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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *पच्चीसवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*चौबीसवें भाग* में आपने पढ़ा :
*शंकर सुवन केसरी नंदन*
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अब आगे :----
*तेज प्रताप महा जगवन्दन*
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*तेज*
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*तेज व प्रताप* किसी-किसी प्रसंग में समानार्थक भी होते हैं | सामान्यतः *तेज* का अभिप्राय है :- शोभा , दीप्ति , प्रकाश , कांति , छवि , प्रभाव आदि | शरीरगत धातुओं वीर्य का पाचन होता है तो उससे *ओज व तेज* बनता है | इसी से देह कांति , छवि , सौन्दर्यात्मक आकर्षण या मोहक रूप धारण करती है | मुख्यतः शुक्र या वीर्य की तीन गतियां मानी गई है :- *ऊर्ध्व , अध: एवं तिर्यक* | *अध:गति* में वीर्य स्खलन , नष्ट या सन्तानोत्पत्ति का कारण होता है | *तिर्यकगति* में शारीरिक बल , स्फूर्ति एवं धातु पोषण के साथ आयुवर्धक होता है | *ऊर्ध्वगति* में तेज , ऋतम्भरा , प्रज्ञा व दिव्य शक्तियों , यौगिक , अद्भुत सिद्धियों का कारण बनता है | *श्री हनुमान जी* महावीर्यवान एवं *ऊर्ध्वरेता* होने से इनके *तेज* को भी महा कहा गया है | विश्व में गोचर तेजस्वी पदार्थों में *सूर्य* से अधिक तेजस्वी कोई नहीं है | बचपन में ही *सूर्य* को मुंह में रखने वाले तेजस्वी का *तेज* कितना होगा ? उसकी उपमा न देकर *महा* विशेषण देना ही उपयुक्त है | सभी देवताओं ने पवन - प्राण के प्रत्यर्थ जो वरदान दिए उसी वरदान में *भगवान सूर्य* ने भी कहा था कि मेरे *तेज* का सौंवां भाग इसमें मेरी ओर से नित्य रहेगा !
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*प्रताप*
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*तप* से आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है | शक्ति , ऊर्जा आदि वह दिव्य तपन ही है जो *तपसाधन* की क्रिया का परिणाम होता है | *तप* से उत्पन्न प्रभाव अपत्यार्थ में *ताप* हो जाता है | इस *ताप* ऊष्णता , उर्जा की सीमा का प्रभाव क्षेत्र उस *तप* के परिमाण पर निर्भर करता है | इस शक्ति की प्रकृष्टता ही *प्रताप* होती है | प्र उपसर्ग के साथ *प्रताप* शब्द का मूल भाव *तपी* व्यक्ति के प्रभाव को ही व्यक्त करता है | राजा को *तपस्वी* होना इसलिए आवश्यक माना गया है कि उसके प्रशासन क्षेत्र में उसका *प्रताप* व्याप्त रहे , जिससे दुष्टों , असामाजिक तत्वों को भय और सज्जन प्रजाजनों को शांति प्राप्त हो | जहां राजा या प्रशासक का *तपस्वी* नहीं होता वहां इन सब बातों का अभाव होने से प्रजा कष्ट में रहती है | शास्त्रों में ऋषियों के वचन मिलते हैं कि राजा जब सोता है तो उसका *प्रताप* जागता है |
*तेज व प्रताप दोनों के महान उदाहरण देखिए :--*
*तेज* इतना महान है कि *बाल समय रवि भक्षि लियो* | बाल्यावस्था में जब *सूर्य* को मधुर फल समझा गया व *सूर्य* की ओर *हनुमान जी* लपके तो *राहु* भी अपनी मर्यादा के अनुसार *सूर्य* की ओर आ रहा था | उस समय *राहु* को *हनुमान जी* का परिचय नहीं था किंतु *हनुमान जी* के तेज से त्रस्त हो इनके पास से भाग गया | पूर्व परिचय से पहचान कर भय से भागता या नाम सुनकर भागता तो *प्रताप* कहा जा सकता था किंतु अपरिचित अवस्था में *तेज* को न सहन करने के कारण ही जो परिणाम हुआ वह *तेज* की महानता का उदाहरण है |
जब नाम के साथ उसके बल , वीर्य के प्रभाव का विस्तार हो गया तो लंका में *प्रताप* का उदाहरण देखा जा सकता है | स्वेच्छा से योगविशिष्ट क्रिया द्वारा अपना *तेज* छुपाये हुए यह तो यह थी कि नागपाश में बांधे , पूंछ पर स्नेहासिक्त वस्त्राच्छादन किए हुए बाजार में घुमाया जा रहा था तो *"बाजहिं ढोल देहिं सब तारी* और लंका जलाने के बाद उनके *प्रताप* का प्रभाव तब देखने को मिला जब *अंगद* दूत बनकर आए तो लंका वासियों की आंखों में *हनुमान जी* का ही स्वरूप उतर आया | कोई ना पहचानता था कि कौन है ? *हनुमान जी* के *प्रताप* का लाभ *अंगद* को यह मिला कि :---
*जेहि देखहिं सोई जाइ सुखाई !*
*बिनु पूंछे मग देहिं देखाई !!*
रावण के प्रताप स्थल लंका में उसके ही पुत्र को मार देने के बाद भी कोई इसकी चर्चा कर साक्षी नहीं बनना चाहता था | जैसा कि *मानस* में लिखा है :--
*समुझि तासु वध चुप करि रहहीं !*
*एक एक सन मरमु न कहहीं !!*
यह *हनुमान जी के प्रताप* का ही प्रभाव था कि *अंगद जी* के लंका पहुँचने पर वहाँ घर घर में यदि कोई समाचार था तो यह था कि :-- *आवा कपि लंका जेहि जारी* | इस प्रकार *हनुमान जी का प्रताप* इतना व्याप्त हो गया था कि यमादि देवताओं को भी अपने अधीन रखने की क्षमता रखने वाले रावण से सुरक्षित नगरी की राक्षस पत्नियों की स्थित देखिए :--
*सुमिरि पवनसुत अद्भुत करनी !*
*स्रवहिं गर्भ रजनीचर घरनी !!*
त्रेता से लेकर आज भी *हनुमान जी के प्रताप* की महानता है कि *भूत पिशाच निकट नहीं आवैं ! महावीर जब नाम सुनावैं !!* इस प्रकार *तुलसीदास जी* महाराज ने *हनुमानजी* के लिए *तेज प्रताप महा* लिखना ही उचित समझा |
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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