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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *बयालीसवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*इकतालीसवें भाग* में आपने पढ़ा :--
*राम दुआरे तुम रखवारे !*
*होत न आज्ञा बिनु पैसारे !!*
अब आगे :----
*सब सुख लहै तुम्हारी सरना !*
*तुम रक्षक काहू को डरना !!*
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*सब सुख लहै तुम्हारी सरना*
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*तुलसीदास जी महाराज* ने मात्र सुख न लिख करके *सब सुख* लिखा है | *सब सुखों* से क्या अभिप्राय हो सकता है ? संसार में *सुखों* की भी गिनती हो सकती है क्या ?? मेरा तो मानना है कि *सुखों* की गिनती करने की आवश्यकता ही नहीं है , क्योंकि अंततोगत्वा सभी *सुखों* का आधार तो मन ही है , परिस्थितियां तो सुख दुख में निमित्त मात्र होती हैं व वह भी एक ही स्वरूप में भी सभी को एक समान सुख दुख नहीं देती | मन की स्थिति ऐसी हो जाय कि वह दुखी हो ही नहीं | जीव को भक्तिपूर्ण आत्माराम की स्थिति यदि मिल जाती है तो वह किस वस्तु के लिए दुखी होगा ? वैसे सुख-दुखों का वर्णन तीन भागों में बांटकर किया जाता है :- *दैहिक दैविक भौतिक* | इन सभी दुखों को दूर करने में *हनुमान जी* समर्थ हैं ` किसी चक्रवर्ती सम्राट का प्रिय सेवक या मित्र भी अपने उस प्रभाव और राजा की शक्ति सीमा तक प्रजा का कष्ट दूर कर सकता है तो अनंत कोटि ब्रम्हांड नायक *श्री राम जी* के कृपा पात्र स्वयं समर्थ साक्षात शंकर के अवतार *हनुमान जी* की कृपा से सभी सुखों का निवास आश्चर्य की बात नहीं हो सकती | *हनुमान जी* महाराज भक्ति के आचार्य हैं | भक्ति मिल जाने पर दुख रह ही नहीं सकता | दुख या संकट की परिभाषा तो *हनुमान जी* ने स्वयं बता दिया है :--
*कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई !*
*जब तब सुमिरन भजन न होई !!*
*सब सुख खानि भगत तैं मांगी*
इस प्रकार कहा गया कि तुम्हारी शरण में सभी प्रकार के सुख प्राप्त हो जाते हैं |
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*तुम रक्षक काहू को डरना*
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अभी ऊपर *शरण* की बात कही गई है | *शरण* कोई भी किसी भय से त्राण पाने के लिए प्राप्त करता है | भयभीत को त्राण वही मिल पाता है जहां *रक्षक* या शरणदाता की शक्ति से शरणागत आश्वस्त हो कि मुझे यहां भय नहीं है | *रक्षक* में रक्षा की सामर्थ्य व इच्छा दोनों आवश्यक है | *हनुमानजी* में दोनों बातें हैं | *हनुमान जी* से बल में कोई जीत नहीं सकता | वह अजेय हैं | यहां तक कि वे *अतुलितबलधामम्* अर्थात उनमें अतुलित बल है अर्थात इनके बल की कोई सीमा नहीं है | आज तक इस सृष्टि में कोई भी इनके बल को नाप नहीं सका है | ऐसा अतुलित बलवान जिसकी *रक्षा करें* उसके सामने भला कौन आ सकता है | सुग्रीव कितना भयभीत था ! बाली के भय से त्रस्त रहता था श्री राम लक्ष्मण को जब आते देखा तो भी पता लगाने के लिए सामने *हनुमान जी* को ही भेजा | अब तक *हनुमान जी* की रक्षा में ही सुग्रीव सुरक्षित थे अब रामजी ने सारा भार स्वयं अपने ऊपर ले लिया और सुग्रीव से कहा :---
*सखा सोच त्यागहुँ बल मोरे !*
*सब विधि घटब काज मैं तोरे !!*
*रामजी के बल* के बारे में सुग्रीव आश्वस्त नहीं था अतः राम जी को भी :- *दुंदुभि अस्थि ताल दिखराये* श्री राम जी जानते थे कि भय मुक्त हुए बिना *रक्षक की शक्ति* के प्रति आश्वस्त होना कठिन है | जिस परीक्षा से वह *राम जी* की शक्ति के प्रति आश्वस्त हो सकता था उसे करने में क्या आपत्ति हो सकती थी ! अतः :-- *बिनु प्रयास रघुनाथ ढहाये*
*हनुमान जी* के बल के प्रति तो सभी आश्वस्त हैं कि शरणागत वत्सलता का स्वभाव भी उनका अपना सिद्धांत है | अपने स्वामी के सिद्धांत को सेवक दृढ़ ही करने की इच्छा रखता है | स्वामी *श्री राम जी* ने विभीषण की शरणागति प्रसंग पर खुले रूप से घोषणा की थी कि :- विभीषण *शरण* में आया है तो उसे प्राणों की भांति रखूंगा :-
*जो सभीत आवा सरनाई !*
*रखिहहुँ ताहि प्रान की नांईं !!*
जहां यह बात अपने लिए थी वहां सब के लिए भी एक सिद्धांत प्रतिपादित किया कि :--
*सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि !*
*तें नर पांवर पापमय तिन्हहिं विलोकत हानि !!*
तो फिर *हनुमान जी* शरणागत को भला कैसे त्याग कर सकते हैं | आवश्यकता तो शरण में आने की है | अतः *हनुमान जी* के इस स्वभाव एवं अतुलित शक्ति प्रति विश्वास स्थापित करने के लिए *गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज* ने स्पष्ट लिख दिया कि यदि प्राणी आपकी *शरण* प्राप्त कर लेता है तो *तुम रक्षक काहू को डरना* |
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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