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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *चौवनवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*तिरपनवें भाग* में आपने पढ़ा :--
*तुमरो भजन राम को भावै !*
*जनम जनम के दुख विसरावै !!*
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अब आगे :------
*अंतकाल रघुबर पुर जाई !*
*जहां जन्म हरि भक्त कहाई !!*
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इसके पहले की चौपाई में *तुलसीदास जी* महाराज ने *जनम जनम के दुख बिसरावैंं* कह कर के यह बताया है कि पुनर्जन्म के दुखों से निवृत्त होने के कारण जीव जन्म जन्मांतरों के दुख को भूल जाता है और वह *राम को भावै* अर्थात प्रिय लगने लगता है | अब *तुलसीदास जी महाराज* लिखते हैं कि तब प्राणी अंत समय में *रघुपति पुर*( अयोध्यापुरी ) में चला जाता है | यहां कहने का भाव *प्रियता* के बाद *अतिप्रियता* का है क्योंकि *अयोध्यापुरी* के निवासी राम जी को अतिशय प्रिय हैं | यद्यपि भगवान ने कहा है *सब मम प्रिय सब मम उपजाए* प्रिय तो भगवान को सभी हैं परंतु *अतिप्रिय* कौन है ? इसका वर्णन *गोस्वामी तुलसीदास जी* करते हैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम स्वयं अपने मुखारविंद से *अयोध्यावासियों* के लिए कहते हैं :--
*अति प्रिय मोहि इहां के वासी !*
*मम धामदा पुरी सुख रासी !!*
*अयोध्या* के निवासी भगवान को *अति प्रिय* हैं | जहां पूर्व में *गोस्वामी जी* ने लिखा *राम को भावैं* वहीं अब लिख रहे हैं *रघुबर पुर जाई* अर्थात *अति भावे* क्योंकि भगवान को यहां की वासी *अत प्रिय* है | कहने का तात्पर्य है *अंतकाल* अर्थात देहावसानोपरांत *रघुवर पुर*( साकेत धाम ) चला जाता है | *पुर जाई* अर्थात कहा जाता है कि यदि प्राणी जन्म लेगा भी तो हरि का भक्त होगा | भावार्थ है कि जब राम अवतार लेंगे तभी उनकी पुरी में वह प्राणी भक्त के रूप में जन्म लेता है | *अंत काल* में उस *रघुवर पुर* को जाता है जहां जन्म लेने मात्र से ही राम के प्रिय होने से वह भक्त कहा जाता है | यहां *गोस्वामी तुलसीदास जी* महाराज ने *अयोध्या* के प्रभाव का वर्णन किया है | *श्री रामचरितमानस* में *गोस्वामी जी* ने लिखा है :---
*अवध प्रभाव जान तब प्रानी !*
*जब उर बसहिं राम धनुपानी !!*
*अयोध्या* का प्रभाव मनुष्य तभी जान पाता है जब उसके हृदय में *मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम* का निवास होता है | हमारे शास्त्रों में मुक्ति प्रदान करने वाली सात पुरियों की व्याख्या की गई है इन सात पुरियों में प्रथम स्थान *अयोध्या* को ही प्राप्त है | यथा:---
*अयोध्या मथुरा माया " काशी कांची अवञ्तिका !*
*पुरी द्वारावती चैव , सप्तै: मुक्ति प्रदायिका !!*
प्राणी के मानव जीवन की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धियां दो ही होती हैं भक्ति या मुक्ति | *हनुमान जी* के भजन से इन दोनों की प्राप्ति हो जाती है |
*राम को भावै*
तथा
*जहां जन्म हरि भक्त कहाई !!*
से भक्ति व राम दोनों को प्राप्त कर लेता है , व *अंत काल रघुवर पुर जाई* से साकेत धाम की प्राप्ति हो जाती है , जिसका अर्थ हुआ सालों के मुक्ति इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्पष्ट लिख दिया है :-- *अंत काल रघुबर पुर जाई ! जहां जन्म हरि भक्त कहाई !!*
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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