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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *छब्बीसवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*पच्चीसवें भाग* में आपने पढ़ा :
*तेज प्रताप महा जगवन्दन*
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के अन्तर्गत *तेज व प्रताप*
अब आगे :---
*महा जगवन्दन*
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*महा*
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तुलसीदास जी ने *हनुमान जी* के लिए *महा* शब्द का प्रयोग किया है यथा *महा जगबंदन* महा लिखकर के उन्होंने *हनुमान जी* को साक्षात *भगवान शिव* बताने का प्रयास किया है | क्योंकि *महा* की उपाधि गुणवाचक नाम के साथ ही दी जाती है अन्यत्र नहीं | जैसे *महा + देव* = महादेव , *महा + ईश* = महेश , *महा + ईश्वर* = महेश्वर , *महा + काल* = महाकाल आदि | *हनुमान जी* के गुणों के साथ *महा* शब्द लिख करके तुलसीदास जी ने *हनुमान* जी को साक्षात *शंकर जी* होने का संकेत किया है |
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*जगवन्दन*
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*जग बंदन* अर्थात जगत के लिए वंदनीय या यूं कहा जाए कि सारा संसार जिसे नमन करता हो | *तेज प्रताप महा जग बंदन* में *महा* शब्द पूरी अर्धाली के मध्य होने से दीप देहली न्याय से जहां *तेज प्रताप* के साथ विशेषण का कार्य करता है वहां *जग* की भी विशिष्टता को प्रकाशित करता है | आशय है कि *जग* भी कोई छोटा नहीं है *महाजग* है | फिर भी उसके लिए आप वन्दन योग्य हो | अतः *हे हनुमान जी* आप कितने महान हो | आप *महादेव* हो , *महेश* हो आपका *तेज व प्रताप* भी महान है अतः जगत के लिए भी महान वंदनीय हो | सूर्य तीनों लोको को प्रकाशित करता है व तीनों (भू: भुव: एवं स्व:) लोकों के लिए वंदनीय है किंतु आप महर्लोंक (मह:लोक) के लिए भी वन्दनीय हो | अतः *महा जग बंदन* लिखना ही उचित समझा |
*जग* का एक अर्थ *वायु* भी होता है भावार्थ में प्राण अर्थात वायु *महाजग अर्थात महाप्राण* | महान *तेज एवं प्रताप* से युक्त हे *महाप्राण* मैं आपकी वंदना करता हूं | *श्री हनुमान जी* पवन पुत्र हैं | पवन उनचासों मरुतों के एक तंत्र अधिष्ठातृ हैं | *प्राण* इसी पवन का अंश है | मनुष्य के देहगत *प्राण* भी दस विभागों में स्थान एवं कार्य के दृष्टिकोण से विभक्त है *प्राण , अपान , समान , उदान व व्यान महाप्राण* व *कृकल , देवदत्त , धनंजय , नाग एवं कूर्म आदि उपप्राण* कहलाते है | *महाप्राण* जगज्जीवनाधार प्राणिमात्र के लिए है | प्राणी मात्र ही जन्म मृत्यु रूप संसार चक्र का स्वरुप है | *जग = पवन = प्राण महाजग = महाप्राण* स्वरूव पवन देव के अंश जात को वंदन नमन हो | अर्थात *महा जगबंदन*
*हे हनुमान जी* यद्यपि आप *शंकर सुवन* तथा *तेज प्रताप केसरी नंदन* हैं तथापि जगत को आप महान एवं सिद्धांततः वन्दनीय मानते हैं क्योंकि *श्री हनुमान जी* अनन्य भक्त हैं | व भगवान राम का अनन्य भक्त की परिभाषा में उपदेश किया गया है कि :--
*सो अनन्य जाके असि मति न टरइ हनुमंत !*
*मैं सेवक चराचर रूप स्वामि भगवंत !!*
यद्यपि व्यावहारिक सत्य से कर्म का स्वरूप निर्धारित होता है पर मूल तात्विक ज्ञान की वृद्धि अनन्य भक्ति परक अजस्र रहने का उदाहरण है कि व्यवहार में शत्रु रावण को भी *हनुमान जी* स्वाभाविक रूप से दो बार मानस में प्रभु व स्वामी शब्द से संबोधित करते हैं | यथा :--
*खायऊँ फल प्रभु लागी भूखा*
*या फिर*
*सबके देह परम प्रिय स्वामी*
कहने का तात्पर्य यह है कि जो सब में ही परमात्मा का दर्शन करें वही जगत के लिए बंदनीय हो सकता है और *हनुमान जी* ने रावण को भी अपना प्रभु एवं स्वामी कहीं करके यह उपाधि प्राप्त कर ली | इसीलिए *तुलसीदास जी* महाराज जी को *महा जगवंदन*
*हनुमान जी* के लिए लिखना पड़ा |
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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