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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *चौबीसवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*तेईसवें भाग* में आपने पढ़ा :
*हाथ वज्र औ ध्वजा विराजेे*
*काँधे मूँज जनेऊ साजे !*
अब आगे:----
*शंकर सुवन केसरी नंदन*
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*शंकर सुवन*
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सोहन एवं सुन आदि शब्दों का अभिप्राय पत्र से ही होता है प्रत्येक शब्द के प्रयोग में उसके भाव अनुसार अर्थ भी होते हैं यहां पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने शंकर शंकर कर हनुमान जी को शंकर जी का पुत्र का हक भगवान के चरित्र विचित्र एवं गुण होते हैं लीला रहस्य में होती है कल भेज से लीला स्वरूप में भी अब किंचित अंतर भी आ जाता है सब का मिश्रण कथाओं में इसे और भी विविधता की ओर ले जाता है इस प्रसंग में भी कल बघेल से कुछ बीबीसी तानी सुनी जाती जैसे कि
एक कल्प मी भगवान श्री हरि विष्णु की मोहिनी रूप पर असत्य से भगवान शंकर का वीर्य स्खलन हुआ जिसे अकाउंट तपोवन में साधना रतन अंजनी के गर्भ में दीक्षा के बहाने करण मार्ग से मुनि भी सुधारी ईश्वर से उसे वीर को स्थापित कर दिया इस प्रकार शंकर सुवन पुरवा केसरी के क्षेत्र पुत्र कहलाए
किसी कल्प मी मैं गुंजा का स्थली नामक अप्सरा जब शराब बस कुंजर वानर की कन्या अंजनी हुई तो उसके मानव विवेक बिहार भ्रमण के समय पवन द्वारा वैदेही संपर्क तो गर्व से हनुमान जी की उत्पत्ति हुई कल तो भेज से जो भी लीलाएं रही हो किंतु सत्य है कि हनुमान जी के रूप में भगवान शंकर ने अवतार लिया है जो भगवान के अवतार रहस्य को समझता है उसे कोई शंका नहीं रहती है आत्मा वह जायते आत्मा जा से आत्मा ही पुत्र होता है आत्मा का अंश उसी का अवतार होता है श्री रामचरितमानस में भगवान के रामावतार का आश्वासन देने पर सभी देवता भगवान के साथ लीला रमण के उद्देश्य एवं भक्ति सेवा भाव के कारण वानर रूप में अवतरित हुई तथा नर वानर की लीला में सम्मिलित हुए इस अवसर पर जाम की भाग-1 का पूर्ण अवतार चारों विग्रह के साथ हो रहा था तो परम भागवत लीला अनुरागी भगवान शंकर भला कब चूकने वाले थे इन्होंने भी हनुमान जी के रूप में अवतार लिया अपनी आत्मा को अत्यंत खराब करने से लीला स्वरूप उस आत्मा का शुभम ही कहलाता है यथा सूरत ए पर्सन आत्मन सत्यवती श्रवण इसी का रूप श्रवण इसी प्रकार भगवान शंकर की आत्मा का अवतार श्री हनुमान जी की रूप में हुआ तो हनुमान जी संकट फोन कहलाए भगवान शंकर के अवतार के प्रसंग में हमारे धर्म ग्रंथों में कई प्रमाण मिलते हैं यथा वायु पुराण में लिखा हुआ है
*आश्विनस्यासिते पक्षे स्वात्यां भौमे च मारुति: !*
*मेष लग्न$ञ्जनागर्भात् स्वयं जातो हर: शिव: !!*
हनुमान जी की भगवान शिव का अंश अवतार होने की अन्य प्रमुख प्रमाण भी हमें सनातन के धर्म ग्रंथों में देखने को मिलता है जैसे कि
*बालैक ब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्ति धराय च !*
*विहंगमाय सर्वाय वज्रदेहाय ते नम: !!*
(श्रीसुदर्शन संहिता)
*ॐ तव श्रिये मरुतो मर्जयन्त रुद्र यत्ते जनिम चारुचित्रम् !*
*पदं यद् विष्णोरूपमं निधायि तेन पासि गुह्यं नाम् गोनाम् !!*
(ऋक्संहिता ९/७१/२)
*मकाराक्षर सम्भूत: शिवस्तु हनुमान स्मृत:*
(तारसारोपनिषद २/२)
उपरोक्त सभी कटनी सिद्ध करते हैं शंकर जी स्वयं हनुमान थे अर्थात शंकर जी के अंश से ही हनुमान जी का जन्म हुआ था मेरा विचार है कि श्री हनुमान अवतार में औरत क्षेत्र जा तन नंदन पालन तथा सांवरलाल आज नैमित्तिक कुछ भी कारण कल फिर से रहे हो परंतु मूल रूप से भगवान शिव की मान मर्यादा 10 लीला पुरुषोत्तम श्रीराम की समीक्षा की उन्हें हनुमान रूप में अवतरित होने का कारण बनी भगवान शिव मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का स्वामित्व पाने के लिए शंकर सुमन के रूप में हनुमान का शरीर धारण किया यथा
*"श्रीराम रूप सामीप्याय यदा शंकर: आत्मान्म स्रवति सृजति वा तदैव "शंकर सुवन" इति उच्यते"*
इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में हनुमान जी को शंकर वन लिखना ही उचित समझा
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*केशरी नन्दन*
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केसरी नाम से प्रसिद्ध सुमेर के राजा धर्म साधु एवं सब पुरुषों की सहायता में सदैव संलग्न रहते थे एक बार बद्रिकाश्रम में भी चढ़ते समय इन्होंने तपस्या की प्राण रक्षा एक भयंकर राक्षस से की तो उन मुनियों ने आशीर्वाद स्वरुप को वरदान दिया कि साधु-संतों के रक्षक के रूप में तुम्हें आनंद देने के लिए भगवान शिव स्वयं तुम्हारे पुत्र रूप में अवतार लेंगे इसी वरदान को प्रमाण देने के लिए हनुमान जी अंजनी के गर्भ से जो कि कपिराज केसरी की पत्नी थी उनके क्षेत्र के पुत्र शंकर के साथ सुमन एवं केसरी के साथ नंदन शब्द लगा है इन शब्दों का बड़ा गूढ़ रहस्य है इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि शंकर के साथ केवल आत्मानम श्रवण संबंध है वह केसरी के साथ पुत्र नंद दायक नंदन संबंध है शंकर नंदन नहीं है क्योंकि शंकर तो स्वयं ही हैं इनका आनंद संबंध यदि आत्मा के संबंध से हो तो नित्य ब्रह्मानंद या आत्मानंद में लीन रहते ही हैं उन्हें सुमन की क्या आवश्यकता रहती है किंतु इन्हें तो रामलीला का आनंद लेना है अतः इनके लिए तो राम चरित्र ही नंदन अर्थात आनंद देने वाले हैं हां स्वयं लीला अवतार धारण कर पिता की आनंद का कारण होने से पिता के लिए नंदन अवश्य पिता केसरी को बनाया तो केसरी नंदन केसरी नहीं क्योंकि केसरी का आक्रमण या नहीं है संबंध शंकर के साथ तथा आनंददायक नंदन रूप संबंध केसरी के साथ बताने के लिए ही गोस्वामी तुलसीदास जी ने शंकर सुवन केसरी नंदन लिखा
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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