयं प्रकृति के नहीं बल्कि ईश्वर कृत एवं उसके अधीन है | जो कि परम स्वतंत्र सत्ता है | जब चाहे जैसा चाहे प्रकृति विपरीत भी कार्य कर सकती है | और कभी-कभी करती ही रहती है | तभी इसका कारण मनुष्य को (प्रमाणित) होता रहता है | हमारे पुराणों में अनेक उदाहरण है जैसे :- स्वायंभुव मनु एवं शतरूपा आदि की उत्पत्ति , ब्रह्मा जी के द्वारा मानसिक सृष्टियाँ , यज्ञ के द्वारा द्रौपदी की उत्पत्ति आदि यह सब सृष्टि उच्च स्तरीय बुद्धि का विषय है | उसके बाद में ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस सकल सृष्टि में चार प्रकार के जीव की उत्पत्ति होती है जिन्हें स्वेदज , अण्डज , उद्भिज एवं जरायुज कहा जाता है |
इनमें जरायुज आकर की उत्पत्ति में *नर , मादा* दो की भाँति सूक्ष्म बुद्धि से विचार करने पर *निमित्त एवं क्षेत्र* अन्य दो की भी अनिवार्यता प्राकृतिक ही होती है | मूल कारण अतिदिव्य एवं पांचवा होता है | जो कि अटल है |
*अब इस रहस्य को समझने का प्रयास किया जाय*
क्षेत्राधिकारी पुरुष *केसरी* होने से *केसरी नंदन*
स्वयंभू भगवान *शंकर* के तेज का ही एक अंश अवतरित होने से *शंकर सुवन*
तेज स्थापन का *निमित्त* (माध्यम) *पवन देवता* के होने से *पवन तनय*
एवं जननाधिकार माता *अंजनी* को मिलने से *अंजनी पुत्र* कहलाए |
श्री हनुमान जी का अवतार अतिदिव्य अवतार है | इसमें उत्पत्ति के पांचों अंग अलग-अलग व स्पष्ट होने से चारों नाम से प्रसिद्ध हो गए | यहां तुलसीदास जी ने *"पवन कुमार"* लिखा क्योंकि *बुद्धि बल* बढ़ाना है और बुद्धि का कोई आकार नहीं होता उसी प्रकार निराकार *पवन देवता* के पुत्र के रूप में *हनुमान जी* का आवाहन करते हुए :--
*सुमिरौं पवन कुमार* लिख दिया
*शेष अगले भाग में :-----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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