*इस सकल सृष्टि में समय निरंतर गतिशील है , समय का चक्र कभी नहीं रुकता है | हमारे विद्वानों ने समय को तीन भागों में विभाजित किया है | जो बीत गया वह "भूतकाल" , जो चल रहा है वह "वर्तमान काल" एवं जो आने वाला है उसे भविष्य काल कहा गया है | मनुष्य को सदैव अपने वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए | प्रायः कुछ लोग अपने बीते हुए स्वर्णिम समय को सपने की भाँति याद किया करते हैं जिससे उनका वर्तमान प्रभावित होता रहता है और कुछ लोग आने वाले कल की योजनाएं बनाने में वर्तमान को गवा देते हैं | मानव मात्र के मस्तिष्क में एक बात घूमती रहती है कि "कल क्या होगा ?" जबकि हमारे विद्वानों ने कहा है कि "गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् ! वर्तमानेषु कार्येषु वर्तयन्ति विचक्षण: !!" अर्थात :- जो बीत गया है उसके विषय में बहुत ज्यादा शोक नहीं करना चाहिए जो आने वाला समय है उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए बुद्धिमान वही है जो वर्तमान में जीवन जीता है क्योंकि वर्तमान जितना सुंदर बना लिया जाएगा भविष्य उतना ही सुखद होगा | भविष्य के विषय में चिंतन करना अच्छी बात है परंतु "कल क्या होगा ?" की चिंता में डूब जाना मनुष्य को अनेक संकटों में डाल देता है | मनुष्य आने वाले कल की चिंता में अपने वर्तमान को गंवाता चला जाता है जिससे उनका ना तो बर्तमान बन पाता है और ना ही भविष्य | यदि भविष्य को संभालना है तो वर्तमान में जीने की आदत डालनी पड़ेगी | "कल क्या होगा ?" इसके विषय में चिंता नहीं चिंतन करना चाहिए और चिंतन भी अधिकता से अधिक नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यदि भविष्य के चिंतन में ही दिन-रात बैठा रहा जाएगा तो वर्तमान का क्या होगा ? इसलिए मनुष्य को सदैव भविष्य की योजनाएं बनाते हुए वर्तमान को सुदृढ़ करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि जिसका वर्तमान सुंदर होता है उसका भविष्य स्वयं सुंदर हो जाता है | "कल क्या होगा ?" इस चिंता में बैठकर अपने भविष्य को अधिक से अधिक सुंदर बनाने की योजनाएं बनाते रहने वाले अपने वर्तमान को भी खो देते हैं | यह बुद्धिमानों का कार्य नहीं है , बुद्धिमान व्यक्ति ना तो बीते दिनों के लिए शोक करता है और ना ही भविष्य की बहुत ज्यादा चिंता करता है क्योंकि वह जीवन के मूल मंत्र को जानता है | जीवन का मूल मंत्र वर्तमान में है इसलिए "कल क्या होगा ?" की बहुत अधिक चिंता नहीं करनी चाहिए |*
*आज के आपाधापी भरे युग में लगभग ९९ प्रतिशत लोग अनेक भांति के मानसिक रोगों से पीड़ित है , अधिकतर लोग अनेक प्रकार से अवसादो से घिरे हुए हैं और इन सब का मूल कारण है मनुष्य के हृदय में , उसके मस्तिष्क में "कल क्या होगा ?" की चिंता ही कही जा सकती है | विचार कीजिए कि विद्यार्थी वर्ष भर पठन-पाठन करता है और एक दिन वह समय आता है जब उसको परीक्षा देनी होती है , यदि विद्यार्थी पहले ही चिंता करने लगे कि "कल क्या होगा ?" और इसी चिंता में पठन-पाठन करना बंद कर दे मात्र बैठकर परिणाम की चिंता करता रहे तो परिणाम कितना अच्छा होगा यह सभी जान सकते हैं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि विद्यार्थी वही सफल होता है जो अपने वर्तमान में पूर्ण मनोयोग से अपने विषयों का अध्ययन करते हुए परीक्षा देने बैठता है यदि उसने वर्तमान को संवारा होगा अर्थात पठन-पाठन किया होगा तो उसका भविष्य अर्थात परीक्षा का परिणाम भी सुखद ही होगा | परंतु आज समाज में प्रायः लोग इस चिंता में घुले रहते हैं कि "कल क्या होगा ?" यदि मनुष्य किसी कार्य में असफल हो गया है तो ऐसा नहीं है कि सफलता उसको नहीं मिलेगी परंतु सफलता का मूलमंत्र यही है कि मनुष्य अपने वर्तमान को संवारे | एक चिकित्सक अपने रोगी की चिकित्सा भविष्य के परिणाम की चिंता करके नहीं करता है | चिकित्सक वर्तमान में जीता है कि यदि रोगी आज मेरे पास आया है तो उसकी यथासंभव चिकित्सा की जाय | यदि चिकित्सक भी भविष्य की चिंता करने लगे ! "कल क्या होगा ?" यह भाव उसके मन में उत्पन्न हो जाय तो शायद वह रोगी की चिकित्सा नहीं कर पाएगा | मनुष्य को अपने वर्तमान में संघर्ष करते हुए उसे संवारने का प्रयास करना चाहिए | "कल क्या होगा ?" यह किसी ने नहीं देखा है तो हम भी देखने का प्रयास क्यों करें ? यह सृष्टि कर्म प्रधान है इसलिए वर्तमान में मानवोचित कर्म करते हुए भविष्य की आधारशिला रखनी चाहिए | "कल क्या होगा ?" यह विषय आज प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में अनेकों प्रकार के विचारों को जन्म देता है उसी के अनुसार मनुष्य भविष्य की योजनाएं तैयार करने में इतना अधिक व्यस्त रहने लगता है कि उसके हाथ से उसका वर्तमान फिसलता चला जाता है |*
*भविष्य की योजनाएं अवश्य बनानी चाहिए लेकिन "कल क्या होगा ?" इसका दबाव अपने ऊपर कदापि नहीं आने देना चाहिए |*