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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *सोलहवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*पन्द्रहवें भाग* में आपने पढ़ा :--
*जय कपीश तिहुँ लोक उजागर*
अब आगे :---
*राम दूत अतुलित बल धामा*
के अन्तर्गत :---
*रामदूत*
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*हनुमान जी* आप श्री राम जी के *दूत* हैं | भगवान राम की नर लीला में सीता की सुधि लेने के लिए आप उनके *दूत* बनकर गए | आज तक ऐसा कोई *दूत* (संदेशवाहक) नहीं हुआ जो तीनों मार्गों *(जल थल नभ)* की बाधाओं पर विजय प्राप्त कर स्वामी का यथेच्छ संदेश मर्यादा में रहकर यथोचित स्थानों में देकर प्रत्युत्तर सहित निर्धारित समय में लाकर दे दे | आप स्वयं *श्री रामदूत* होने में स्वयं को भाग्यशाली समझते हैं , अतः आप तीनों लोगों में प्रसिद्ध *रामदूत* हुए | यथा :-- *तिहुं लोक उजागर राम दूत* |
आप स्वयं अपना परिचय *रामदूत* कह कर देते हैं | अशोक वाटिका में सीता जी से प्रथम दर्शन में आपने स्वयं कहा :- *रामदूत मैं मातु जानकी* वही रावण की सभा में रावण से अपना परिचय देते हुए *हनुमान जी* ने कहा था :- *तासु दूत मैं जाकर हरि आनेहुँ प्रिय नारि*
भगवान *श्री राम का दूत* बनकर ही आपको प्रसिद्धि प्राप्त हुई ! यदि यह कहा जाए *श्री राम का दूत* बनने के बाद ही आपने अपने स्वरूप को प्रकट किया तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | क्योंकि इससे पूर्व आपने अपने बल , पौरुष या स्वरूप को छुपाए रखा था | आपको पहले न देवता ही पहचानते थे ना ही राक्षस | तो मनुष्य की क्या बिसात है ?
*देवता कैसे नहीं जानते थे ?*
इसका प्रमाण है कि जब *हनुमान जी* लंका की यात्रा पर निकले तो देवताओं को संदेह हो गया कि रावण जैसे भयंकर दुर्दांत राक्षस के नगर में जाकर के क्या *हनुमान* सुरक्षित वापस आ पाएंगे | उनकी बुद्धिमत्ता बल एवं पुरुषत्व की परीक्षा लेने के लिए देवताओं ने *सुरसा* को रास्ते में भेजा | यथा :-
*जात पवनसुत देवन देखा !*
*जानइं कहुँ बल बुद्धि विशेषा !!*
*सुरसा नाम अहिन्ह कर माता !*
*पठइन्ह माता आइ कही तेहि बाता !!*
विचार कीजिए कि यदि देवता आपके बल पौरुष को जानते होते या आपका बल पौरुष *रामदूत* बनने के पहले प्रसिद्ध होता तो ऐसा कदापि न करते |
*राक्षस भी आप के बल पौरुष को नहीं जान पाये*
क्योंकि यदि राक्षसराज *रावण* आप के बल पौरुष को जानता होता तो अपने प्राण गंवाने के लिए *अक्षय कुमार* को ना भेजता , अपनी *लंका* को आग ना लगवाता , लंका के निशाचर यदि आप के बल पौरुष को जानते होते तो आपको बंधन में देख कर के हँसी ना उड़ाते | जैसा कि बाबा जी ने लिखा है :- *बाजहिं ढोल देहिं सब तारी*' जब आप *रामदूत* बने तब सबने आपके बल प्रताप को जाना | इस प्रकार *श्री हनुमान जी* आप *रामदूत* बनने के बाद ही *तिहुं लोक उजागर* हुये |
*श्रीराम* के जीवन काल में आप *रामदूत* बन करके संसार का कल्याण करते रहे | आज जब *कलियुग* चल रहा है , *श्री राम* का परमधाम गमन हो गया है परंतु आप इस धरा धाम पर तीनो लोक में अभी भी विराजमान हैं | तो क्या आज भी *रामदूत* का कार्य हनुमान जी के द्वारा किया जा रहा है ?
*आइए इस पर थोड़ा चिंतन करते हैं !*
मेरा स्वयं का विचार यह है कि आज भी *हनुमान जी* अपने *दूत* के कर्म को कर रहे हैं | अब विचारणीय विषय यह है कि *कलियुग* में *हनुमानजी* यह *दौत्य कर्म* किसके मध्य कर रहे हैं ? तो उसका उत्तर यही होगा कि :- आज *हनुमान जी* भक्तों एवं भगवान के बीच में *दूत* का कार्य कर रहे हैं | क्योंकि :- *हनुमान जी* का कार्य है *रामजी* का संदेशा भक्तों को सुनाना और भक्तों का संदेश *राम जी* को सुनाना | क्योंकि पहले भी यह देखा जा चुका है किसी को भी *राम जी* तभी मिले हैं जब *हनुमान जी* ने संदेश दे कर के दर्शन देने का निवेदन किया | जैसे :- प्रथम मिलन में सुग्रीव का संदेशा दिया :-
*नाथ सैल पर कपिपति रहई !*
*सो सुग्रीव दास तव अहई !!*
भक्त का संदेशा भगवान को *हनुमान जी* ने दिया तभी *श्री राम* ने सुग्रीव जैसे भक्त को दर्शन दिया | उसके आगे *सीता जी* जब भगवान *राम* के दर्शनों को व्याकुल हो रही थी तब *सीता जी* का संदेशा लंका से लेकर स्वयं *हनुमान जी* भगवान *श्री राम* के पास पहुंचे और भगवान *श्री राम* से कहा :- *बेगि चलिअ प्रभु आनिअ भुजबल खल दल जीत"* यहां पर भी भक्त अर्थात *सीता जी* का संदेश भगवान अर्थात *श्री राम* को सुना कर के *रामदूत* का ही कार्य किया | यहां तक की *भरत एवं श्री राम* के बीच में भी संदेशवाहक का काम *हनुमान जी* ने किया |
आज भी यदि भगवान *राम* की प्राप्ति होती है तो उसके पहले ही भगवान *राम* को *हनुमान जी* के द्वारा संदेश मिलता है | *तुलसीदास जी* को भी पहले *हनुमान जी* ही मिले तब *हनुमान जी* के निवेदन पर उनको भगवान *श्रीराम* ने दर्शन दिया | कहने का सीधा सा अर्थ है कि *श्रीराम* को पकड़ने के लिए या *श्रीराम का दर्शन* करने के लिए पहले *रामदूत* की शरण में जाना होगा क्योंकि *रामदूत हनुमान जी* का संदेश पाकर ही *श्री राम जी* अपनी कृपा भक्तों पर करते हैं | इसीलिए तुलसी बाबा ने *हनुमान जी* को *"तिहुँ लोक उजागर रामदूत* कहा |
*शेष अगले भाग में :-----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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