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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *बावनवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*इक्यावनवें भाग* में आपने पढ़ा :--
*अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता !*
*अस बर दीन्ह जानकी माता !!*
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अब आगे :--
*राम रसायन तुम्हरे पासा !*
*सदा रहउ रघुपति के दासा !!*
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*राम रसायन*
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राम नाम को ही *रसायन* कहा गया है रसायन आयुर्वेद की उस औषधि वर्ग का नाम है जो आयुष्य , आरोग्यक , बल्य व सदा स्वस्थ को ही सेवनीय होती है | इस वर्ग में आयुर्वेद के आचार्यों ने अनेक योगों के भिन्न-भिन्न नाम देकर वर्णन किया है | जैसे :- ब्रह्म रसायन आदि |
*राम नाम को *रसायन* इसलिए कहा गया है क्योंकि :--
*👉 रसायन भी कोई देह पर मलने का उबटन नहीं है बल्कि यह मुख से ही ग्रहण किया जाता है तथा राम नाम भी मुख से ही लिया जाता है |*
*👉 रसायन में भी रसना रसों मधुर आदि का ग्रहण करती है व नाम जप में भी रसना अर्थात जीभ ही उसका उच्चारण करती है |*
*👉 रसायन दुर्बलता आदि रोगों का नाश करता है तो राम नाम भी भव रोग तक असाध्य रोगों का नाश करने में समर्थ है | जैसा कि कहा गया है :- "नाम लेत भवसिंधु सुखाहीं"*
*👉 औषधि मात्र रोगी को दी जाती है परन्तु रसायन रोगी व स्वस्थ दोनों को दिया जाता है क्योंकि रोगी के रोग का शमन व स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य का संरक्षण रसायन करता है उसी प्रकार राम नाम का जप रसायन भी संकट रूपी रोग का शमन व स्वस्थ को सबल भक्त बनाती है |*
*👉 औषधि रसायन के सेवन से जरा नहीं व्यापती तो राम रसायन भी भक्तों को दृढ़ करता है | कुतर्क , दुर्बलता आदि कभी व्याप्त नहीं हो सकती |*
*👉 आयुर्वेद की मंत्र औषधियों में भी राम मंत्र सभी रोगों की (विशेषत: कर दोषज रोग जो अन्य चिकित्सा में साध्य नहीं है ) कि औषधि है | राम रसायन को जैसे भक्त सेवन कर सकता है उसी प्रकार ज्ञानी भी कर सकता है |*
संभवत इस रसायन के कारण ही *हनुमान जी* चिरंजीवी है ! अजर है ! अमर है !
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*तुमरे पासा*
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*तुमरे पासा* अर्थात पूर्व से ही तुम्हारे पास है ! तुम उसका सेवन किए हुए हो अतः *हे हनुमान जी* आप तो उसके गुण धर्म को जानते हो |
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*सदा रहउ*
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अर्थात सदा रहो या रहे | पहले वरदान सीता जी ने दिया कि *अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता* | इतना कह कर जब सीता जी ने *हनुमान जी* की ओर देखा तो उन्हें ऐसा लगा कि जैसे *हनुमान जी* को संतोष नहीं हुआ | बात ही संतोष वाली नहीं थी सीता जी ने यहां *हनुमान जी* को दिया ही क्या ? जो *हनुमान जी* के पास पहले से ही था उसे दूसरों को देने का अधिकार ही दिया | *हनुमान जी* विचार करते हैं कि आखिर मुझे मां ने क्या दिया ? यह अधिकार प्राप्त होने से तो केवल मेरा मान बढ़ा है और *हनुमान जी* तो अपने मान का हनन पहले ही कर चुके हैं | तो पुनः मान देकर माता क्या मुझे प्रसन्न करना चाहती हैं ?? *हनुमान जी* तो *ज्ञानिनामग्रगण्यम्* है व *ज्ञान मान जहां एकहुँ नाहीं* है तो मान का अधिकार ले करके क्या करेंगे ??
जिस प्रकार एक माता किसी विशेष अवसर पर अपने पुत्र को किसी भी प्रकार से राजी करना चाहती है वैसे ही सीता जी भी *हनुमान जी* को संतुष्ट व राजी करना चाह रही हैं ! इसीलिए सीता जी ने *सिद्धियों* का वरदान दिया ! परंतु सीता जी ने देखा कि *हनुमान जी* के मुखमण्डल पर संतुष्टि की झलक नहीं दिखाई पड़ रही है ! तब सीता जी ने कहा कि *हे हनुमान ! *राम रसायन* तुम्हारे पास रहे ! *हनुमान जी* तब भी नहीं संतुष्ट हुए क्योॉकि *राम रसायन* तो उनके पास पहले से ही था उसी के बल पर तो समुद्र का लंघन किया था ! सीता जी ने पुन: कहा कि *सदा रहउ* अर्थात यह *राम रसायन* तुम्हारे पास *सदा रहे* अर्थात तुम चिरञ्जीवी हो जाओ ! परंतु इतना सब कुछ कहने के बाद भी *हनुमान जी* को संतोष नहीं मिला ! पुत्र के मनोभावों को माता ने सहज ही पहचान लिया कि यह क्या चाहता है ! सीता जी ने मुस्कराकर *हनुमान जी* को उनका मनोवांछित अर्थात *दास्य भक्ति* का वरदान दे दिया ! अब *हनुमान जी* प्रसन्न हो गये ! सीता ने कहा :- *सदा रहउ रघुपति के दासा* आज *हनुमान जी* को ऐसा प्रतीत हुआ कि मानो सब कुछ मिल गया हो |
*सदा रहउ* को मध्य में रखकर जैसे दोनों ही वस्तुयें *राम रसायन* एवं *रघुपति की दास्य भक्ति* दोनों एक साथ प्रदान कर दी हो और *हनुमान जी* का जीवन धन्य हो गया हो |
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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