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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *तीसवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*उनतीसवें भाग* में आपने पढ़ा :
*प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया*
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अब आगे :--------
*राम लखन सीता मन बसिया*
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कहने का भाव है की राम लक्ष्मण सीता जी *हनुमान जी* के मन में बसे रहते हैं अथवा राम लक्ष्मण सीता जी को मन में निरंतर बसाए हुए हैं *हनुमान जी* | मन वचन एवं कर्म से भगवान के परम भक्त *राम काज करिबे को आतुर* कह कर तुलसीदास जी ने *हनुमान जी* को कर्म से भगवान की सेवा के प्रति उत्कंठा एवं परमशक्ति दिखाई है | वाणी के विषय में शब्द है जो कहे व सुने जाते हैं | *हनुमान जी* बोलते कम है बल्कि भी सुनने के रसिक हैं | महादेव ने यह अवतार सुनने के लिए ही लिया है | शिव रूप में तो वह निरंतर भगवान का जप किया करते हैं यथा :--
*तुम पुनि राम राम दिन राती !*
*सादर जपहुँ अनन्द अराती !!*
*हनुमान* रूप से *प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया* कहकर वचनों के प्रति आदर्श भक्ति जतलाई है | अब मन की बारी आई तो कहा *राम लखन सीता मन बसिया* अर्थात मन से भगवान का स्मरण ही नहीं करते बल्कि रामजी को सीता अनुज सहित निरंतर मन में बसा रखा है |
*यहां पर एक जिज्ञासा हो सकती है कि केवल राम जी को ही मन में क्यों नहीं बसा लिया ? सीता व लक्ष्मण जी को भी साथ में रखने की क्या आवश्यकता थी ?*
इसका भाव यही है कि *हनुमानजी* भावुक भक्त नहीं है जो किसी उद्देश्य विशेष से प्रेरित होकर या अस्थाई भावावेश में भगवान के प्रति आकृष्ट होते हैं बल्कि वे तो बड़े *चतुर भक्त* हैं | रामजी को इस ढंग से रखना चाहते हैं कि रामजी दुखी भी ना हो और उस स्थान अर्थात मन को छोड़कर भी ना जायं | अनुज लक्ष्मण व सीता जी के बिना रामजी दुखी हो जाते हैं यह *हनुमान जी* अच्छी तरह से जानते हैं | सीता जी के बिना रामजी की दशा तो *हनुमान जी* ने देखी ही है व लक्ष्मण जी से कितना प्रेम है यह भी *हनुमान जी* ने लक्ष्मण मूर्छा के समय देखा , जहां श्री राम जी लक्ष्मण मूर्छा के समय सीता जी को भी भूल गए और कहने लगे :-- *"नारि हेतु प्रिय भाइ गवाई"* वास्तव में *हनुमान जी* जानते हैं कि रामजी किसी भी स्थिति में लक्ष्मण व सीता जी के बिना प्रसन्नता पूर्वक नहीं रह सकते हैं अतः जब राम जी को मन में बसाना ही है तो ऐसी व्यवस्था क्यों न की जाय कि रामजी सदा संतुष्ट और प्रसन्न रहें | ऐसा तभी हो सकता है जब अनुज जानकी संग रहें |अतः *राम लखन सीता मन बसिया* तुलसीदास जी ने लिख दिया |
*एक विचार और कर लिया जाय*
*रामजी के बाद लखन क्यों कहा ? सीता जी क्यों नहीं ? अर्थात सीता जी को बाद में क्यों बताया ?*
इसका माधुर्यपरक उत्तर यह है कि :--- *हनुमानजी* ने रामजी को प्रधान माना है वह किसी भी क्षण ऐसी परिस्थिति मन में नहीं रखना चाहते हैं कि रामजी थोड़ी देर के लिए भी अलग हों | राम जी के चरित्र में लक्ष्मण जी के संग की प्रधानता रही है | बहुत बार ऐसा हुआ है कि राम जी सीता जी से तो अलग रहे परंतु लक्ष्मण जी से एक क्षण के लिए भी नहीं | बाल्यकाल में , विवाह से पूर्व , वनवास काल में , सीता हरण के समय व लव कुश आदि पुत्र जन्म के समय इसके उदाहरण हैं | इसलिए राम जी के बाद प्रथम लक्ष्मण जी को गिनाया गया |
*दूसरा भाव यह है कि*
राम पूर्ण ब्रह्म हैं | किसी रूप में ब्रह्म आकर अन्य स्थानों से अशेष नहीं होता | शेष सदा अनंत होता है | इसी भाव के प्रतीक शेषावतार श्री लक्ष्मण जी हैं | शेष शब्द के आने पर अन्य किसी चीज का कोई अर्थ नहीं रहता है , अतः ब्रह्म को पूर्ण करने के लिए राम और लक्ष्मण को साथ साथ रखकर तब माया अर्थात सीता जी का नाम लिया | शेष स्वयं सभी भावों में स्थित है | माया सीता के अतिरिक्त कहीं शेष है ?? नहीं | यथा :-- *"माया सब सिय माया माहूं"* इस प्रकार प्रथम पूर्ण ब्रह्म को कहकर तब माया को कहा |
*सुना जाता है कि पूर्ण ब्रह्म के बाद माया का सर्वथा लोप हो जाता है | फिर हनुमान जी के मन में पूर्व पूर्ण ब्रह्म को गिना कर तब सीताजी को कैसे लिखा गया ??*
समझने की बात यह है कि शेष अशेष ब्रह्म जब एक ही रूप में रहता है तो माया अंतर्हित हो जाती है किंतु जब ही ब्रह्म एक से दो स्वरूपों में (भक्तों के लिए) प्रकट होता है तो माया अवश्यम्भावी हो जाती है | जब *राम लखन* शब्द में *भक्त और भगवान* रूप में या *शेष अशेष* रुप में दो को कहा गया तो सीता का भी होना अनिवार्य हो गया | अनन्य भक्ति की पराकाष्ठा में भी ऐसा होता ही है | अतः राम व लक्ष्मण के साथ सीता जी को रखना परम आवश्यक है |
*अन्य माधुर्यपरक भाव इस प्रकार है:---*
*बिना *सीता* के *राम लक्ष्मण* को रखने में भी काम नहीं चलता अर्थात मनोरथ पूर्ण नहीं होते | इसके उदाहरण देखने का प्रयास करें | अहिरावण *राम लक्ष्मण* को ले गया *सीता जी* को साथ में नहीं रखा तो उसकी स्थिति क्या हुई ???
इसी प्रकार *राम लक्ष्मण* को छोड़कर के रावण केवल *सीता* को ही चुरा कर ले गया तब उसकी क्या स्थिति हुई ??
किंतु *हनुमान जी* की भी स्थिति पर विचार कीजिए जो कि अजर अमर अतुल बाल धाम हैं जिन्होंने न केवल राम लक्ष्मण वह न केवल सीता को ही मन में बसाया है बल्कि इतने चतुर हैं कि राम लक्ष्मण व सीता तीनों को साथ में मन में बसाया है जिससे वह उनके मन को छोड़कर कहीं जाने का विचार भी नहीं कर सकते | भक्त एवं भगवान का पारस्परिक संबंध ही ऐसा है कि *रामजी* के मन में *लखन सीता* बसते रहते हैं | यथा:-- *राम लखन सीता मन बसिया*
सीता जी भी राम को संतुष्ट रखने के लिए भाई लक्ष्मण से अलग नहीं रखना चाहती रामजी के साथ लक्ष्मण का भी ध्यान रखती ही है | केवल एक बार ही लीला बस उन्होंने लक्ष्मण की अवहेलना की जिसके कारण उन्हें स्वयं रावण के घर में रहना पड़ा | लक्ष्मण तो राम जी के साथ ही रहे , सीता जी को जब इस प्रकार भूल का ज्ञान हुआ तो लक्ष्मण के स्वरूप को पहचाना और प्रायश्चित रूप मर्यादित होकर हनुमान जी से यह शब्द कहे :-; *अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना* कहने का अर्थ है कि *राम लक्ष्मण सीता* अलग नहीं है इसीलिए तीनों को एक साथ *तुलसीदास जी* ने *हनुमान जी* के लिए लिख दिया *राम लखन सीता मन बसिया*
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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