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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *सत्रहवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*सोलहवें भाग* में आपने पढ़ा :--
*राम दूत*
अब आगे:---
*अतुलित बल धामा ! अञ्जनिपुत्र पवनसुत नामा !*
के अन्तर्गत :---
*अतुलित बल*
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*श्री राम जी का दूत* बनकर *हनुमान जी* के बल का वर्णन नहीं किया जा सकता है | *हनुमान जी* बली हैं परंतु कितने बली हैं यह नहीं कहा जा सकता है | *बल*;की मात्रा या उसकी उपमा तब दी जाती है जब *बल* की सीमा का कोई माप हो | संसार में आने को *बलवान* योद्धा हुए हैं परंतु सबके *बल* की सीमा निर्धारित कर दी गई है | जैसे :- *महाबली भीम* को *महाबली* कहा जाता था परंतु उनके भी *बल* की सीमा थी कि *दस हजार हाथियों का बल* उनके अंदर समाहित था | इसी प्रकार *रावण* भी बहुत बड़ा *बलवान* था उसने भी कैलाश पर्वत को उठा लिया था परंतु भगवान शिव के अंगूठे के भार से उसका हाथ भी कैलाश के नीचे दब गया इसलिए उसके *बल* की भी तुलना हो गई | अर्थात जितने भी *बलवान* योद्धा हुए हैं सब के *बल* की माप या उसकी सीमा निर्धारित की गई है परंतु *हनुमान जी का बल* अतुलनीय है | आज तक हनुमान जी के *बल* को तोला नहीं जा सका है , इसलिए तुलसीदास जी ने लिख दिया *अतुलित बल धामा*
*हनुमान जी के बल* का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जब वह लंका जाने के लिए समुद्र लांघने को तैयार हुए तो उन्होंने जामवन्त जी से कहा था कि यदि आप कहें तो *आनहुँ इहां त्रिकूट उपारी* | विचार कीजिए क्या *त्रिकूट पर्वत* को उखाड़ कर समुद्र के इस पार ले आना साधारण *बलवान* के बस की बात थी | जी नहीं ! *हनुमान जी के बल* का वर्णन कर पाना सूर्य को दीपक दिखाना है | जिनके चरणों के भार से बड़े-बड़े पर्वत पृथ्वी में धंसे जा रहे थे | यथा :--
*जेहि गिरि चरन देइ हनुमंता !*
*चलेउ सो गा पाताल तुरंता !!*
ऐसे अतुलनीय बलशाली *हनुमान जी* के बल की तुलना भला कैसे की जा सकती है ? *हनुमान जी* के लिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसीलिए *अतुलित बल धामा* लिख दिया है |
तुलसीदास जी कहते हैं कि *हे हनुमान जी* आपके *बल* को कौन नाप सकता है क्योंकि आप *रामदूत* हैं और यह प्रसिद्ध है कि *दूत* के पीछे *स्वामी का बल* होता है | अखिलाखिल ब्रह्मांड नायक का *बल* जिसके पीछे हो उसके *बल* की तुलना कैसे हो सकती है | इसलिए बाबा जी ने पहले *रामदूत* लिखा उसके तुरंत बाद लिख दिया *अतुलित बल धामा*
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*बलधामा*
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हमने *बल* शब्द का अर्थ शब्द करते समय दोनों और उपयोग किया था | *अतुलित बल* व *बलधामा* | क्योंकि यहां *बल* का संबंध दीप देहली न्याय से उभयत: प्रकाशक है | *बलधामा* अर्थात बल के धाम | *बल* जहां निवास करता है अर्थात जहां से सब को *बल* मिलता है | मिलता कितना *बल* है ?? तो कहा गया *अतुलित बलधामा* अर्थात बल के ही धाम नहीं बल्कि *अतुलितबलधामं* है क्योंकि *हनुमान जी रामदूत है*
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*अंजनिपुत्र*
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महर्षि गौतम की कन्या *अंजना* के गर्भ से आपका जन्म हुआ | यह कथा प्रसिद्ध है इसलिए इस पर ज्यादा व्याख्या नहीं करना चाहता हूं | केवल माता का नाम ही दिया है कि आप *अंजना के पुत्र* हैं | यह नाम गिनाने में यह भाव है कि आपको तपस्या , एकांत , ब्रम्हचर्य , ब्रह्मवर्चस्व *माता के पारिगर्भिक संस्कार* में ही मिला है |
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*पवनसुत नामा*
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*हनुमान जी* आपका नाम *पवनसुत* है अर्थात वास्तव में आपकी जननी तो *अंजनी* है किंतु नाम *पवनसुत* प्रसिद्ध है |
*ऐसा क्यों ??*
*बल* को देखकर | *बल* का धाम पवन ही होता है | *(विस्तार से देखिए पवन कुमार की व्याख्या में )* यहां भी *बल* का प्रसंग है अत: एक ओर *राम दूत* कहा दूसरी और *पवनसुत* का संपुट देकर बताया कि *बल* दो ही कारण (स्रोत) है | एक *भगवान श्री राम* और दूसरे *पवन देवता* इसलिए यहां *पवनसुत नामा* की उपमा दी गई है |
*शेष अगले भाग में :-----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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