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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *तेइसवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*बाईसवें भाग* में आपने पढ़ा :
*कानन कुंडल कुंचित केशा*
अब आगे:--
*हाथ वज्र औ ध्वजा विराजेे*
*काँधे मूँज जनेऊ साजे !*
*हाथ वज्र*
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इसके पूर्व *तुलसीदास जी* ने *हनुमान जी* को *बजरंगी* कहा अर्थात जिसका सारा शरीर *वज्र* का है | जब सारा शरीर ही *वज्र* का है तो हाथ तो *वज्र* का होगा ही | तब हाथ में अन्य *वज्र* की आवश्यकता ही कितनी है ? जब भी *हनुमान जी* को प्रहार या अभिघात करने की आवश्यकता होती है तो वे किसी अन्य अस्त्र-शस्त्र की अपेक्षा अपनी *मुष्टिका* का प्रहार ही करते हैं | जब हल्का प्रहार करना होता है तो हाथ का सीधा प्रहार नहीं करते बल्कि किसी अन्य वस्तु का प्रहार करते हैं क्योंकि अन्य सभी वस्तुएं *हाथ वज्र* से कोमल हैं | *हनुमान जी* के हाथ का प्रहार *वज्राघात* की भांति ही होता है | उन्होंने *मुष्टिका* का प्रहार जब किया तो लंकिनी रक्त का वमन करते हुए गिर पड़ी | यथा :-
*मुठिका एक महाकपि हनी !*
*रुधिर वमत धरनी ढनमनी !!*
सिंहिका को भी *मुष्टिका* प्रहार से ही मारा , और जब हल्का प्रहार करना हुआ तो मेघनाथ को *मुष्टिका* का प्रहार ना करके *अति बिसाल तरु एक उपारा ! बिरथ कीन्ह लंकेश कुमारा !!* वहीं जब हनुमान जी अशोक वाटिका में वृक्षों उखाड़ रहे थे तब निशाचर नहीं डरे , परंतु जब *मुष्टिका* का प्रहार हुआ तो *मुष्टि प्रहार हनत सब भागे* और उसी *मुष्टिका* प्रहार से *कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलयेसि धरि धूरि !* और जो बचे वह भागकर रावण के पास गए | *मेघनाथ* इंद्र को जीतने वाला था वह *बज्र* के प्रहार को जानता था कि *बज्र* का प्रहार अमोघ होता है और वह यह भी जानता था कि हनुमान जी का *हाथ स्वयं बज्र* है इसीलिए वह दूर से ही हनुमान जी से युद्ध करता था | जैसा कि बाबा जी ने लिखा है *बार-बार पचारा हनुमान ! निकट ना आव मरम सो जाना !!* अर्थात वह हनुमान जी के *हाथ को वज्र* के समान मान करके उसके प्रहार से बचता हुआ घूम रहा था | इसीलिए बाबा जी ने हनुमान जी के लिए *हाथ वज्र* लिखा |
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*वज्र औ ध्वजा*
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यहां *तुलसीदास जी* ने *हनुमान जी* के हाथ में दो वस्तुओं का वर्णन किया है एक *वज्र* और दूसरी *ध्वजा* | जिस प्रकार वीरों की शोभा शस्त्र धारण करना है उसी प्रकार एक वीरव्रती का ध्येय भी होता है | इसी व्रत की रक्षा के लिए सदैव सावधान रहने का प्रकाशन शस्त्रास्त्र भूषण होता है | एक हाथ में संकल्प *ध्वजा* व दूसरे में क्रिया का प्रतीक *वज्र* धारण करना कह कर हनुमान जी का अपने संकल्प में सावधान रहना बताया गया है | किसी भी राष्ट्र या धर्म का कीर्ति चिन्ह उसकी *ध्वजा* ही होती है | प्राचीन परंपरा से ही अब तक *ध्वज* जिससे संबंधित होता है उसका समूचा अहं *ध्वजचिन्ह* में अध्यारोपित होता है | *ध्वज* का गिरना , झुकना , कटना आदि संबंधित राष्ट्र , धर्म या व्यक्ति के लिए अत्यंत अशुभ माना जाता है | अत: *ध्वज* का रक्षण प्राण प्रण से करना विधि है | रक्षा के लिए सर्वोत्कृष्ट दृढ़ रक्षण व्यवस्था परमावश्यक है | श्री राम कीर्ति *ध्वज* को ही *श्री हनुमान जी* थामे हुए हैं क्योंकि इस *कीर्ति ध्वज* के रक्षण के लिए यही हाथ समर्थ है , इसी विश्वास के साथ भगवान ने अपना *ध्वज* हनुमान जी को थमा रखा है | धर्मरथ के वर्णन में भगवान वीर की *ध्वजा* सत्य को बताया है | यथा :- *सत्य शील दृढ़ ध्वजा पताका* अर्थात सत्य की रक्षा प्रत्येक धर्मवीर के लिए कर्तव्य है | सत्य को संभाले रखना आसान नहीं है , माया उसे कहीं न कहीं कभी न कभी धोखा भी देती है , परंतु हनुमान जी ने इसी *ध्वजा* को अपने हाथ में संभाल कर रखा है , अर्थात सत्य की रक्षा कर उसे दृढ़ता से *हनुमान जी* ने संभाले रखा है | ध्यान रहे महाभारत में भी अर्जुन की रक्षा विजय के लिए उसकी *ध्वजा* की रक्षा कृष्णावतार में भी भगवान ने इस कार्य के लिए *हनुमान जी* को ही चुना था
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*विराजे*
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*विराजे* अर्थात विशेष रूप से शोभित है | संसार की सभी वस्तुएं उपयुक्त देश में ही शोभा देती है | अत्यंत सुंदर वस्तु भी अनुपयुक्त देश में दूषित एवं हास्यास्पद हो जाती है | जितना शक्तिशाली शास्त्रास तो होगा वह उसी स्तर के योग्य व्यक्ति के पास शोभित होगी | भीत एवं दुर्बल व्यक्ति के पास शस्त्र अस्त्र निरीक्षण एवं मूर्ख के पास वेदों के भाष्य कितने शोभा पाएंगे ? यह स्वयं विचार कीजिए | कहने का अभिप्राय है कि अधिकारी के पास ही वस्तु शोभा पाती है | *बज्र एवं ध्वजा* दोनों ही *हनुमान जी* के पास शोभा पाते हैं क्योंकि आप दोनों के सक्षम अधिकारी हैं | शक्ति का प्रतीक जो देवताओं के राजा इंद्र के पास रहता है वह *वज्र* एवं राम कीर्ति यश *ध्वजा* दोनों वीरता एवं ज्ञान की पराकाष्ठा के कारण विशेषत: शोभा पाते हैं | सामान्य शोभा तो सामान्य वीर के पास भी है किन्तु *महावीर* के पास होने से *वि=विशेषत: , राजे = शोभित है !*
इसीलिए *विराजे* लिखा है |
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*कांधे मूंज जनेऊ साजे*
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कंधे पर *मूंज की जनेऊ* शोभा पा रही है | मूंज सरकंडे नामक वनस्पति "क्षुप" के तने की वक्कल को पीटकर उसके रेशों को बटकर मूँज बनाई जाती है , इसी मूंज की जनेऊ ब्रह्मचारी को धारण कराई जाती है | *कांधे मूंज जनेऊ साजे* कहकर *हनुमानजी* को ब्रह्मचारी एवं व्रतधारी कहा गया है | *मूंज जनेऊ* से स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि *हनुमान जी* बाल ब्रह्मचारी तो हैं ही साथ ही वैदिक कर्मानुष्ठान के प्रति भी श्रद्धालु हैं |
*शेष अगले भाग में :-----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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