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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *इकतालीसवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*चालीलीसवें भाग* में आपने पढ़ा :--
*दुर्गम काज जगत के जेते !*
*सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते !!*
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अब आगे :---
*राम दुआरे तुम रखवारे !*
*होत न आज्ञा बिनु पैसारे !!*
*हे हनुमान जी* राम जी के दरवाजे पर तुम *रखवाले* रहते हो अर्थात पहरा देते हो | यहाँ *तुलसीदास जी* महाराज ने *हनुमान जी* को *राम दुआरे* का द्वारपाल कहा है परंतु वे *हनुमान जी* राम जी के किस *द्वार पर द्वारपाल* हैं यह नहीं बताया है | अयोध्या में , साकेत धाम में या वन में ? समझने की आवश्यकता है कि जहां भी राम जी रहते हैं वही आप *द्वारपाल* हो , इसीलिए किसी धाम या स्थान का *द्वारपाल* ना कहकर के *राम दुआरे* लिखा है , अर्थात राम जी जहां भी होते हैं *हनुमान जी* आप वहां *द्वारपाल* रहते हो | श्री राम जी की प्राप्ति दर्शन के मार्ग का प्रारंभ ही द्वार है आपकी कृपा के बिना श्री राम जी के दर्शन या उस धाम में प्रवेश नहीं हो सकता है | राम जी से मिलने के लिए पहले *हनुमान जी* से मिलना होता है क्योंकि *हनुमानजी* द्वार पर हैं उनसे मिले बिना कोई भी रामजी से नहीं मिल सकता | सुग्रीव को *हनुमान जी* ने मिलाया , विभीषण को *हनुमान जी* ने मिलाया , सीता जी को भी *हनुमान जी* ने मिलाया और भरत जी को भी मिलाने में संदेश देकर *हनुमान जी* की ही मुख्य भूमिका रही |
*राम दुआरे तुम रखवारे ! आज्ञा बिनु न होत पैसारे !!* यदि यह अन्वय देखा जाय तो यह भाव निकल कर आता है कि राम जी के *द्वार* पर तुम *रखवारे* हो व बिना भगवान राम की आज्ञा के कोई किसी का वह प्रवेश नहीं होता | अर्थात ही *हनुमान जी* आप रामाज्ञा के पालक भक्तों को भी राम जी से मिलाने के लिए राम जी से आज्ञा प्राप्त करते हो व वहां से आज्ञा मिलने पर ही उनको प्रवेश मिलता है | राम जी से यह आज्ञा भी अनुमति भी आप ही प्राप्त करते हैं | मिले बिना अन्य कैसे प्राप्त कर सकता है ? सुग्रीव से मिलाने के लिए भी आपने भगवान की आज्ञा प्राप्त की है | यथा :---
*नाथ शैल पर कपिपति रहई !*
*सो सुग्रीव दास तव अहई !!*
*तेहि सन नाथ मइत्री कीजे !*
*दीन जानि तेहि अभय करीजे !!*
अर्थात बिना प्रवेश किये आज्ञा ही नहीं मिलती |
श्री राम के *द्वार* पर आप *रखवाले* हैं | *किसके ?* राम के ? उन्हें भी आपकी रक्षा की आवश्यकता है ? नहीं | आप भक्तों के *रखवाले* हैं | राम जी के दरवाजे तक जो भक्त आ जाते हैं उनकी रक्षा का भार *हनुमान जी* पर ही है | प्राय: लोगों के लोगों के मन में यह प्रश्न हो सकता है कि :- जो राम जी के *द्वार* पर पहुंचते हैं *हनुमान जी* उन्हीं रक्षा करते हैं ? अन्य की नहीं ? जो राम जी की ओर उन्मुख हो चुके हैं वे सभी राम जी के *द्वार* पर ही तो हैं | राम जी किसी स्थान विशेष पर जैसे नहीं हैं वैसे ही उनका *द्वार* उनके सम्मुख होना ही है | जैसा कि *गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज* ने लिखा है :--
*सन्मुख होहिं जीव मोंहिं जबहीं !*
*जन्मकोटि अघ नासहिं तबहीं !!*
कहने का आभिप्राय यह है कि जीव ज्यों ही राम जी के सम्मुख होता है परम कृपालु *हनुमान जी* उसकी रक्षा प्रारंभ कर देते हैं | साधक को केवल भगवान के सम्मुख होने भर की बात है फिर तो गीता के अनुसार *योगक्षेमं वहाम्यहम्* की भांति सब कुछ भक्त यदि उन पर छोड़ देता है तो भगवान स्वयं संभाल लेते हैं | रामजी राज्य हैं अतः *हनुमान जी* राज्य सम्मान की रक्षा के लिए *द्वार* पर रहते हैं |
एक *जिज्ञासा* और हो सकती है कि जब राम जी के सम्मुख होते ही कोटि जन्मों के पाप स्वयं नष्ट हो जाते हैं तो फिर भी *हनुमान जी* की रक्षा की आवश्यकता क्यों रहती है ? कदाचित किसी को भी न रहती हो | पुनः यही कहना चाहूँगा कि :- कोटि जन्मों के पाप नष्ट होते हैं तो भी यहां तो जीव के कितने कोटि जन्मों के पाप है , कौन जानता है ? कोटि-कोटि जन्मों में से कोटि जन्मों के पाप नष्ट होने में भी *राम जी के द्वार* में प्रवेश तक किस जन्म का पाप बाधक हो जाय यह कौन कह सकता है ? पुनश्च राम जी के सम्मुख होना ही *राम का द्वार है* वह इस *द्वार* पर पहुंचने में भी जो बाधाएं हैं उसी से रक्षा *श्री हनुमान जी* करते हैं | *हनुमान जी* स्वयं *श्री जगद्गुरु शंकर जी* के अवतार हैं अतः जीव के आचार्य हैं | इनकी कृपा से ही *राम द्वारे में प्रवेश* सुलभ हो सकता है अन्यथा जीव की प्रवृत्ति ही इधर नहीं होती है | जिसका स्पष्ट वर्णन *गोस्वामी जी महाराज* ने मानस में किया है |
*पापवंत कर सहज सुभाऊ !*
*भजन मोर तेहि भाव न काऊ !!*
*होत न आज्ञा बिनु पैसारे* अर्थात आज्ञा के बिना प्रवेश नहीं हो सकता अथवा प्रवेश के बिना आज्ञा नहीं होती |
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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