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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *पन्द्रहवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*चौदहवें भाग* में आपने पढ़ा :--
*जय हनुमान ज्ञान गुण सागर*
अब आगे :---- *जय कपीश तिहुँ लोक उजागर*
*जय कपीश*
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जैसे भगवान का अन्य अवतार :- *मत्स्य , सूकर , नरसिंह* आदि है उसी प्रकार भगवान शंकर का यह *वानरावतार* है | वानर को *कपि* कहते हैं एवं भगवान को *ईश* कहा जाता है | *कपि + ईश = कपीश* कह कर गोस्वामी जी ने आपके *रुद्रावतार* होने की पुष्टि कर दी है | यदि लोक परंपरा देखी जाय तो किसी घटना , स्थान या गुण विशेष के साथ भगवान शंकर का संबंध सूचित करना हो तो उसके साथ *ईश* लगाया जाता है | जैसे :- *रामेश्वर , सिद्धेश्वर , गंगेश , विश्वेश* आदि | *कपि* लीलावतार में साक्षात शंकर जी के होने से पुनः *जय* शब्द का उद्घोष करते हुए तुलसी बाबा ने *जय कपीश* लिखा है | *ईश* राजा के लिए भी प्रयोग किया जाता है , इसलिए कपियों के महान नेता राजाओं के भी नियुक्तक होने से पुनः लीलावतार के संबोधन में रामजी की लीलाओं में कपित्व लीलाओं की प्रधानता के कारण *कपीश* कहा गया | यथा :-- *"कपि लीला कर तिन्हहिं डेरावहिं"*
प्रथम बार *जय* शब्द *गुणप्रधान* स्वरूप के लिए कहा गया तो दूसरा *ऐश्वर्य प्रधान* लीला के कारण कपिल कहकर बताया गया कि *हे हनुमान जी* आप साधारण वानर नहीं है बल्कि वानर रूप में *ईश्वर* ही है , आपकी जय हो अथवा हे *कपीश* आप हमारा नमन स्वीकार करें |
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*"तिहुँ लोक उजागर"*
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जो तीनों लोकों में प्रसिद्ध हो वहीं *तिहुँ लोक उजागर* कहा जा सकता है | तीनों लोकों में *हनुमान जी* कैसे प्रसिद्ध है देखियेगा :-- तीन लोक होते हैं :- *आकाश पाताल एवं पृथ्वी*
*आकाश में कैसे प्रसिद्घ हैं ?*
*आकाश* में भी *हनुमान जी* गमन करते हैं | *आकाश मार्ग* में भी योग बल से निर्बाध हनुमान जी की गति है , सीता की सुध लेने के लिए जाते समय *आकाश मार्ग* से ही शत योजन समुद्र को पार किया | संजीवनी लाने के लिए भी *आकाश मार्ग* से ही गये थे | दूसरा भाव यह है कि :-- आपने तीनों लोकों *(भू: भुव: स्व:)* के प्रकाशक सूर्य को अपने मुंह में रखकर के तीनों लोकों में प्रसिद्धि प्राप्त की है |
*पृथ्वी पर प्रसिद्ध* इसलिए है कि तीनों लोकों में प्रसिद्ध *राम रावण युद्ध* पृथ्वी पर ही हुआ था जिसमें आप प्रधान थे | संपूर्ण *पृथ्वी मंडल* पर एक मात्र *श्री राम जी* का राज्य था वह आप उनके निकटतम पायक रहे हैं तो आप की *प्रसिद्धि* को कौन नहीं जानता |
*पाताल* में भी *अहिरावण* राज्य करता था माया से राम लक्ष्मण को हरण करके ले गया वहां जाकर अहिरावण का वध करके आप *पाताल* में भी प्रसिद्ध हो गए | इस प्रकार *तिहुँ लोक उजागर* है आपकी प्रसिद्धि |
*तिहुँ लोक उजागर* इसलिए लिखा :--
*क्योंकि* हनुमान जी ज्ञान गुण सागर हैं !
*क्योंकि* आप कपीश है अर्थात वानरावतार भगवान शंकर हैं |
*क्योंकि* तीनों लोक आपसे ही प्रकाशित है |
अब कुछ लोग कह सकते हैं कि तीनों लोकों को तो *सूर्य* प्रकाशित करता है अर्थात तीनों लोक *हनुमान जी* से कैसे प्रकाशित हैं ??
उनको मैं बताना चाहूंगा कि तीनों लोकों को प्रकाशित करने वाले *सूर्य* को बालपन में ही *हनुमान जी* ने निगल लिया था तब तीनों लोक अंधकारमय हो गया था | देवताओं की प्रार्थना पर *हनुमान जी* ने ही *सूर्य* को मुक्त किया और उनकी कृपा से ही तीनों लोकों में पुन: *सूर्य* प्रकाशित हुआ | *हे हनुमान जी* आपकी कृपा से ही *तीनो लोक प्रकाशित हैं* यही मन में विचार आते ही बाबा जी ने लिख दिया:-- *जय कपीस तिहुं लोक उजागर*
*शेष अगले भाग में :-----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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