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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *सत्ताइसवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*छब्बीसवें भाग* में आपने पढ़ा :
*तेज प्रताप महा जगवन्दन*
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अब आगे:----
*विद्यावान गुणी अति चातुर*
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*विद्या* के विषय में हम पूर्व में लिख चुके हैं कि यह *माया* का भेद है किंतु जो *माया* जीव का कल्याण करती है व मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त करती है उसी का नाम *विद्या* है | *माया* का वह भेद जो *जीव* को सृष्टि चक्र में जड़ता की ओर धकेल देता है उसे *अविद्या* कहा जाता है | *माया* के अंतर्गत *विद्या* एवं *अविद्या* का विस्तृत वर्णन किया जा चुका है इसलिए इस पर अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं है | सृष्टि के मिथ्यापन का अजस्र ज्ञान प्रवाह रहते हुए भी सृष्टि लीला बिहार यद्यपि माया का आश्रय प्रकट रहता है पर *अविद्या* जनित नहीं | इस प्रकार व्यवहार का लीला स्वरूप नित्य *विद्यामय* जिसका रहता है वहीं *विद्यावान* है | इसलिए *हनुमान जी* को *विद्यावान* लिखा गया | *हनुमान जी* को *विद्यावान* इसलिए कहा गया क्योंकि वे *ज्ञान गुण सागर* हैं | *विद्या* से ही विवेक उत्पन्न होता है और अपने विवेक का प्रयोग जो सकारात्मक करता है उसे *विद्यावान* कहा जाता है | यदि *हनुमान जी* *विद्यावान* न होते तो उन्हें *ज्ञान गुण सागर* न कहा जाता |
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*गुणी*
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*हनुमान जी विद्यावन है* इसीलिए *गुणी* भी हैं क्योंकि गुण हमेशा विद्या के ही अधीन रहते हैं जैसा कि बाबा जी ने लिखा है :---
*एक रचइ जग गुन बस जाके*
भगवान राम निर्गुण , निराकार , ब्रह्मावतार हैं अतः *गुणी हनुमान जी* *विद्यावान* होकर सर्वदा सन्निकट रहते हैं | ब्रह्मा की स्फुरणा (शक्ति) अव्यक्त अनिर्वचनीय प्रकृति है तो *गुण* उसकी अभिव्यक्ति है | *गुण* जिस में रहते हैं वह शक्ति *गुणी* है | यथा अंश का अस्तित्व अंशी के बिना नहीं उसी प्रकार *गुण* का अस्तित्व *गुणी* के बिना नहीं है | कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार *गुणी* ( प्रकृति ) ब्रह्म का प्रथम विकार होकर निकटतम स्थित का द्योतक है उसी प्रकार पूर्ण ब्रह्म की निकटतम स्थिति *हनुमान जी* को भी निरंतर है | *गुणों* को ही धारण किए रहने वाले आप *गुणी* ही है | अथवा *गुणी अति* या *अतिगुणी* हैं | विधि प्रपंच के *गुणों* में से आप केवल *गुण* ही धारण किए हैं इसलिए *हनुमान जी* आप *गुणी* हैं | *गुण* शब्द का अर्थ सूत्र भी होता है | *हनुमान जी* जीव को भगवान से मिलाने जोड़ने के लिए *गुण* (सूत्र या रस्सी) का स्वरूप होने से भी आप *गुणी* हैं | *विद्यावान गुणी* है अर्थात *विद्या* सूत्र के सूत्रधार हैं *विद्यावान* से ज्ञान का स्वरूप कहकर इसे ब्रह्मवत् कूटस्थ न कहकर *गुणी* से जीवों के कल्याण हेतु क्रिया का स्वरूप बाबा जी ने बताया है | *हनुमान जी* स्वयं की स्थिति में *विद्यावान* व जन कल्याण में *गुणी* हैं |
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*अति चातुर*
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*अति चातुर* अर्थात हे *हनुमान जी* आप अत्यंत चतुर भी हैं | प्रश्न होता है कि *चतुर* कौन होता है ? इसका स्पष्ट उत्तर यही होगा कि जिसे छला न जाय व अपेक्षाकृत अधिक लाभ की वस्तु को एन केन प्रकारेण कम लाभप्रद या हानिप्रद वस्तु के बदले अर्जित करने में दक्ष हो | *श्री* अर्थात *लक्ष्मी* को भी *चतुर* कहा गया है क्योंकि उन्होंने भी सभी देवताओं को छोड़कर केवल *भगवान विष्णु* को ग्रहण किया था |
*अब जानी मैं श्री चतुराई !*
*भजहिं तुम्हहिं सब देव बिहाई !!*
इसलिए *श्री* परम *चतुर* हैं इसी प्रकार *हनुमान जी* को भी *अति चातुर* कहा गया है क्योंकि वे भी भगवान राम को छोड़कर कुछ भी ग्रहण नहीं करते हैं | अपने रोम रोम में राम को धारण किये हुए *हनुमान जी* के द्वारा भगवती सीता की दी हुई माला को भी फोड़ कर देखने की घटना प्रसिद्ध है कि जिस मोती में राम नहीं वो उपहार ग्रहण या धारण करना व्यर्थ है | *हनुमान जी* इसलिए *अति चतुर* है क्योंकि शम्भु स्वरूप से राम भजन के लिए वानर रूप धारण कर लिया पर राम का सानिध्य नहीं छोड़ा | सर्वस्व (असत्य) को त्याग कर सत्य (भजन) को ही अपनाया | स्वयं ने जिस सिद्धांत को भवानी से कहा उसके ग्रहण लोभ में *चतुराई* से वानर बनकर राम सेवा में आ बैठे व भवानी को भी साथ नहीं लाये | शम्भु रुप में सती श्री राम कथा सुनने जाती रही हैं | वहां से आते समय श्रीराम का दर्शन करके वैचारिक व्यवधान हुआ | अतः अबकी बार *चतुर* ठहरे कि वानर रूप में अवतरित ही नहीं हुए बल्कि *अखंड ब्रह्मचर्य* धारण किया जिससे धर्मानुष्ठान या धर्म मर्यादानुसार ( व्यवधान की संभावना स्वरूप )धर्म पत्नी को साथ में रखना ही ना पड़े | वैसे भी बाबा जी ने सयाने एवं *चतुर* की व्याख्या करते हुए लिखा है कि :--
*नीति निपुन सोई परम सयाना !*
*श्रुति सिद्धांत नीक तेहि जाना !!*
*सोइ कवि कोविद सोई रनधीरा !*
*जो छल छाँड़ि भजइ रघुवीरा !!*
*विद्यावान गुणी अति चातुर* अर्थात विद्यामय सूत्रों (धागों को एकत्र कर) *चतुरता* से अति गुणी (रस्सी को धारण करने वाला) बने हैं | जिससे राम जी के चरण हृदय से दृढ़ बंधे रहें | *अति चतुर* इस प्रकार निकले कि जो युक्ति भगवान ने विभीषण को बतायी उसे पास बैठे हुए *हनुमान जी* ने सुनकर काम में ले ली लेकिन विभीषण बेचारा भोला फिर लंका के राज्य में गुम हो गया | भगवान राम ने क्या युक्ति बताई थी ? *ध्यान दीजिएगा:----*
*जननी जनक बंधु सुत दारा !*
*तन धन सहज सुहृद परिवारा !!*
*सबकै ममता ताग बटोरी !*
*मम पद मनहिं बांध वर डोरी !!*
*हनुमान जी* *चतुर* थे इसलिए चुपके से युक्ति सुनी व *सबकै ममता* गुण धागे बटकर *गुणी अति* (अत्यंत शक्तिशाली रस्सी) से राम जी के चरण क्या बल्कि अनुज व सीता सहित बाँधकर रख दिया ! उवके इन्हीं *गुणों* पर बाबा जी को *हनुमान जी* के लिए *विद्यावान गुणी अति चातुर* लिखना पड़ा |
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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