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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *अठारहवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*सत्रहवें भाग* में आपने पढ़ा :
*अतुलित बल धामा ! अञ्जनिपुत्र पवनसुत नामा !*
अब आगे :---
*महावीर विक्रम बजरंगी*
के अंतर्गत
*महावीर*
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सकल सृष्टि में अनेकों *वीर* है जिनकी कथाएं हमको पढ़ने को मिलती हैं ! *वीर* किसे कहा जाता है ?? इसकी कई श्रेणियां हैं |जैसे :- *धर्मवीर* (युधिष्ठिर) *रणवीर* (अर्जुन) *बलवीर* (भीम) *दानवीर* (कर्ण ) आदि | कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि *वीर* वही है जो संकल्पित होकर धर्म युद्ध से प्राण शेष रहते विमुख ना हो | यदि गोस्वामी तुलसीदास जी की दृष्टि से देखा जाय तो *वीर* वही है जो संसार को अकेला ही जीत सके | जैसा कि उन्होंने अपने *मानस* में लिखा भी है :--
*महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो वीर*
ऐसे ही *वीर* को अपना जामाता बनाने के लिए महाराज जनक ने *धनुष यज्ञ* की योजना बनाई थी | धनुष भी साधारण नहीं था | उसे *भव चाप* कहा गया था | *भगवान शंकर* को भी *भव* कहा जाता है और यह *संसार* भी *भव* है | इस प्रकार वह धनुष केवल मात्र वही उठा या तोड़ सकता था जिसमें संपूर्ण विश्व से अधिक *बल* हो और भगवान श्री राम जी के अतिरिक्त कोई ऐसा व्यक्ति था ही नहीं | परंतु उस सभा में *भगवान श्रीराम* को बालक समझ लिया गया | जब *भगवान श्रीराम* को कोई जान न पाया तो धनुष भी नहीं खण्ड हुआ , और महाराज जनक को कहना पड़ा :-- *" वीर विहीन मही मैं जानी"*
*भगवान श्री राम वीर भी थे* और वहां उपस्थित भी थे तो एक *वीर* के होते हुए *वीर विहीन मही* की घोषणा कैसे की जा सकती है | यही मन में विचार आते ही लक्ष्मण जी तुरंत खड़े होकर की उसका विरोध करने लगे | गुरुदेव विश्वामित्र की आज्ञा पाकर *भगवान श्रीराम* उस धनुष के पास पहुंचे जिस धनुष के लिए कहा जा रहा था कि :--
*भूप सहस गस एकहिं बारा !*
*लगे उठावन टरइ न टारा !!*
उसी धनुष को एक *वीर* की भांति *भगवान श्रीराम* ने :-- *"अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा'* इतना ही नहीं बल्कि :--
*"लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़े !*
*काहुँ न लखा देखि सब ठाढ़े !!*
धनुष कब उठा ? कब प्रत्यंचा चढ़ाई ? और कब दो खंड में नीचे गिर पड़ा कोई जान ही नहीं पाया | इतना करने के बाद *भगवान श्री राम* विश्व विजई हो गये | गोस्वामी बाबा ने लिखा भी :- *"विश्वविजय जस जानकि पाई"* इसीलिए *भगवान श्रीराम* को *वीर* कहा गया | संसार में उस समय एक ही *वीर* थे *भगवान श्री राम* | क्योंकि सीता हरण के समय विलाप करते हुए सीता जी घोषणा करती हैं :- *हा ! जग एक वीर रघुराया !* अर्थात इस संसार में एक ही *वीर* हैं और वह है रघुनाथ जी |
यहां चर्चा *हनुमान जी* की एवं *महावीर* की हो रही है कि *हनुमान जी को महावीर क्यों कहा गया ?*
*महावीर* कहने का अर्थ यह है कि जो *विश्व विजई वीर* को भी अपने अधीन अर्थात बस में कर ले वही *महावीर* कहलाने का अधिकारी है | विचार कीजिए कि वह कौन है ?? इसके लिए *मानस* का अवलोकन करना पड़ेगा जहां पर स्पष्ट लिखा हुआ है :---
*सुमिरि पवनसुत पावन नामू !*
*अपने बस करि राखे रामू !!*
जो *विश्व विजयी वीर* मर्यादा पुरुषोत्तम *श्री राम को* भी अपने बस में कर ले वही है *महावीर* अर्थात *हनुमान जी* |
*हनुमान जी* सर्वत्र विजई व प्रत्येक दृष्टिकोण से *वीर* हैं | एक दृष्टिकोण से *विश्व विजयी वीर* होता है तो सर्वत्र सर्वदृष्टियों से जो *वीर* हो या *वीर* को भी अपने आधीन कर ले या अपनी गरिमा के कारण किसी *वीर* को अपदस्थ कर दे वह *महावीर* ही कहलाएगा | इसलिए तुलसीदास जी ने यहां हनुमान जी के लिए *महावीर* लिखा है |
*शेष अगले भाग में :-----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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