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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *अट्ठाइसवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*सत्ताइसवें भाग* में आपने पढ़ा :
*विद्यावान गुणी अति चातुर*
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अब आगे :---
*राम काज करिबे को आतुर*
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समझना होगा कि *आतुर* शब्द का अर्थ होता है रोगी या दुखी | व्यवहार से जिस भावार्थ में यह प्रयोग होता है वह व्यग्रता के कारण दुखी हो (अति व्यग्र हो ) यहां *हनुमान जी* राम काज करने के लिए *आतुर* रहते हैं | इसके सामान्य तथा निम्नांकित भावार्थ हैं :---
*हनुमान जी* भगवान राम का कार्य करने के लिए सतत व्यग्र रहते हैं | *हनुमान जी* के जीवन का एकमात्र उद्देश्य है भगवान राम का कार्य | *हनुमान जी* ने राम सेवा कार्य के लिए ही अवतार लिया है | फिर जिस कार्य के लिए ही जो तन धारण किया है तो अन्य कोई कार्य कैसे कर सकते हैं | *राम काज* ही अपना कार्य है जीवन भर यह होता रहे बस फिर कोई चिंता नहीं | अत: चिंता केवल *राम काज* की ही रहती है जीवन की भी नहीं | श्री रामचरितमानस में जामवंत जी ने *हनुमान जी* को उनके अवतार धारण करने का उद्देश्य स्मरण कराते हुए कहा है *राम काज लगि तव अवतारा* फिर तो *हनुमान जी* भी मैनाक पर्वत की विश्राम प्रार्थना पर कहते हैं *राम काज कीन्हें बिना मोहि कहां विश्राम* | सुरसा को भोजन के लिए अपनी देह समर्पित करने के बचन के साथ ही शर्त भी लगाते हैं :--
*राम काज करि फिरि मैं आवउँ !*
*सीता कइ सुधि प्रभुहिं सुनावउँ !!*
*तब तव वदन पैठिहउँ आई !*
*सत्य कहहुँ मोहि जान दे माई !!*
*आतुर* से यह प्रकट होता है कि वे रामाज्ञा के लिए सावधान रहते हैं कब आज्ञा मिल जाए और मैं इस सेवा का लाभ उठाऊँ | *हनुमान जी* *राम काज* के लिए सतत् *आतुर* अर्थात उतावले रहते हैं | कार्य में विलंब होना उन्हें सहन नहीं होता है | यदि यह कहा जाय कि राम जी का कार्य तो त्रेता में ही हो चुका उस समय सीता की सुधि के प्रसंग में तो सभी वानर *राम काज* के लिए *आतुर* थे | फिर *हनुमान जी* ही *राम काज* करने को आतुर कैसे है ? इसका उत्तर यही होगा कि सभी वानर *राम काज* के लिए *आतुर* थे इसलिए *हनुमान जी* के लिए भी यह कहना कहीं विसंगत नहीं हो सकता है | सभी *आतुर* थे व *हनुमान जी* भी उस में सम्मिलित थे तो *हनुमान जी* के प्रसंग में *हनुमान* के लिए यह कहना कि आप *राम काज* करने को *आतुर* हैं अनुचित नहीं है | पुनः विचार कीजिए कि शेष सभी वानर केवल एक ही प्रसंग में रहे किंतु *हनुमान जी* तो निरंतर अद्यतन स्वभावत: ही *आतुर* रहते हैं | यदि यह कहा जाय की *राम काज* तो त्रेता में संपन्न हो चुका है | अब *हनुमान जी* क्या *राम काज* करते हैं ??
तो भगवत प्रेमी सज्जनों ! विचार कीजिएगा कि भक्तजन संरक्षण का कार्य किसका है ? जिसके लिए भगवान को अवतार लेना पड़ता है ! गीता में भगवान कहते हैं :--
*परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम्*
* यह *राम काज* भी *हनुमान जी* करते हैं | जैसा कि लिखा गया है कि आज कलियुग में भी *साधु संत के तुम रखवारे* ! *असुर निकंदन* साधु संत की रक्षा करके असुरों का वध करने के बाद ही आप *रामदुलारे* हुये | इस प्रकार *हनुमान जी* सदैव चारों युग में *राम काज* करने को *आतुर* रहते हैं | *हनुमान जी* को *आतुर* अर्थात रोगी या दुखी कहना कहां तक उचित है ?
*इस पर भी विचार कर लिया जाय |*
जिस कार्य के बिना अशांति एवं दुख हुआ जिस कार्य से शांति व सुख की उपलब्धि होती है वह उस रोग का रोगी या दुखी ही माना जाता है | रोगी जिस प्रकार रोग शमन व दुखी दुख निवृत्ति के लिए उत्सुक रहता है उसी प्रकार उतनी ही उत्सुकता *हनुमान जी* को *राम काज* करने की रहती है | इसलिए उनको *आतुर* तुलसीदासजी ने लिखा | ब्रह्मनिष्ठ उन ऋषियों को व्यसनी कहा जो वायु भक्षण के प्रति भी विरक्त हैं | जैसा कि मानस बताती है :--
*आसा वसन व्यसन यह तिन्हहीं !*
*रघुपति चरित होइ तहँ सुनहीं !!*
इसका अभिप्राय उस पदार्थ के प्रति रसासक्ति है | *हनुमान जी* के शब्दों में विपत्ति (की परिभाषा) ही वह है जब राम का भजन न हो | *हनुमान जी* ने स्वयं कहा है :--
*कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई !*
*जब तव सुमिरन भजन न होई !!*
अर्थात राम भजन (सेवा ) ही तो *राम काज* है जिसके बिना विपत्ति संकट होता है | अतः इस निवृत्ति के लिए *आतुर* यदि हनुमान जी रहते हैं तो उसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए | *राम काज करिबे को आतुर* में *हनुमान जी* की महानता कही गई है क्योंकि किसी व्यक्ति का कौन काम कर सकता है ? वहीं न, जो काम करने में सक्षम -:महान हो ! *हनुमानजी* श्रीराम का काम करते हैं अतः *हनुमान जी* का महत्व सिद्ध हुआ | *हनुमान जी* यद्यपि स्वरूप से सेवक हैं पर तत्व से स्वयं शिव (महादेव) होने के कारण मूल प्रकृति या स्वभाव की महानता सेवकत्व भी छिपी रहती है | इसी भाव में यहां भगवान राम का नाम ऐश्वर्य परक उपाधि अलंकार संयुक्त ना लेकर छोटा नाम केवल राम कहा गया है , और *राम काज* करने को आतुर लिखकर तुलसीदास जी ने *हनुमान जी* की महानता सिद्ध की है |
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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