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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *तेरहवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*बारहवें भाग* में आपने पढ़ा :--
*चौपाई* का भाव :-
अब आगे :---
*जय हनुमान ज्ञान गुन सागर* के अन्तर्गत:-
*जय*
*----*
*हनुमान चालीसा* का प्रारंभ तुलसीदास जी ने *जय* शब्द से किया है | *जय* शब्द का उच्चारण तभी किया जाता है जब आराध्य देवता सामने उपस्थित हों | जैसा कि मानस में कई स्थान पर उदाहरण मिलता है देवताओं की वंदना :- *जय जय सुरनायक* या सीता जी द्वारा पुष्प वाटिका में:- *जय जय गिरिबरराज किसोरी* आदि का विवरण किया गया है , उसी प्रकार यहां भी *"सुमिरौं पवन कुमार* में स्मरण करते ही *श्री हनुमान जी* को सम्मुख देखकर तुलसीदास जी ने एकदम *जयघोष* कर स्तुति आरंभ कर दी | *जय* शब्द का अर्थ होता है कि आप सर्वत्र विजयी हों | नमस्कार के भाव में भी इसका उच्चारण उपस्थिति व प्रथम मिलन पर *शिष्टाचार* है | यथा :--
*कहि "जयजीव" शीश तिन्ह नाये !*
अत: यहाँ *जय* का आभिप्राय है कि हम आपको नमन करते हैं आप हमें भी *जय* प्रदान करें |
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*हनुमान*
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यहां *जय* शब्द के भाव जो ऊपर कह़े गए हैं वे किस के लिए समर्पित है उसका नाम तुरंत लिया जाता है , ऐसी परंपरा न शिष्टाचार भी है कि *जय* के बाद संबोधक नाम का उच्चारण किया जाय | यथा :-- *जय जय सुरनायक* या फिर *जय जय गिरिवरराज किशोरी* अथवा आम बोलचाल की भाषा में *जय राम* आदि | इस प्रकार यहां *जय हनुमान* कह कर के *हनुमान* अभीष्ट देवता का संबोधित नाम बताया | तुलसीदास जी ने पूर्व में *पवन कुमार* कहकर देवकुल का संबंध कहा था परन्तु पवन कुमार कई व्यक्ति हो सकते हैं जैसे पांडुपुत्र भीमसेन को भी *पवनपुत्र* कहा जाता है | इसलिए यहाँ निश्चयवाचक *हनुमान* के नाम का जयघोष किया गया कि *हनुनान चालीसा* के देवता *हनुमान* हैं |
ब्रह्मा जी के द्वारा यही नामकरण किया गया था | *हनुमान* शब्द का भावार्थ विद्वानों ने बताया है उसके अनुसार :---
*हनु + मान* ! हनु अर्थात हनन कर दिया है ! मान अर्थात प्रतिष्ठा ! जिसने अपनी मान प्रतिष्ठा का हनन कर दिया हो उसका नाम *हनुमान* है | यहां *मान* के हनन में भी कई भाव है | यथा :- जिसके सामने किसी का *मान* ठहर नहीं सकता , अर्थात मान प्रतिष्ठा केवल यहीं प्रतिष्ठित हुई है | इनके परोक्ष में ही किसी का *मान* जीवित रह सकता है , सामने आते ही वह हनन हो जायेगा | जिसके सामने *मान* का हनन हो ही जाता है , उसी का नाम *हनुमान* है या फिर जिसने अपने *मान* का हनन कर दिया है अर्थात जो *मान प्रतिष्ठा* से असंग है उसे *हनुमान* कहा गया है | क्योंकि *हनुमान जी* का लक्ष्य निष्काम सेवा है | उसमें अपनी *मान प्रतिष्ठा* का कोई मूल्य नहीं है , उसकी कोई चिंता नहीं है , जैसा कि उन्होंने स्वयं कहा है :--
*मोंहि न कछु बांधे कइ लाजा !*
*कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा !!*
जिसका मान - पहचान - चिन्ह हनु ठोड़ी है उसका नाम *हनुमान* है | शरीर के अंगों की विशेषता के आधार पर भी नामकरण प्राचीन काल से होता चला आया है |
*जैसे :-*
सुंदर कंठ वाले को *सुग्रीव* कहा गया |
चार मुख होने के कारण *चतुरानन* ब्रह्मा जी को कह दिया गया |
दस मुख होने के कारण रावण को *दशानन* कहा गया |
विष के प्रभाव से कंठ नीला पड़ जाने पर महादेव का नाम *नीलकंठ* पड़ा
घुंघराले बरबराकार केशों के कारण भीमसेन के पौत्र को *बर्बरीक* नाम दिया गया | उसी प्रकार जिसकी ठोढ़ी ने वज्र का मानमर्दन कर दिया उसे *हनुमान* कह दिया गया |
*हनुमान* का एक अर्थ और होता है :- *परम ज्ञानी*
जो *मान* का हनन कर दे वही परम ज्ञानी का लक्षण है | यथा :- *ज्ञान मान जहां एकउ नाहीं*
*हनुमान जी* परम ज्ञानी हैं इसलिए तुलसीदास जी ने अन्य नामों की अपेक्षा *हनुमान* नाम का जयघोष करते हुए *हनुमान चालीसा* का प्रारंभ किया |
*शेष अगले भाग में :-----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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